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:राजकुमार मल:
भाटापारा- सक्रिय है पेनिकल माईट, ब्लास्ट, शीथ ब्लाईट और चितरी। बचाव के पूरे
प्रयास कर रहे हैं किसान लेकिन सावधान रहना होगा भूरा माहो, तना छेदक और झुलसा
जैसे कीट से जिनको मौसम और तापमान का पूरा साथ मिल रहा है।
तैयार हो रही फसल पर हमला करने के लिए।
एक फसल के सात दुश्मन। सात तरीकों से हमला। रक्षा पंक्ति मजबूत नहीं बनाई, तो यकीन मानिए हार तय है। इसलिए कीटनाशकों का छिड़काव कर रहे किसानों को तैयार हो रही फसलों की निगरानी बढ़ानी होगी क्योंकि तीन प्रकार के कीट मौका देख रहे हैं हमले के लिए उचित अवसर का।

ताकतवर यह तीन
भूरा माहो है सबसे ज्यादा खतरनाक कीट। पत्तियों के सहारे पूरे पौधे पर एक साथ हमला करता है। तना छेदक की पहचान बालियों की परिपक्वता को रोकने से होती है। तीसरा, झुलसा के नाम से जाना जाता है, जो पौधों के विकास के हर रास्ते को बंद करता है। यह तीनों उस समय की ताक में हैं, जब किसानों की निगरानी कमजोर होगी।
मौका देख रहा माहो
धान की फसलों के लिए भूरा माहो को बेहद खतरनाक कीट माना जाता है। पौष्टिक तत्व खींचने वाला यह कीट पत्तियों के रास्ते से होकर तना तक पहुंचता है। हमले के बाद पौधे पीले पड़ने लगते हैं और अंत में गिर जाते हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने बचाव के लिए फेनोब्यूकॉर्न और इमीडाक्लोरप्रिड जैसे असरकारक कीटनाशक के छिड़काव की सलाह दी है।

अचूक निशानेबाज
पत्तियों में छोटे-छोटे छेद करता है। फिर इनके सहारे ही तने में प्रवेश करता है। मजबूत ठिकाना बनाने के बाद तना छेदक नामक यह कीट बालियां निकलने का रास्ता बंद करता है। हमला इतना घातक होता है कि निकल चुकी बालियों में दाने नहीं बनते। सख्त रोकथाम के लिए करटॉप हाइड्रोक्लोराइड, क्लोरपायरीफॉस और साइपरमेथ्रीन नामक दवाई सुझाई गई है।

कहते हैं विकास का दुश्मन
झुलसा को विकास का दुश्मन इसलिए कहा जाता है क्योंकि जीवाणु जनित यह कीट पत्तियों की मदद से पूरे पौधे को बीमार करता है। आगे चलकर यह बीमारी विकास के हर रास्ते बंद कर देती है। पत्तियों का पैरा की तरह दिखना पहचान है, इस बीमारी का। कृषि वैज्ञानिकों ने इस रोग से बचाव के लिए टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड दवा के छिड़काव की सलाह दी है।

निगरानी बेहद जरूरी
धान की खेती वृहद रकबे में की जाती है लेकिन फसल की देखभाल सही नहीं होने के कारण ज्यादा पैदावार नहीं मिलती।
इसकी प्रमुख वजह कीट प्रकोप और बीमारियां हैं। समाधान के लिए फसलों की निगरानी करके कीट और रोग के
लक्षण की पहचान करें। ताकि समय रहते उचित नियंत्रण किया जा सके।
डॉ (श्रीमती) अर्चना केरकेट्टा, सह. प्राध्यापक, (कीट शास्त्र), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर