:रामनारायण गौतम:
सक्ती: देवांगन परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिन व्यास पीठ से कृष्णा तिवारी ने श्रद्धालुओं को नारद भक्ति संवाद, ज्ञान और वैराग्य के कथा श्रवण कराते हुए कहा नारद जी भक्ती देवी के दुःख को देखकर वे भक्ति देवी से मिलते हैं। इसके बाद, नारद जी भक्ति के पुत्रों – ज्ञान और वैराग्य – को जगाने के लिए वेद और गीता पाठ करते हैं, लेकिन वे फिर से कमजोर हो जाते हैं। अंततः, नारद जी भागवत कथा के ज्ञान यज्ञ के माध्यम से भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को पुनर्जीवित करने का निश्चय करते हैं.
भक्ति देवी की व्यथा: भक्ति देवी को देखकर नारद जी को करुणा होती है और वे भक्ति से उसके पुत्रों ज्ञान और वैराग्य के शिथिल होने का कारण पूछती हैं। भक्ति बताती है कि कलियुग के कारण उनका यह हाल है, यहाँ तक कि पवित्र नदियाँ भी उनकी सेवा में लगी हैं, पर वे फिर भी दुखी हैं।

पुनर्जीवन का प्रयास: नारद जी भक्ति के पुत्रों, ज्ञान और वैराग्य को जगाने की कोशिश करते हैं। वे वेद-ध्वनि, वेदांत-घोष, और गीता पाठ करते हैं, लेकिन वे फिर भी कमजोर होकर जम्हाई लेने लगते हैं और फिर से सो जाते हैं। नारद जी को एक आकाशवाणी सुनाई देती है जो उन्हें सत्कर्म करने के लिए कहती है। नारद जी संतों की खोज में जाते हैं, लेकिन उन्हें कहीं सही उत्तर नहीं मिलता। नारद जी यह निश्चय करते हैं कि वे शुकदेव जी द्वारा कही गई भागवत शास्त्र की कथा द्वारा एक ज्ञान यज्ञ करेंगे, जिससे भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का उद्धार होगा।
सत्संग और ज्ञान यज्ञ: इस प्रकार नारद जी और सनकादि ऋषि गंगा के तट पर इकट्ठा होते हैं, जहाँ सनकादि ऋषि नारद जी को भागवत महापुराण का महात्म्य सुनाते हैं। भक्ति के चारों बेटे स्वस्थ हो जाते हैं आत्मदेव ब्राह्मण की कथा वर्णन करते हुए कहा धर्मात्मा ब्राह्मण आत्मदेव निःसंतान होने के कारण दुखी रहते थे।
एक बार एक संत ने आत्मदेव को एक फल दिया और कहा कि यह फल खाकर उनकी पत्नी को एक पुत्र होगा। आत्मदेव ने अपनी पत्नी धुंधली को फल खाने को दिया, परंतु धुंधली ने फल न खाकर अपनी बहन के कहने पर गाय को खिला दिया जिससे गौकर्ण का उत्पन्न हुआ और अपनी बहन के लड़के को अपना लड़का बनाकर रखा और धुंधली ने उसका नाम नाम धुंधकारी रखा गया।धुंधकारी का दुष्ट आचरण: धुंधकारी बड़ा होकर बहुत क्रूर, लोभी और हिंसक निकला। वह वेश्याओं पर अपना सारा धन लुटा देता था।माता-पिता का कष्ट: धुंधकारी के इस व्यवहार से तंग आकर, धुंधली ने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी, और आत्मदेव सब कुछ त्यागकर जंगल चले गए।

आत्मदेव का वन गमन: आत्मदेव ने भगवान का भजन करना शुरू कर दिया और अंततः भगवान को प्राप्त हुए।
गोकर्ण का आगमन: तीर्थयात्रा से लौटने पर, गोकर्ण अपने भाई धुंधकारी की प्रेतयोनि को देख पाते थे। धुंधकारी ने गोकर्ण से मुक्ति के लिए प्रार्थना की।
भागवत कथा का प्रभाव: गोकर्ण ने अपने भाई के लिए भागवत कथा का पाठ किया, जिसे धुंधकारी ने अत्यंत एकाग्रचित्त से सुना।
और भागवत कथा के सातवें दिन उसका मोक्ष प्रदान होता है जो मनुष्य भागवत कथा श्रवण करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और प्रेत योनि में गए हुए व्यक्ति का भी प्रेत योनि से छुटकारा प्राप्त होकर उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है भागवत कथा में भक्तगण श्रद्धालुओं ने महा आरती भागवत कथा श्रवण पर पुण्य का लाभ लिया भागवत कथा में सैकड़ो की संख्या में महिला पुरुष ने कथा श्रवण कर पुण्य का लाभ लिया