रायपुर: राष्ट्रीय मुक्तिबोध नाट्य समारोह का भव्य आयोजन राजधानी रायपुर में
12 से 16 नवंबर तक होने जा रहा है. जिसमें देश भर के जाने माने साहित्यकार,
रंगकर्मी अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेरेंगे. पांच दिवसीय इस उत्सव में
कहानी और नाटकों का मंचन होगा साथ ही कविता पाठ भी किया जाएगा
राष्ट्रीय मुक्तिबोध नाट्य समारोह के दूसरे दिन यानि 13 नवंबर को गजानन माधव मुक्तिबोध की कविताओं की भी प्रस्तुति होगी. क्योंकि इस दिन गजानन माधव मुक्तिबोध की जयंती भी है. इसीलिए प्रारंभ में मुक्तिबोध की कुछ कविताएं और अन्य कविताओं अन्य कवियों की कविताओं का पाठ भी किया जाएगा.

कविता पाठ डॉक्टर सुयोग पाठक, श्रीमती रचना मिश्रा और साथियों के द्वारा किया जाएगा. इस बार के नाट्य महोत्सव में पुस्तकों की प्रदर्शनी, पुस्तकों का बिक्री स्टॉल के अलावा अवधेश बाजपेई की पेंटिंग की प्रदर्शनी और रायपुर की महिला पेंटरों की प्रदर्शनी भी आयोजित की जा रही है. युवा और बाल प्रतिभाओं को अवसर देने के लिए टैलेंट हंट के जरिए भी मौका दिया जा रहा है. इससे भी लोगों का जुड़ाव थिएटर से होगा.
कविताओं की प्रस्तुति के बाद रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की अमर कृति “रश्मिरथी” का भी मंचन होगा. “रश्मिरथी”भारतीय साहित्य का वह महाकाव्य है, जिसमें महाभारत के रणभूमि में जन्मे नायक दानवीर कर्ण के जीवन, संघर्ष और आत्मसम्मान की गाथा अंकित है।
कर्ण जो सूर्यपुत्र होते हुए भी समाज के पूर्वाग्रहों, वर्ग और जन्म की दीवारों से जूझता है । ‘रश्मिरथी’ उस प्रकाश का प्रतीक है जो न्याय, करुणा और मानवीय गरिमा के लिए संघर्षरत रहता है। इसी काव्य को एकल अभिनय के रूप में रूपांतरित कर रंगमंच पर प्रस्तुत करने का अद्भुत कार्य किया है अभिनेता एवं निर्देशक हरीश हरिऔध ने।

यह प्रस्तुति इतिहास में पहली बार सम्पूर्ण 108 पृष्ठों के खंडकाव्य को एक ही मंच पर, एक ही अभिनेता द्वारा जीवंत करने का प्रयास है। अब तक इस प्रकार की पूर्ण प्रस्तुति किसी ने नहीं की है। यही इसे अद्वितीय और ऐतिहासिक बनाती है।
“रश्मिरथी एकल अभिनय का आरंभ 27 मार्च 2024, विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर हुआ।
अब तक 20 प्रस्तुतियाँ देश के विभिन्न शहरों में सफलतापूर्वक हो चुकी हैं, और 21वीं प्रस्तुति रायपुर के रंगमंदिर, गांधी चौक में होने जा रही है।
इस प्रस्तुति को देश के कई प्रख्यात अभिनेताओं और रंगकर्मियों ने देखकर इसकी कलात्मक गहराई, अभिनय की तीव्रता और नाट्यशास्त्रीय अनुशासन की सराहना की है।
कई वरिष्ठ कलाकार इसे देखने की उत्सुकता व्यक्त कर चुके हैं।

हरीश हरिऔध का यह प्रयास केवल अभिनय नहीं, बल्कि कर्ण के चरित्र के माध्यम से मानवता, धर्म और स्वाभिमान की उस ज्योति को पुनः प्रज्ज्वलित करने का संकल्प है, जो दिनकर की कविता के भीतर जलती है। विपदाओं में जो न डगमगाया, सत्य पर अडिग रहा वही कर्ण था।