Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- आस्था का महाकुंभ

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

ऐसे समय जब पूरे देश में सनातन की अनुगूंज चारों ओर सुनाई दे रही हो और केंद्र तथा राज्य की सरकार भी सनातन की परंपरा को आगे बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हो, ऐसे समय में 144 साल बाद कुम्भ का महायोग पौष पूर्णिमा सोमवार को आया हो तो लाजि़मी है कि पहले स्नान में गंगा में करोड़ों लोग एक साथ डुबकी लगाएं। आस्था के इस स्नान में बहुतों का कल्याण हो जाएगा। 45 दिवसीय इस आयोजन की शुरुआत 13 जनवरी से हुई है और ये 26 फरवरी को समाप्त होगा। इस बीच देश-विदेश से 45 करोड़ श्रद्धालुओं के प्रयागराज आने की उम्मीद है। आस्था, भक्ति और आध्यात्मिक एकता के इस महापर्व में पहले ही दिन 1 करोड़ 75 लाख लोगों के संगम स्नान की सूचना मीडिया में है। 13 अखाड़ों के साथ देश-दुनिया के बहुत सारे साधु-संत-श्रद्धालु गंगा तट पर आ-जा रहे हैं। मीडिया सैनिकों के साथ साधु-संतों की तुलना कर रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि जिस तरह से सैनिक देश की रक्षा कर रहे हैं उसी तरह अलग-अलग अखाड़ों से जुड़े साधु-संत सनातन की रक्षा में लगे हैं।
इस कुम्भ का जितना धार्मिक और पौराणिक महत्व है, उतना ही इसका राजनीतिक महत्व भी है। 2024 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद 2025 का कुंभ मेला है। यह आयोजन चुनाव के परिणाम और आगे की राजनीति को प्रभावित कर सकता है। देश की राजनीति में उत्तरप्रदेश अहम भूमिका निभाता है, अब तक के अधिकांश प्रधानमंत्री उत्तरप्रदेश का ही प्रतिनिधित्व करते रहे हैं ऐसे में उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में यह कुम्भ प्रशासन की छबि को बनाने में अहम भूमिका निभाएगा और पूरे देश में कुम्भ के ज़रिये हिन्दुत्व और सनातन का नया शंखनाद होगा। यही वजह है कि पूरी भाजपा कुम्भ में डुबकी लगाने में लगी हुई है। सरकार की नीतियों पर संतों की प्रतिक्रिया और समर्थन भविष्य की नीतियों को आकार देने में मददगार हो सकती है। वहीं विपक्ष का रवैया इसको लेकर थोड़ा नकारात्मक है। विपक्षी दल आयोजन में सरकार की खामियों को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं। इस विशाल जनसैलाब वाले महाकुम्भ में पर्यावरणीय मुद्दे, भीड़ प्रबंधन और सार्वजनिक धन के उपयोग जैसे विषयों पर सवाल उठ सकते हैं। सरकार कुंभ मेले को वैश्विक स्तर पर भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रस्तुत कर सकती है। विपक्षी हमेशा से भाजपा को धर्म की ध्वजा का उपयोग राजनीति में करने का आरोप लगाते रहे हैं, उन्हें लगता है कि भाजपा लोगों की आस्था का इस्तेमाल वोट बैंक बनाने के लिए कर सकती है। कई संत और अखाड़े राजनीतिक दलों के प्रति समर्थन जताते हैं, जिससे आयोजन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होंगे। महाकुंभ मेला 2025 केवल धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं है। यह राजनीति, प्रशासन और समाज के विभिन्न पहलुओं का संगम है। नेताओं और दलों के लिए यह अपनी छबि निर्माण और जनता के बीच जुड़ाव का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
भारत की सनातन संस्कृति, आध्यात्म और आस्था का प्रतीक महाकुंभ मेला आज से संगम नगरी प्रयागराज में शुरू हो गया। पौष पूर्णिमा का अमृत स्नान में सुबह से ही श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती (अदृश्य) नदी के संगम में डुबकी लगाते दिखे। देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से साधु-संतों समेत 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। 13 जनवरी को पहले स्नान की शुरुआत सुबह 4.32 मिनट से शुरू हुई जिसमें 13 आखाड़ों के साधु-संतो ने बारी-बारी से स्नान किया।
महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार होता है। महाकुंभ में दुनिया भर के संत-साधु व भक्त आस्था की डुबकी लगाते हैं। इस धार्मिक आयोजन में शाही स्नान का विशेष महत्व है, जिसे अमृत स्नान भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शाही स्नान के दौरान पवित्र नदियों में डुबकी लगाने से पापों का प्रायस्चित होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। अमृत स्नान लोगों को आध्यात्मिकता के करीब लाता है। प्रयागराज का महाकुंभ मेला करीब 4000 हेक्टेयर भूमि पर फैला है और इसे 25 सेक्टरों में बांटा गया है। उत्तर प्रदेश शासन ने महाकुंभ मेला परिक्षेत्र को राज्य का 76वां जिला घोषित किया है। इस साल का महाकुंभ बेहद शुभ माना जा रहा है, क्योंकि ज्योतिषियों के मुताबिक 144 साल बाद ग्रहों का दुर्लभ संयोग बन रहा है। इस दिन सूर्य, चंद्रमा, शनि और बृहस्पति ग्रहों की शुभ स्थिति बन रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि ऐसा दुर्लभ खगोलीय संयोग समुद्र मंथन के दौरान बना था। महाकुम्भ में आसानी से स्नान हो सके इसके लिए संगम तट पर कुल 44 घाट तैयार किए हैं। संगम घाट प्रयागराज का सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण घाट है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती (अदृश्य) तीन पवित्र नदियों का संगम होता है। इसलिए इसे त्रिवेणी घाट के नाम से भी जानते हैं।
महाकुंभ में अखाड़े आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं। अखाड़ों की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी, कहा जाता है कि उन्होंने सनातन की रक्षा के लिए शस्त्र विद्या में निपुण साधुओं के संगठन बनाए थे। अभी कुल 13 अखाड़े हैं, जिन्हें तीन श्रेणियों शैव, वैष्णव और उदासीन में बांटा गया है। शैव संप्रदाय के कुल 7 अखाड़े हैं, इनके अनुयायी भगवान शिव की पूजा करते हैं। वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं, इनके अनुयायी भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करते हैं. उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं, इनके अनुयायी की पूजा करते हैं। अनन्त शक्ति का प्रतीक है। महाकुंभ 2025 में पहला शाही स्नान मकर को सम्पन्न हुआ। महाकुंभ में शाही स्नान की अन्य तिथियां 29 जनवरी को मौनी अमावस्या, 3 फरवरी को बसंत पंचमी, 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है। महाशिवरात्रि के दिन शाही स्नान के साथ ही महाकुंभ का समापन होगा।
केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि महाकुंभ में 15 लाख से अधिक विदेशी पर्यटकों के आने की उम्मीद है। पर्यटन मंत्रालय ने विदेशी मेहमानों को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेद, योग और पंचकर्म जैसी सुविधाएं प्रदान करने वाला एक टेंट सिटी स्थापित की है। महाकुंभ के सेक्टर 7 में 10 एकड़ में कलाग्राम बनाया गया है, जहां भारतीय सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया जाएगा। इसमें चार धाम, 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृति वाला एक भव्य प्रवेश द्वार एक अनंत कुंभ प्रदर्शनी और देश की विविधता को प्रदर्शित करने वाले 7 सांस्कृतिक प्रांगण बनाये गए हैं। 230 से अधिक शिल्पकार भारत के पारंपरिक कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। भारतीय रेलवे ने महाकुंभ के लिए 3000 स्पेशल ट्रेनें शुरू की हैं। ये ट्रेनें 13 हजार से अधिक फेरे लगाएगी। प्रयागराज जंक्शन के अलावा 8 सब-स्टेशन बनाए गए हैं, ये सब-स्टेशन रेलवे के तीन जोन उत्तर मध्य रेलवे, उत्तर रेलवे और पूर्वोत्तर रेलवे में बांटे गए हैं।
महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मेला प्रशासन की तरफ से ठहरने की व्यापक व्यवस्था की गई है। मेला क्षेत्र में 10 लाख लोगों के रुकने की व्यवस्था की गई है। गूगल प्ले स्टोर पर महाकुंभ 2025 का ऑफिशियल ऐप Maha Kumbh Mela 2025 के नाम से उपलब्ध है। इस ऐप में महाकुंभ से जुड़ी सारी जानकारियां तो हैं ही, साथ ही मेले का पूरा मैप भी है। इसमें घाटों एवं मंदिरों की लोकेशन के साथ शहर के जो प्रमुख स्थल है उनकी भी जानकारी मौजूद है।
एक ओर जहां मीडिया में देश का सबसे बड़ा इवेंट कुम्भ का मेला बना हुआ है और पूरी दुनिया की नजऱ इस आस्था के जनसैलाब को अचंभित होकर देख रही है, वहीं विपक्ष की सरकारें भी पीछे नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी की तस्वीर के साथ गंगा सागर में आकर डुबकी लगाने का आग्रह भी मीडिया में प्रमुखता से प्रचारित-प्रसारित हो रहा है। ऐसा कहा जाता है कि सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार। अब सरकारें अच्छी तरह से समझने लगी है कि देश में धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन तेजी से बढ़ रहा है यही वजह है कि अब राज्य की सरकारें भी अपने यहां के धार्मिक पर्यटन स्थलों को ज्यादा प्रमोट करने में लगी हुई है।
कबीर दास की तरह अब हम भी कह सकते हैं-
धर्म ध्वजा लहराई रे साधो धर्म ध्वजा लहराई।

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