सरायपाली
भीषण गर्मी की इस तपन में, केवल मानव ही नहीं, बल्कि वो नन्हें प्राणी भी तड़प रहे हैं, जिनके पास कहने को न भाषा है, न साधन।
आकाश में उड़ने वाली चिड़ियाँ, हमारी छतों पर फुदकती गौरैया, मीठे स्वर में बोलने वाले कबूतर, और सुबह-सुबह हमें जगाने वाली कोयल – ये केवल पक्षी नहीं हैं, प्रकृति की मुस्कान हैं। परंतु आज यह मुस्कान मुरझा रही है।
श्री शेषाचार्य महाराज, जिनका जीवन धर्म, सेवा और करुणा की भावना में रचा-बसा है, उन्होंने समस्त समाज से एक करुण पुकार की है:
🕊️ “यदि आप किसी की प्यास बुझा सकते हैं, तो आप ईश्वर की सेवा कर रहे हैं।
घर की छत, आंगन या बालकनी में एक जलपात्र रखें। ये छोटा-सा प्रयास किसी नन्हे प्राणी के प्राण बचा सकता है।”
आजकल की भीषण गर्मी में, जब धरती तप रही है और नदियाँ सूख रही हैं, इन पक्षियों के पास जल नहीं है। ये इधर-उधर भटकती हैं, और अक्सर तड़प कर प्राण त्याग देती हैं। क्या हमारा धर्म नहीं कि हम उनके लिए एक छोटा-सा पात्र जल का रख दें?
🌼 यह कोई भारी कार्य नहीं – यह एक भाव है,
जो भीतर से उठे करुणा का रूप है।
जैसे तुलसीदास जी ने कहा –
“पर हित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।”
शेषाचार्य जी महाराज कहते हैं:
“धर्म केवल मंदिर में दीप जलाने से नहीं,
एक चिड़िया की प्यास बुझाने से भी होता है।”
तो आइए, हम सब मिलकर इस अपील को आगे बढ़ाएँ।
अपने घर की छत या आँगन में एक प्याली जल रखें।
इसे बच्चों को भी सिखाएँ – यही संस्कार है, यही सच्ची सेवा है। यही पुकार है व यही धर्म है।