:दुर्जन सिंह:
बचेली: प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत चयनित हितग्राहियों को अपने आवास निर्माण हेतु सर्वाधिक जरूरत राजमिस्त्रियों की होती है जो उनके घर के प्रारंभिक ढांचे को सही मानकों अनुसार स्वरूप दे सके। और तो और कई बार तो दूरस्थ क्षेत्रों में राजमिस्त्रियों की मांग इतनी बढ़ जाती है कि दूसरे ग्रामों से राजमिस्त्रियों को आग्रह पूर्वक बुलाया जाता है।

इन परिस्थितियों के मद्देनजर प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण अंतर्गत अब राजमिस्त्रियों प्रशिक्षण सत्र आयोजित किये जा रहे है ताकि ग्राम के ही हितग्राही को आवास निर्माण की आधारभूत ज्ञान, निर्माण प्रक्रिया की सही सही जानकारी से प्रशिक्षित हो सके ताकि उनका आवास निमार्ण समय सीमा के साथ ही उनकी ही देख रेख में पूर्ण हो सके। और इस संबंध में सबसे विशेष बात यह है कि इस प्रशिक्षण सत्र में महिलाओं को भी शामिल कर आवास निमार्ण की मूलभूत तथ्य सिखाये जा रहे है।
जिले के नियद नेल्लनार ग्राम घुरली में भी राजमिस्त्रियों प्रषिक्षण सत्र का आयोजित किए गए है। जिसमें प्रशिक्षित गांव की महिला ’’पायको’’ स्वयं अपने आवास का निर्माण कर रही है। पायको बताती है कि वह पूरे आत्मविश्वास से अपने घर का निमार्ण में योगदान दे रही है। और पक्का घर बन जाने के बाद “अब मुझे और मेरे परिवार को टपकती छत और कच्ची दीवारों का डर नहीं रहेगा।

गौरतलब है कि ”प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के अंतर्गत चलाए जा रहे ग्रामीण राजमिस्त्री प्रशिक्षण कार्यक्रम ने न सिर्फ पायको जैसी अन्य ग्रामीण महिलाओं का भी सपना पूरा किया, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने की भी राह दिखाई। ज्ञात हो कि यह प्रशिक्षण सत्र 45 दिनों का निर्धारित किया गया है,
जिसमें स्थानीय मजदूरों को तकनीकी जानकारी दी जाती है और साथ ही प्रतिदिन 220 रुपये की मजदूरी भी प्रदान की जाती है। पायको भी इस प्रशिक्षण का हिस्सा बनीं और अपने घर का निर्माण खुद अपने हाथों से करने लगीं।
सिर्फ पायको ही नहीं, बल्कि नियद नेल्लानार योजना में शामिल गांव धुरली के ग्रामीण भी इस कार्यक्रम से जुड़कर अपने कच्चे मकानों को पक्के घरों में बदलने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि इस प्रशिक्षण ने उन्हें “रोजगार, सम्मान और स्थायी आश्रय” तीनों का तोहफा दिया है। पहले कच्चे घरों में रहकर बारिश और धूप से जूझने वाले ये परिवार अब अपने मजबूत पक्के घरों को देखकर गर्व महसूस कर रहे हैं। यह पहल सिर्फ घर बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीणों को आजीविका, कौशल और आत्मसम्मान से जोड़ने का भी माध्यम भी बना है।