छत्तीसगढ़ की संस्कृति धरोहर को गुजरात में पहचान दिलाई शिक्षिका अनिता चौधरी ने

छत्तीसगढ़ व ओड़िसा गमछा बना आकर्षण का केंद्र

सरायपाली :- दिल्ली में में आयोजित सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी) के कार्यक्रम के दौरान सरायपाली (छत्तीसगढ) की श्रीमती अनीता चौधरी और गुजरात की श्रीमती हेतल पटेल ने अपने पारंपरिक पहनावे के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक पहचान को प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में उनकी तस्वीर को गुजरात के भरूच के मीडिया ने भी प्रमुखता से स्थान दिया जो इनकी सांस्कृतिक धरोहर को मान्यता देने का एक महत्वपूर्ण कदम है।

अनीता चौधरी ने इस अवसर पर पारंपरिक ओड़िया गमछा पहना था, जो ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह गमछा न केवल एक पहनावा है, बल्कि यह क्षेत्रीय परंपराओं और सांस्कृतिक संबंधों को भी दर्शाता है। दूसरी ओर, श्रीमती हेतल पटेल ने सुजानी रजाई धारण की, जो गुजरात के भरूच में हाथ से बुनी जाने वाली एक पारंपरिक कला है। सुजानी रजाई की बुनाई की परंपरा 1860 के आस-पास से चली आ रही है, जिसमें दो कपड़ों के ताने-बाने को बदलकर कपास भर दी जाती है और एक सुंदर रजाई तैयार की जाती है। इसे सजावटी कंबल के रूप में भी उपयोग किया जाता है और यह गुजरात की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। इसके संरक्षण के लिए इसे ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट) के अंतर्गत शामिल किया गया है।

भरूच के वर्तमान जिला कलेक्टर श्री तुषार सुमेरा (IAS) ने इस तस्वीर को अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पेज पर साझा किया, जिससे यह समाचार और भी चर्चा में आ गया। इस सम्मान के बारे में बात करते हुए श्रीमती अनीता चौधरी ने कहा, “यह मेरे लिए गर्व का क्षण है। मुझे छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को इस मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर पाकर अत्यधिक खुशी हो रही है।” उन्होंने यह भी बताया कि पारंपरिक ओड़िया गमछा छत्तीसगढ़ और ओडिशा के साझा सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाता है, खासकर सरायपाली क्षेत्र में, जहां यह परंपरा आज भी जीवित है।उड़ीया गमछा, जो हाथ से बुना जाता है, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक है। सरायपाली जो कभी उड़िसा का हिस्सा हुआ करता था उड़िसा संस्कृति परंपरा अब भी जीवित है और वहाँ के लोगों की खानपान, त्यौहार, बोली और वेषभूषा में झलकती है।

इस कार्यक्रम ने न केवल इन दोनों महिलाओं को अपनी संस्कृति का सम्मान करने का अवसर प्रदान किया, बल्कि उनके राज्यों की सांस्कृतिक धरोहर को भी वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया। यह पहल हमारे सांस्कृतिक विविधता को संजोए रखने और प्रोत्साहित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनेगा।