-सुभाष मिश्र
मीडिया सबकी खबर लेता है। मीडिया की ऑंख दर असल उसके नियंताओं की आंख होती है। मीडिया वही सच दिखता है, जो वह दिखाना चाहता है। हम जिसे मेनस्ट्रीम मीडिया कहते हैं वो सिर्फ कारर्पोरेट मीडिया है। अपने व्यवसायिक हितों को ध्यान में रखकर मेनस्ट्रीम मीडिया ऐसा नेरटिव, सच रचता है जो उसे जांचता है।
अक्सर हम देखते है कुछेक समाचार पत्रों, टीवी चैनल जो मेनस्ट्री का मीडिया कहलाता है उसका कंटेट, खबरें लगभग एक सी होती है। वे तयशुदा एजेंडें पर काम करते दिखते है। पिछले दो दशक मीडिया में तेजी से बदलाव आम हो गया है। इस बदलाव का गहरा संबंध भूमंडलीकरण और बड़ी पूंजी के वर्चस्व के कारण है। आज हमारा मेनस्टीम का मीडिया लोगों के हितो की वकालत करने की बजाए उद्योग-धंधों, बड़े घरानों और बाजार के हितों की वकालत करता है। मीडिया पाठक, दर्शक को उपभोक्ता के रूप में देखता है, मनुष्य के रूप में नही। मीडिया में कार्पोरेट पूंजी, मटमैली पूंजी, क्षेत्रीय अवतरित पूंजी तथा स्थानीय गठबंधन पूंजी की वंधनीय पूंजी की मारामारी दिखाई देती है, यह महामारी की स्थिति अप-संस्कृति और अप-पत्रकारिता को ही जन्म दे रही है।
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पत्रकार पी. सांईनाथ ने अपने व्याख्याान में कुछ इसी तरह की बातें, तथ्यापक जानकरी रखी। पी सांईनाथ कहते हैं कि हम जब टीवी एंकरों को देखते हैं और उन्हें शक्तिशाली लोगों के रूप में देखते हैं, लेकिन ये बड़े-बड़े एंकर्स तब तक शक्तिशाली रहेंगे जब तक यह शक्तिशाली के साथ रहेंगे। वह पावरफुल कौन है उनका मालिक है। पत्रकार पी साइन नाथ ने कहा कि कांग्रेसी सरकार के समय 1991मैं लाई गई नई आर्थिक नीति और उदारीकरण की शुरुआत के समय देश में एक भी अरबपति नहीं था। देश में आज 211 अरबपति हैं जिनके पास हमारी एक चौथाई जीडीपी से ज्यादा संपत्ति है। एनडीटीवी में जो बड़े-बड़े एंकर थे आजकल उनके ऊपर एक प्रोग्राम बना सकता है कि कहां गए वे लोग। आपका पावर ड्राइव होता है एक्सेप्सनस है। इसमें हर सेक्टर में एक्सेप्सनस है। ऐसा एक रवीश कुमार भी है इसलिए की उनका जो ऑडियंस है उसे उन्होंने बनाया है वो कॉरपोरेट इंटरेस्ट में नहीं बनाया पब्लिक इंटरेस्ट ने बनाया। इसलिए उनका ऑडियंस उनके साथ जाता है। आज मैं समझता हूं कि हिंदी पत्रकारिता में कटिंग बेस्ड जर्नलिज्म यूट्यूब में चलता है।
जब इंटरनेट आया तो हम सबने सोचा की देखो फ्रीडम आ गया। फ्रीडम ऑफ प्रेस आ गया। इंटरनेट आपको आवाज देती है इंटरनेट आपको गारंटी देता है आपकी वॉइस के लिए लेकिन इंटरनेट यह गारंटी नहीं देती की आपको कोई सुनेगा उसके लिए आपको पे करना पड़ेगा। सब सोचते हैं कि इंटरनेट एक फ्री स्पेस है लेकिन सबसे ज्यादा मोनोपोली यही है। इंटरनेट डिजिटल मोनोपोली में 4 कंपनी है। पहले ये आठ कंपनी की थी, हो सकता है कि एक दो तक पहुंचे जाएगा। हमें ऐसा क्यों लगता है कि डिजिटल में हमें बहुत ज्यादा फ्रीडम है क्योंकि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर आप सब समझते हैं कि आप कंज्यूमर है यहां लेकिन आप प्रोड्यूसर है। आप प्रोड्यूस कर रहे हैं। आज मीडिया का मतलब क्या है? मैं समझता हूं कि डोमिनेंट मीडिया है, कॉरपोरेट मीडिया, ओनरशिप मीडिया है। अगर आप कॉरपोरेट की तरह एनालाइज करेंगे तो आप समझ आएगा कि वह कौन है और क्या है। इंडिपेंडेंस मीडिया जैसे निरंतर पहल उनके लिए एक अलग फ्रेमवर्क एनालिसिस का।
भारतीय लोकतंत्र राजनीति में केंद्रित है, ऐसा कहा जाता है। इसे यहाँ के चैनल्स खाद-पानी से पोषित करते दिखते हैं। वास्तव में इसमें लोगों के दृष्टिकोण को समृद्ध करने की, उन्हें विचार की ओर प्रवृत्त करने की अपार क्षमता है। किंतु राजनीतिक खबरों को प्राथमिकता देकर, लोगों का मनोरंजन करने के लिए ये ज़्यादा आतुर दिखते हैं। पिछले दो दशकों से पत्रकारिता, मीडिया में तेजी से बदलाव हुआ है। आज हमारे सामने तीन तरह के मीडिया उपस्थित है- एक वह, जो शासक वर्ग के पास है, दूसरा वह, जो निजी हाथों में है और तीसरा वैकल्पिक मीडिया है, जो जनता से हमदर्दी रखनेवाले लोगों के पास है। इस तीसरे मीडिया की पहुँच काफी कम है। सोशल मीडिया के नाम से लोकप्रिय हो रहे इस तीसरे वैकल्पिक मीडिया में भी धीरे-धीरे बड़ी पूँजी घर कर रही है। ऐसे में वैकल्पिक मीडिया के रूप में छोटी-छोटी लघु-पत्रिकाएँ, सामुदायिक समाचार-पत्र, रेडियो और बुलेटिन, नुक्कड़ नाटक जैसे माध्यम ही बचे हैं। जैसे-जैसे प्रेस प्रतिष्ठान में पूँजी की महिमा बढ़ती गई। पत्रकार की अपनी प्रतिष्ठा कम होती गई है। पत्रकारिता के क्षेत्र में पूँजी और व्यावसायिक बुद्धि का महत्त्व निरंतर बढ़ता गया है। उसी अनुपात में एक पत्रकार की महत्ता, प्रतिष्ठा कम होती गई है।
ऑल्बेयर कामू ने 1957 में ‘नोबेल पुरस्कारÓ लेते हुए कहा था कि हमारे काम की श्रेष्ठता के मूल्य में दो प्रतिबद्धताएँ हैं, जिनका पालन कठिन है। एक, जो कुछ कम जानते हैं, उसके बारे में झूठ बोलने से इनकार करें और दूसरा दमन का प्रतिकार करें। महात्मा गांधी ने पत्रकारिता के तीन पक्षों को रेखांकित किया है। पहला-जनता की भावनाओं को समझकर उन्हें अभिव्यक्त करना। दूसरा-लोगों में वांछनीय भावनाएँ जगाना। तीसरा-लोगों के दोष सबके सामने लाना।
संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है प्रेस को चौथा स्तंभ कहा जाता है पर क्या वाकई में यह चौथा स्तंभ आर्थिक गुलामी से आजाद है। प्रेस की स्वतंत्रता या प्रेस की स्वतंत्रता विषय पर देश के ख्याति नाम पत्रकार पी साइन नाथ का कहना है कि मीडिया में मोनोपोली है। अडानी अंबानी और कॉरपोरेट ट समूह मीडिया का संचालन कर रहे हैं।
जो लोग सोशल डिजिटल मीडिया के जरिए पोस्ट कर रहे हैं वेदर अल उन प्लेटफार्म कंपनियां के लिए मुफ्त के डिजिटल मजदूर कंटेंट क्रिएटर है जिन पर मालिकाना कंपनी चलाने वाले कॉरपोरेट का है जिनका स्थापना वह एक प्रतिशत से भी काम है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स जैसे प्लेटफार्म को मुफ्त में कंटेंट मिल रहा है।
क्या आप जानते हैं कि जिसे हम सोशल मीडिया मुफ्त का इंटरनेट कंटेंट समझते हैं, दरअसल उसे पर पूरी दुनिया की बड़ी कंपनियां का कब्जा होता है। डिजिटल मोनोपोली और इंटरनेट की दुनिया में जिस तरह की लूट मची है उसके आंकड़ों की जांच बहुत बारीकी से की जा रही है।