सरायपाली भी क्या कांग्रेस मुक्त होगी ?
दिलीप गुप्ता
सरायपाली। साल भर पहले राज्य में कांग्रेस की स्पस्ट बहुमत की सरकार थी । राज्य गठन के बाद पहली सरकार स्व.अजित जोगी के नेतृत्व में ढाई वर्षों तक सरकार रही । उसके बाद के चुनाव में लगातार 15 वर्षों तक डॉ रमन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी । कार्यकाल समाप्त होने के बाद अगले चुनाव में कांग्रेस की सरकार भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री काल में चली । स्व.अजित जोगी व भूपेश बघेल ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल मे राज्य व पार्टी में ऐसा माहौल बना दिया गया था कि राज्य में यह संदेश दिया गया कि मैं ही कांग्रेस व सर्वेसर्वा हूँ । दोनो नेताओ में अहम व हिटलर शाही व्यवहार के चलते पार्टी नेताओं , ब्यूरोक्रेसी व आमजनता में इसका विपरीत असर पड़ा व सभी ने मिलकर कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया । भाजपा की लगातार 15 वर्षो तक सरकार रहने से आम जनता उकता गई व पुन: कांग्रेस को अवसर दिया । किंतु प्रदेश में का ग्रेस व उनके नेताओ की आपसी खींचतान , सरकार व संगठन में तालमेल का अभाव , पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी के चलते आज छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हर क्षेत्र में लगातार बुरी पराजय हो रही है । पहले विधानसभा , नगरीय निकायों व अब त्रि स्तरीय चुनाव में कांग्रेस का लगभग पत्ता साफ हो गया है ।
राज्य में कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी व खींचें के चलते भूपेश बघेल को पंजाब का प्रभारी व महासचिव बनाकर उन्हें राज्य की राजनीति से एक तरह से बाहर ही कर दिया गया है । वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के नेतृत्व में कांग्रेस की लगातार हार से भी पार्टी आलाकमान उनसे नाराज चल रही है व उन्हें शीघ्र ही प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया जा सकता है । वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए सरगुजा के वरिष्ठ कांग्रेस नेता टी एस सिंहदेव का नाम सामने आ रहा है । इसके साथ ही पूरे प्रदेश में प्रदेश से लेकर ब्लाक स्तर तक संगठन को नए तरीके से खड़े करने के लिए प्रयास तेज कर दिए गए हैं । प्रदेश में पार्टी की स्थिति इतनी कमजोर व दयनीय हो गई है कि यदि टी एस सिंहदेव को भी प्रदेश की कमान सौंपे जाने के बाद भी कांग्रेस की स्थिति में कुछ सुधार होगा इसकी कतई भी संभावना दिखाई नही देती . क्योंकि सिंहदेव के कार्यशैली व कार्य करने का ढंग कांग्रेस व पार्टी नेताओं को पसंद आयेगी यह मुमकिन नही लग रहा है । सिंहदेव को पार्टी अध्यक्ष बनाये जाने के बावजूद भूपेश बघेल खेमा उनके कार्यो व निर्णयों पर विरोध जताते रहने से सिंहदेव को कार्य करने में काफी दिक्कतें आयेगी । विगत लोकसभा ,विधानसभा , नगरीय चुनाव के बाद अब त्रि स्तरीय पंचायत चुनावों में कांग्रेस की जबरदस्त पराजय के बाद पार्टी के उच्चस्तर पर बैठे नेताओ में भी चुनाव में हारने के आरोप लगाते हुवे आरोप प्रत्यारोप का दौर प्रारम्भ हो गया है । हारे हुवे कांग्रेस प्रत्याशी अपने ही नेताओ पर हराने के ठीकरा फोड़ रहे हैं । पूरे प्रदेश में पार्टी के अंदर हा हा कार मचा हुवा है । जिस तरह की स्थिति व परिस्थितियां निर्मित हो रही है उससे लगता है कि आने वाले समय मे अनेक प्रदेश व जिला स्तर के बड़े नेताओ का पार्टी से मोहभंग हो सकता है तथा वे पार्टी से भी इस्तीफा दे सकते हैं ।
आने वाले समय मे प्रदेश में पार्टी की लगातार कमजोर होती स्थिति ,अपने राजनैतिक भविष्य की चिंता व पार्टी में भारी उथल पुथल व भारी असंतोष को देखते हुवे क्या इसका सीधा असर सरायपाली कांग्रेस पर भी पड़ेगा ? अब यह सवाल सरायपाली के आमजनता व स्वयं कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं द्वारा उठाया जा रहा है । विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी चातुरी नन्द के विजय होने के अनेक कारण थे । कांग्रेस की सरकार होने के कारण ऐसा लग रहा था कि राज्य में कॉन्ग्रेस की पुन: सरकार बनने की संभावना नजर आ रही थी । वही एक साफ सुथरी , शिक्षित महिला व नया चेहरा का लाभ कांग्रेस को मिला तो व भाजपा में घोषित प्रत्याशी का खुद पार्टी के अंदर विरोध किया गया हॉलाकि इसे जाहिर नही किया गया । साथ ही पूर्व में जिला पंचायत अध्यक्ष रहते व उसके बाद भी सरायपाली विधानसभा में कोई उल्लेखनीय विकास व निर्माण कार्य नही कराया गया न ही बेरोजगारों को कोई रोजगार उपलब्ध कराया गया । संगठन के लोग भी कार्यशैली को लेकर काफी आक्रोशित थे । संगठन का आरोप था कि महिला मंडल व संगठन को साथ मे लेकर नही चलने से पार्टी चुनाव हार गई ।
वर्तमान विधायक चातुरी नंद का अभी तक का कार्यकाल व कार्यशैली को लोग पसंद कर रहे हैं । हर क्षेत्र में उनकी सक्रियता भी काफी उत्साहजनक रही है । किंतु नगरपालिका व त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पार्टी की शर्मनाक हार ने विधायक की छवि को प्रभावित किया है । नगरपालिका चुनाव में मात्र 1 पार्षद चुनकर आया । नपाध्यक्ष पद के लिए जरूर टक्कर दी गई पर इस चुनाव में धन व सत्ताधारी सरकार का खुलकर दबाव बनाया गया । कुछ प्रमुख दावेदारों द्वारा अध्यक्ष व पार्षद टिकिट नही मिलने से नाराज होकर बागी प्रत्याशी के रूप में खाफी हो जाने से कांग्रेस को नुकसान हुआ तो वही वार्ड क्रमांक 8 में पार्टी प्रत्याशी को बी वन प्रमाणपत्र नही मिलने से भी वह निर्दलिय प्रत्याशी के रूप में लड़ाना पड़ा । इस चुनाव में चुनाव संचालन व प्रबंधन कांग्रेस का कहीं नजर नही आया । नगर के कथित कांग्रेसी सत्ता के डर से खुलकर कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन कर पाये और न ही प्रचार में दिखे । जिसकी वजह से कुछ वार्डो में जहां कांग्रेस को विजय मिल सकती थी वहां पार्टी सफल नही हो पाई ।
इधर नगर में निर्माणाधीन बहुप्रतीक्षित गौरवपथ का निर्माण चल रहा है । इसकी मांग नगरवासियो द्वारा पिछले कई वर्षों से की जा रही थी । पिछले चुनाव में बहुमत नही होने व मात्र 3 पार्षदों के जितने के बावजूद जोड़ तोड़ कर कांग्रेस ने अपनी नगर सरकार बना ली थी व लगभग 4 वर्षो तक सरकार चली । एक बार अध्यक्ष व एक बार उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया । कांग्रेस के पास मात्र दिखावे के लिए संख्या थी किंतु भाजपा पार्षदों के बीच लंबी व बड़ी डील से दोनों अविश्वास प्रस्ताव में भाजपा हार गई । इस बीच राज्य में भाजपा की सरकार आने से समीकरण बदल गया व पुन: भाजपा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया
इस बार भाजपा को सफलता मिली । यह गौरव पथ की स्वीकृति व निर्माण कार्य कांग्रेस के समय ही हुआ । भाजपा की नगर सरकार आते ही इसके प्राक्कलन में काफी परिवर्तन कर दिए जाने से इज़के निर्माण व भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतें आने लगी । जांच में तत्कालीन सीएमओ व उपयंत्री को निलंबित भी किया गया । पर इस महत्वपूर्ण मुद्दे को कांग्रेस भुना नही पाई न ही चुनावी मुद्दा बना पाई । पूर्व में इस मुद्दे को लेकर विधायक द्वारा धरना प्रदर्शन , शिकायते , विधानसभा में प्रश्न उठाने के साथ ही मीडिया में भी काफी सक्रिय रही । किंतु पिछले कुछ माहों से जनहित के प्रत्येक क्षेत्र के मुद्दों पर विधायक की सक्रियता कम दिखाई देने , गौरवपथ निर्माण पर चुप्पी साध लेने , नगरीय चुनाव में अपेक्षाकृत कम रुचि लेने जैसे मुद्दों पर उनकी खामोसी को लोग पचा नही पा रहे हैं । जिससे विभिन्न तरह के अटकलों का बाजार गर्म है । सोशल मीडिया व आम चर्चा में यह मुद्दा काफी सक्रिय रहा कि हमेशा सक्रिय रहने वाली व गौरवपथ का प्रखर विरोध काटने वाली विधायक आखिर चुप क्यों हो गई ? कुछ लोगो ने तो पूर्व नपाध्यक्ष के साथ सेटिंग होने की भी बात कही है तो वही कुछ लोग नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव में हार का झटका से नही उबर पाने को भी बताया ।
नगर में राजनैतिक गलियारों में यह नही चर्चा है कि राज्य में कांग्रेस की डूबती नैया से अब स्वयं विधायक अपने को किनारे लगाना चाहती है । राज्य व विधानसभा में कांग्रेस की बुरी स्थिति व सुधार होने की कोई गुंजाइश नही होने को देखते हुवे यह कयाश लगाया जा रहा है कि कही विधायक कांग्रेस को अलविदा कर भाजपा में प्रवेश तो नही करेगी ? इस कयाश के समर्थन में पिछले कुछ समय से उनकी चुप्पी व गतिविधियों के साथ साथ भाजपा के कुछ लोगों से नजदीकियों को देखकर यह अहसास होने लगा है कि यह कयाश कही सच साबित न हो जाये । राज्य में कांग्रेस की उथल पुथल का असर आने वाले दिनों में सरायपाली में भी दिखने की अटकलें तेज हो गई हैं ।