:राजकुमार मल:
भाटापारा- कर्नाटक, केरल, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद अब छत्तीसगढ़ में
भी जैविक अंडों का व्यावसायिक उत्पादन होगा। कम कोलेस्ट्रॉल, ओमेगा-3 फैटी एसिड
की मात्रा सामान्य अंडे से तीन गुना ज्यादा। विटामिन-ई और बीटा कैरोटीन का स्तर भी
ज्यादा होता है जैविक अंडे में। यही वजह है कि इसे सुपर बाजार और माॅल के काउंटर में
देखा जा रहा है। मांग इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि पोषण मूल्य सामान्य अंडे से कहीं ज्यादा है।

प्रयोग सफल रहा
बिलासपुर, राजनांदगांव और कबीरधाम। जैविक अंडों के उत्पादन के लिए पहचान बना रहे हैं। सालाना उत्पादन 5 लाख नग के बाद अब ऐसे शहर में भी संभावनाएं खोजी जा रहीं हैं, जहां सामान्य अंडे की खपत ज्यादा है। प्रारंभिक सर्वेक्षण में राजधानी रायपुर, दुर्ग, कोरबा और रायगढ़ को जैविक अंडों के उत्पादन के लिए सही पाया गया है।
यहां बिक्री खूब
पोषण मूल्य से भरपूर जैविक अंडे अब सुपर बाजार और माॅल के काउंटर में नजर आने लगे हैं। अधिकतर उपभोक्ता ऐसे हैं, जो नियम से प्रतिदिन जिम जाते हैं। जहां नियमित खानपान में जैविक अंडों के सेवन की भी सलाह जिम ट्रेनर देते हैं। इसके अलावा चुनिंदा एग सेंटरों में भी जैविक अंडों की बिक्री शुरू हो चली है।

जानिए जैविक अंडे को
जैविक अंडे ऐसे अंडे हैं, जो जैविक पद्धति से पाली हुई मुर्गियों से प्राप्त होते हैं। इन मुर्गियों को रासायनिक या सिंथेटिक चारा की बजाय जैविक आहार दिया जाता है। गहरा पीला होता है जैविक अंडों का रंग। सामान्य अंडे की अपेक्षा हल्का फीका होता है इसका स्वाद। ओमेगा- 3 फैटी एसिड की मात्रा सामान्य से दो से तीन गुना ज्यादा होती है। विटामिन-ई और बीटा कैरोटीन की अधिक मात्रा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत एवं मस्तिष्क को सेहतमंद बनाए रखते हैं।

सराहनीय पहल
जैविक अंडों का उत्पादन न केवल पोषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सतत कृषि और पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी लाभकारी कदम है। जैविक पद्धति से पाली जाने वाली मुर्गियां रासायनिक मुक्त चारे पर आधारित होती हैं, जिससे उत्पादित अंडों में हानिकारक अवशेष नहीं होते। इनमें पाए जाने वाले ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन-ई और बीटा कैरोटीन मानव स्वास्थ्य के लिए विशेष रूप से लाभदायक हैं। छत्तीसगढ़ जैसे कृषि प्रधान राज्य में जैविक अंडों का व्यावसायिक उत्पादन ग्रामीण आजीविका सुदृढ़ करने और जैविक कृषि श्रृंखला को बढ़ावा देने की दिशा में एक सराहनीय पहल कही जा सकती है।
:अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर: