:राजकुमार मल:
भाटापारा- गुलाब नहीं, हूबहू गुलाब जैसा। नाम है उसका यूस्टोमा ग्रेंडीफ्लोरम।
चार श्रेणियां में आने वाले इस पुष्पीय पौधे में सात रंग के
फूल लगते हैं। यही खूबियां यूस्टोमा को फूलों की खेती करने वाले किसानों तक पहुंचा रही है।
गुलदस्ता और पुष्प सज्जा में जैसी वरीयता उसे यूस्टोमा ग्रेंडीफ्लोरम को मिल रही है उससे फूल बाजार खुश है क्योंकि इसके फूल एकदम गुलाब जैसे होते हैं। भरपूर मांग और उच्च कीमत को देखते हुए अब फूलों की खेती किसानों के बीच पौधे की मांग बढ़ने लगी है।

गुलाब जैसा
उत्पादन क्षमता के आधार पर विकसित यूस्टोमा ग्रेंडीफ्लोरम की चार श्रेणियां बनाई गई हैं। इन्हें इको, मारियाची, रोसिता और एरेना के नाम से पहचाना जाता है। इनमें सफेद, गुलाबी, बैंगनी, नीला, पीला, लैवेंडर और द्विरंगी पुष्प लगते हैं। बड़े, गोल और मुलायम पंखुड़ियां वाले होने की वजह से ही यह एकदम गुलाब की तरह दिखता है। फूल बाजार इसे गुलाब का शानदार विकल्प मान रहा है।

इस मिट्टी में शानदार
हल्की दोमट मिट्टी में भरपूर उत्पादन देने वाला पुष्पीय पौधा यूस्टोमा ग्रेंडीफ्लोरम का बीज 10 से 15 दिन के भीतर अंकुरित हो जाता हैं। पूर्ण विकसित होने में यह पौधा 8 से 10 सप्ताह का समय लेता है। बेहतर परिणाम के लिए पॉलीहाउस को उपयुक्त माना गया है। अपने छत्तीसगढ़ में इसकी व्यावसायिक खेती बिलासपुर, कोरिया और सरगुजा जिले में की जा सकती है।
आर्थिक महत्व
पुष्प सज्जा, गुलदस्ता और बुके के लिए आदर्श माना जा चुका यूस्टोमा ग्रेंडीफ्लोरम का फूल 10 से 15 दिन तक ताजा रहता हैं। व्यावसायिक खेती भले ही संवेदनशील हो लेकिन सही तकनीक और उचित प्रबंधन से अत्यधिक उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

फूलों की खेती के लिए एक उभरता हुआ अवसर
यूस्टोमा ग्रेंडीफ्लोरम एक उच्च मूल्य का कट-फ्लावर है, जिसकी बढ़ती मांग इसे किसानों के लिए लाभकारी विकल्प बनाती है। पुष्प आकार, रंग विविधता और लंबी शेल्फ लाइफ इसे गुलाब का उपयुक्त विकल्प बनाते हैं। नियंत्रित परिस्थितियों वाले पॉलीहाउस में उन्नत नर्सरी तकनीक, संतुलित पोषक प्रबंधन और रोग-कीट नियंत्रण अपनाकर किसान उत्कृष्ट उत्पादन और गुणवत्तापूर्ण फूल प्राप्त कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ की हल्की दोमट मिट्टी और बिलासपुर–कोरिया–सरगुजा जैसे ठंडे क्षेत्रों में इसकी व्यावसायिक खेती की संभावना अत्यधिक है।
डॉ. संजय कुमार वर्मा, मुख्य वैज्ञानिक, क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र, बीटीसीकार्स, बिलासपुर