:रामनारायण गौतम:
सक्ती: 9 नवंबर 2025 रविवार को आर. सी. ए. बालिका महाविद्यालय मथुरा में हिंदी सजल सर्जना समिति के तत्वावधान में सप्तम सजल वार्षिक महोत्सव का आयोजन किया गया है जिसमें एक साथ 80 से अधिक सजल संग्रहों का सरस्वती वंदना के साथ महालोकार्पण कार्यक्रम होगा। लोकार्पण के पश्चात सम्मान-वितरण होगा तथा भोजनोपरांत दोपहर 2.00 बजे से सायं 6.00 बजे तक अखिल भारतीय सजल कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है।
जिन सजल संग्रहों का लोकार्पण किया जाना है उनमें बाराद्वार के सजलकार रमेश सिंघानिया द्वारा अपने बाबा स्व. श्री रामचंद्र सिंघानिया को समर्पित चौथा सजल संग्रह “फूल से चोटिल हुआ” भी सम्मिलित है। रमेश सिंघानिया के सजल संग्रह जिसमें उनकी 108 सजलें हैं.

इनकी भूमिका राष्ट्रीय कवि संगम के सक्ति के जिला सचिव व्याख्याता रघुनाथ जायसवाल ने लिखी है और क्षेत्र के पूर्व विधायक डा. खिलावन साहू, जांजगीर के सुविख्यात कवि सुरेश पैगवार, जे.एल.एन. डिग्री कालेज सक्ति की प्राचार्या डाॅ. शालू पाहवा और सक्ति आत्मानंद हिंदी विद्यालय के व्याख्याता देवाशीष बनर्जी ने अपनी शुभकामनाऍं प्रेषित की हैं। सजल संग्रह में 12 पृष्ठों की परिशिष्ट भी है जिसमें सजल विधा के प्रवर्तक मथुरा निवासी डाॅ. अनिल गहलौत द्वारा सजल के शिल्प से संबंधित विस्तृत विवरण दिया है जिससे सजलकारों को मार्गदर्शन तो मिलेगा ही भिन्न विधाओं में अपनी कलम चलाने वाले कवियों को काव्य की प्रभावी विधा सजल लेखन हेतु प्रेरित भी करेगा। डाॅ. अनिल गहलौत और अन्य वरिष्ठ सजलकारों ने सजल में अपरिहार्य स्थिति में ही हिंदी छोड़कर अन्य भाषाओं के शब्दों के उपयोग पर जोर दिया है। अपने आत्मकथ्य में रमेश सिंघानिया ने कहा है कि अपनी समृद्धशाली भाषा में लिखने का आनंद ही कुछ और है जिसका भरपूर अवसर हमें सजल लेखन में मिलता है। उनका कहना है कि “सजल विधा सजलकार को एक ऐसा योद्धा बना देती है जो समाज में व्याप्त दुर्व्यवस्था से लड़ने को सदैव तत्पर हो। अपनी लेखनी के माध्यम से वह समस्त पीड़ित, शोषित और दुखी जनों की पीड़ा हरने का प्रयास करता है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर प्रहार करने से भी नहीं चूकता।”

रमेश सिंघानिया का चौथा सजल संग्रह”फूल से चोटिल हुआ” उनके पूर्व में प्रकाशित तीन सजल संग्रहों “अवसर नहीं प्रतीक्षा करता”, “दोष नहीं कुछ दर्पण का” और “आदमी पत्थर हुआ” के समान पठनीय और संग्रहणीय है। उनके इस सजल संग्रह में प्रकाशित सजलों की कुछ पंक्तियां देखिए:-
बुरा हाल अखबारों का है, बदली उनकी चाल।
कलम आज तलवे सहलाती, करती नहीं सवाल।।
शुद्ध खोवे की मिठाई, आजकल मिलती नहीं।
दूध में देखो मलाई, आजकल मिलती नहीं।।
हुआ इंसान है बुढ़ा, हृदय फिर भी मचलता है।
दुबारा प्राप्त हो यौवन, यही अरमान पलता है।।
मिल न पायी जब टिकट कल, फूल की उसको यहाॅं पर।
आ गया वह देख लो तुम, आज पंजे की शरण है।।
वोट डालो तुम किसी भी, छाप में ऐ दोस्तो।
सब विरोधी बोलते हैं, चिन्ह दबता है कमल।।
चुपड़ कर रख माथे पर, छिपाना पाप वह चाहे।
कभी क्या ऑंख छिपती है, बताओ नारि चंचल की।।
दबदबा होता अमीरों का यहाॅं पर सब कहीं।
सब उन्हें अच्छा बताते, खोट हों चाहे सकल।।
सुत हैं आज शिकायत करते, बापू से अपने।
बापू तुमने मेरी खातिर, कुछ भी नहीं किया।।
बुरे कर्म को टाटा कर।
मत अच्छे में घाटाकर।।
अपने कद को खूब बढ़ा।
मत दूजों का नाटा कर।।
रमेश सिंघानिया सजल के अलावा काव्य की अन्य विधाओं दोहा, मुक्तक, गीत, छंद आदि लिखने में रूचि रखते हैं किंतु बहरहाल प्राथमिकता वे सजल को ही दे रहे हैं।।