राजधानी रायपुर के प्रेस क्लब में ‘लोकजतन सम्मान’ समारोह का आयोजन हुआ. इस अवसर पर “लोकतांत्रिक भारत में पत्रकारिता की चुनौतियां” विषय पर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का व्याख्यान हुआ. ‘लोकजतन सम्मान’ समारोह में बस्तर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर को मरणोपरांत लोक जतन सम्मान दिया गया. जिसे पूनम वासन ने ग्रहण किया है.

सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए बादल सरोज ने कहा कि जनता की आवाज को कुचलने और वास्तविकता को रोकने का प्रयास लंबे समय से हो रहा है. योजनाबद्ध तरिके से कोशिश हो रही है. अब यह कोशिश व्यापक हो गई है. जिसमें कई बड़े मीडिया हाउसेस भी शामिल हो गए हैं. उन्होने तो शपथ ले ली है कि वे विवेक और सत्य की बात लोगो के बीच में नही करेंगे. ऐसी ही दौर के लिए एक शेर है कि जुगनुओं का साथ लेकर रात रोशन कीजिए रास्ता सूरज का देखा तो सुबह हो जाएगी. ऐसे जितने जुगनु है वो रोशनी के प्रभाव में के मामले में कितने भी सीमित क्यों न हो एक जुगनु अपनी रोशनी से रात के अंधेरे को रोशन कर देता है. मुकेश चंद्राकर भी ऐसे ही जुगनु थे. मुकेश चंद्राकर के भाव को लेकर चलने वाला लोकजतन भी ऐसा ही अखबार है. जो अपने दम पर काम कर रहा है. पीछे बंधे हैं हाथ मगर शर्त है सफर, किससे कहें की पांव का काटा निकाल दों.
न हम सफर न किसी हमनशी से निकलेगा,
हमारे पांव का काटा हमीं से निकलेगा.

वरिष्ठ पत्रकार और सम्मान समारोह के मुख्य वक्ता उर्मिलेश ने कहा कि आज के समय में मीडिया की भूमिका भी संदेह के दायरे में है. खासकर महानगरों और बड़ें केंद्रों में पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के प्रपंच हो रहा है तमाशा हो रहा है. ये सब देखकर बहुत ताज्जुब होता है. संविधान में सेक्युलर शब्द को लेकर उन्होने कहा कि आज कल इसे लेकर लोग कई सवाल कर रहे हैं. इस पर भी बात करना अति आवश्यक है. क्योंकि किसी झूठ को बारबार और तेज अवाज में प्रसारित करने से लोग उसे सत्य मान लेते है. और सत्य को झूठ समझने लगते हैं. जो लोग इस सच से परिचित है वो लोग अपनी बात को दूर तक ले जाने में कामयाब नही हो पा रहे है. आज के दौर में सच को प्रसारित किए जाने का समय है. क्योंकि सच को अपने पास रखने से कोई मतलब नही है. क्योंकि आज कल झूठ प्रचारित करने की कई मशीनें है. और ये मुख्यधारा की मीडिया ही है.

प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने कहा कि सरकार चाहे किसी भी दल का क्यों न हों पत्रकारिता पर लगाम कसने का काम करती है. पत्रकारों को स्वतंत्रता नही देती है.

वरिष्ठ अधिवक्ता कनक तिवारी ने मजाकिया अंदाज में कहा कि हंसों के सम्मेलन में बगुले को बुलाने की क्या आवश्यकता है. यहां कई वरिष्ठ पत्रकार है. वे यहां मौजूद लोगों को बताना चाहते है कि वे भी बहुत पुराने पत्रकार हैं. साल 1971 में उन्होने पत्रकारिता की शुरूआत की थी. उन्होने कहा कि आज के दौर में लोग मधुकर खेर को भूल जाते हैं. लेकिन उनके जैसा प्रसारणशील पत्रकार कोई नही था. श्री तिवारी ने बताया कि वे आरएसएस के अखबार मदरलैंउ जार्ज फर्नांडिज के अखबार प्रतिपक्ष समेत कई अखबारो का संवाददाता था. भिालाई प्रेस क्लब की स्थापाना भी उनके द्वारा की गई.

कवयित्री पूनम वासन ने मुकेश चंद्राकर को याद करते हुए कहा कि वे उन्हें काफी समय से जानती है. जब उनकी शादी हुई तब मुकेश तीसरी या चैथी क्लास में पढ़ता था. उसने छोटे से गांव से राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई. वे सिस्टम से भी लड़े और बस्तर की आवाज बनकर उभरे थे.

वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध ने कहा कि जो सत्ता पक्ष की बात करें तो दमन चक्र हमेश चलता रहेगा. लेकिन इसके खिलाफ खड़े होने का साहस और जुझारूपन कम हो गया है. मुकेश से कभी मुलाकात नही हुई पर मैं उनका कार्यक्रम देखता था और उसे फोन पर बात किया करता था.खुशी होती थी कि एक युवा नक्सल इलाके में वहां की परिस्थितियों से लड़ कर अपनी पहचान बना रहा था.
