खुल गया राज.. ताजमहल बनवाने में कितना आया था खर्च, किसने किया था इसे डिजाइन..

 अलीगढ़: मुगल बादशाह शाहजहां के द्वारा बनवाया गया ताजमहल न सिर्फ़ वास्तुकला का अद्भुत नमूना है, बल्कि उस दौर की राजनीतिक शक्ति, आर्थिक व्यवस्था और शाही दृष्टि का प्रतीक भी है. मुमताज़ की याद में बने इस मकबरे को लेकर इतिहास में किसी एक वास्तुकार का नाम दर्ज नहीं है, बल्कि यह कई लोगों का प्रयास और शाहजहां की सीधी निगरानी का परिणाम है, जिसने इसे आज विश्व धरोहर का दर्जा दिलाया.

क्या है ताजमहल के बनने की कहानी

जानकारी देते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर व इतिहासकार एम. के. पुंडीर ने बताया कि मध्यकालीन भारत के समय में जब ताजमहल का निर्माण हुआ, तब शासक यानी बादशाह न केवल राजा हुआ करता था, बल्कि वही वित्त अधिकारी और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भी माना जाता था. मुमताज़ की मृत्यु के बाद शाहजहां जब आगरा लौटता है, तो वह मकबरे के निर्माण पर गहन चर्चा करता है. उसके सामान्य सलाहकारों से लेकर दरबारियों तक कई लोग इस प्रक्रिया में शामिल थे.

कितना आया था खर्चा

Amu के इतिहासकार एमके पुंडीर के अनुसार ताजमहल को बनाने में उस वक्त 22 करोड रुपए से ज्यादा की लागत आई थी. तो वहीं इसे बनाने में 22 साल का समय लगा था, जिसके लिए 20,000 मजदूरों ने दिन-रात काम किया.

किसी एक आर्किटेक्ट का नहीं है नाम

समकालीन ऐतिहासिक स्रोतों से हमें कुछ नाम अवश्य मिलते हैं. इनमें आसिफ खान का उल्लेख विशेष रूप से किया जाता है, जिन्हें ताजमहल की कैलीग्राफी और सजावटी पैटर्न्स के लिए जाना जाता है. इसी तरह इनायत खान का भी योगदान सामने आता है. हालांकि, समकालीन साहित्य में किसी एक विशिष्ट आर्किटेक्ट का नाम नहीं मिलता, लेकिन इतना स्पष्ट है कि शाहजहां ने अनेक विशेषज्ञों को एकत्र किया और स्वयं भी इस पूरी प्रक्रिया में पूरी तरह से भाग लिया.

कौन है ताजमहल का मुख्य वास्तुकार

इतिहासकार एम. के. पुंडीर बताते हैँ कि शाहजहां को ही ताजमहल का मुख्य वास्तुकार माना जा सकता है, क्योंकि वह स्वयं बैठकर निर्माण और सजावट से संबंधित निर्णय लेता था. क्रेडिट किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता. आसिफ खान और अन्य लोगों का योगदान उनकी-अपनी योगियता जैसे सजावट, पेंटिंग और कैलीग्राफी में था. जहां तक बजट और खर्च का सवाल है. शाहजहां के समय मुगल साम्राज्य की फाइनेंस स्थिति बहुत मजबूत थी. उस समय बजटिंग का तरीका आज के आधुनिक समय जैसा नहीं था. शाहजहां के खजाने में पर्याप्त धन था और उसने इस कार्य में बेहिचक भारी निवेश किया.

मकराना पत्थर का इस्तेमाल

इतिहासकार का कहना है कि इतिहास में एक ऐसा हिस्सा मिलता है कि जब मिर्जा राजा जय सिंह ने शाहजहां को सूचना दी कि मकराना क्षेत्र में सफेद पत्थर (संगमरमर) मिला है, तो शाहजहां ने आदेश दिया कि यह सारा संगमरमर आगरा भेजा जाए. चूंकि उस समय खनिजों और निर्माण सामग्री पर शासक का स्वामित्व होता था. इसलिए इसका कोई भुगतान नहीं किया गया. केवल परिवहन का खर्च उठाया गया. इस प्रकार ताजमहल के निर्माण में मुगल बादशाह की सीधी निगरानी, भारी निवेश और प्रयास शामिल थे. जिसने इसे विश्व का ऐतिहासिक स्मारक बना दिया.

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