From the pen of Editor-in-Chief, Subhash Mishra- Government takes every step cautiously
-सुभाष मिश्र
तीसरी बार सत्ता में आई मोदी सरकार अपने इस कार्यकाल में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है या यह कहें की दो कदम आगे तो चार कदम पीछे के नीति अपना रही है।
अभी हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग से लैटरल एंट्री के विज्ञापन को रद्द करने का आदेश दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बढ़ती सरकार विरोधी गतिविधियों फेक न्यूज़ आदि को लेकर सरकार प्रसारण बिल लाकर स्वतंत्र पत्रकारों, यूट्यूबरों और सोशल मीडिया को नियंत्रित करना चाहती है किंतु इस प्रसारण बिल के प्रारूप का विरोध होने के बाद इसे भी फिलहाल वापस ले लिया गया है।
इसी तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्रीमी लेयर को लेकर आरक्षण के भीतर आरक्षण की व्यवस्था को लेकर की सरकार अनुसूचित जाति जनजाति के नेताओं के उबाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटकर पूर्व की व्यवस्था कायम रखना चाहती है। सरकार पर दबाव डालने के लिए विपक्षी दलों ने आरक्षण समर्थित अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति की पहल पर भारत बंद भी कराया। भारत बंद के दौरान जो माँग पत्र दिया गया आरक्षित वर्ग के लिए न्याय और समानता, आरक्षण पर संसद का नया अधिनियम ,केन्द्र की नौकरियों में एससी-एसटी-ओबीसी के लिए डेटा जारी करना , उच्च न्यायालयों में इनके लिए 50 प्रतिशत आरक्षण, केन्द्र और राज्य की नौकरी के साथ सार्वजनिक क्षैत्र के उपक्रमों में बैकलॉग रिक्तियों को भरना जैसी माँग शमिल है।
सरकार द्वारा लाये गए वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम को भी दोनों सदनों में हुए विरोध के बाद संयुक्त संसदीय समिति को सौंपना पड़ा। तीसरे कार्यकाल की मोदी सरकार अपने पिछले दो कार्यकाल से थोड़ी अलग और फूंक-फूंक कर कदम रखने वाली है जिसकी सबसे बड़ी वजह उनके पास स्पष्ट बहुमत का नहीं होना तो वही उनके सहयोगी दल भी बहुत से मामलों में अपनी सहमति जताने लगे हैं। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार सरकार से समर्थन की भरपूर कीमत वसूल रहे हैं।
यदि हम सरकार के 2014 से 2024 तक के 10 साल के कामकाज निर्णय को देखते तो हमें साफ दिखाई देता है। रातों-रात बिना किसी सहयोगी को बताएं नोटबंदी लागू करना हो या जीएसटी लगाना हो। इसके अलावा तीन तलाक की समाप्ति हो या जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाना। किसानों और परिवहन से जुड़े लोगों के देश यात्री विरोध के चलते मोदी सरकार को तीन कृषि कानून और हिट एंड रन कानून मन मारकर वापस लेना पड़ा था वरना तो समूची बीजेपी मोदी और शाह के इशारों पर उनके हर निर्णय का ताली ताली बजाकर स्वागत को आतुर दिखती थी लेकिन आप ऐसी स्थिति नहीं है अब अनुशासित पार्टी भाजपा के भीतर भी असंतोष के स्वर सुनाई देने लगे हैं। बिना आरक्षण वाले यूपीएससी की लेटरल एंट्री नोटिफिकेशन के वापस लेते हुए कार्मिक एंव प्रशिक्षण मंत्री जितेंद्र सिंह का पत्र अपने आप में बहुत बयान करता है। उन्होंने प्रधानमंत्री का हवाला देते हुए संविधान और आरक्षण की व्यवस्था का जि़क्र किया। प्रधानमंत्री मोदी के कहने पर बोर्ड ने इस नोटिफिकेशन के वापस ले लिया है। राहुल गांधी हो या अखिलेश यादव या फिर तेजस्वी यादव, विपक्ष के नेताओं ने इसकी वापसी पर अपना पीठ थपथपाना लेना शुरू कर दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने हाल ही में अपने ट्वीट कर, ‘एनडीए की गठबंधन वाली सरकार और बीजेपी की बहुमत वाली सरकार में अंतर बताया है। हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब नरेंद्र मोदी की सरकार ने जनभावना को देखते हुए बिल वापस लिया है। लोकसभा चुनाव 2014 में ऐसा माना जाने लगा था कि मोदी की लहर चल रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक चला और 2014 के अपने ही रिकॉर्ड को तोड दिया और 303 सीटों पर हासिल की। उनके गठबंधन एनडीए को 353 सीटें मिली अब बात आती है परन्तु अबकी बार चार सौ पार के मंसूबों पर पानी फिर गया और 240 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।
जिन निर्णयों से सरकार को पीछे हटना पड़ा है उनमें सबसे ताज़ा उदाहरण है यूपीएससी ने केंद्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों के 45 पदों के लिए लेटरल इंट्री का नोटिफिकेशन जारी किया कर विवाद के बाद वापस लेना । विपक्ष ने आरक्षण के मुद्दे पर सरकार को घेरा। साथ ही बीजेपी की सहयोगी पार्टियों जेडीयू, एलजीपी (रामविलास पासवान) और जितन राम मांझी की पार्टी ने इसका विरोध किया। राहुल गांधी द्वारा 17 अगस्त को यूपीएससी द्वारा जारी विज्ञापन के बाद कहा गया था कि सरकार एससी-एसटी-ओबीसी के उम्मीदवारों को आरक्षण से वंचित करने के लिए लैटरल एंटी का इस्तेमाल कर रही है। अपने ट्विट में राहुल गांधी ने लिखा था कि भाजपा का राम राज्य का विकृत संस्करण संविधान को नष्ट करना और बहुजनों से आरक्षण छीनना चाहता है।
एनडीए के सहयोगी जदयू के केई त्यागी ने कहा कि जब लोग सदियों से सामाजिक रुप से वंचित रुप से वंचित रहे हैं, तो आप योग्यता की तलाश क्यों कर रहे हैं। ऐेसा करके सरकार विपक्ष को एक मुद्दा तश्तरी में परोस रही है। राहुल गांधी सामाजिक रुप से वंचितों के चैंपियन बनेंगे। एलजेडी के चिराग पासवान ने कहा कि किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए इसमें किन्तु परन्तु नहीं हो। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी विरोध किया। इसके पहले वक्फ बोर्ड संशोधन बिल लेकर आई थी. विपक्ष ने सरकार को इसपर सदन में लगातार घेरा सरकार ने इस बिल को पास कराने की बजाय इसे जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) को भेज दिया।
इसी तरह ब्रॉडकास्ट बिल 2024 के साथ हुआ। लोकसभा के मानसून सत्र में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव इस बिल को पेश किया था। इस बिल को लेकर न केवल विपक्ष बल्कि डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स और इंडिविजुअल कॉन्टेंट क्रिएटर्स ने सरकार के इस कदम का विरोध किया। अंतत: मिनिस्ट्री ऑफ इंफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग ने सोसल मीडिया एक्स पर इस बिल को वापस लेने और इस नए मसौदे के साथ इसे लाने की जानकारी दी। मंत्रालय ने आम लोगों से भी 15 अक्टूबर तक राय माँगी है। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस बिल- वित्त मंत्री निर्माला सितारमण 23 जुलाई को बजट सत्र में यह बिल लेकर आईं थीं. इसमें सरकार ने कुछ ऐसे प्रावधान किए थे, जिससे बिजनेस मैन से लेकर आम आदमी भी काफी सरकार के प्रति नाराजगी जताई थी। बहरहाल, सरकार को चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ी, जिसके बाद सरकार ने इसमें संशोधन कर जनता के पक्ष में कर दिया।
अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार चाहकर भी उस तरह काम नहीं कर पा रही है जैसी उसकी कार्यप्रणाली है। समान नागरिक संहिता सहित मोदी की बहुत सारी गारंटी, भाजपा का संकल्प पत्र , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू वादी संगठनों का भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना ऐसी बहुत सी ख़्वाहिशों हैं जिन्हें कैसा पूरा किया जाए, यह चुनौती है।
बक़ौल मिरजा ग़ालिब कुछ ऐसा कहा जा सकता है-
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले