krishnaiah murder case सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन को पासपोर्ट जमा करने को कहा

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krishnaiah murder case सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन को पासपोर्ट जमा करने को कहा

krishnaiah murder case नयी दिल्ली !   उच्चतम न्यायालय ने 1994 में बिहार के गोपालगंज के तत्कालीन जिला अधिकारी जी. कृष्णैया की निर्मम हत्या मामले में उम्रकैद के दोषी पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह को अपना पासपोर्ट स्थानीय पुलिस थाने में जमा कराने के और हर 15 दिन पर वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का मंगलवार को निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कृष्णैया की विधवा तेलुगू उमादेवी कृष्णैया की रिट याचिका पर केंद्र सरकार को अपना जवाबी हलफनामा देने का आखिरी मौका देते हुए यह निर्देश दिया।

पीठ ने आपना आदेश पारित करते हुए कहा,“प्रतिवादी (आनंद मोहन) को अपना पासपोर्ट तत्काल स्थानीय पुलिस स्टेशन में जमा कराने के साथ-साथ हर 15 दिन पर वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहिए।”

याचिका में आनंद मोहन को उम्र कैद की पूर्व निर्धारित सजा पूरी होने से पहले रिहा करने के फैसले को चुनौती दी गई है।

krishnaiah murder case बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 को 10 दिसंबर 2002 के बिहार जेल नियमावली में संशोधन किया। इसके बाद राज्य सरकार ने बाहुबली नेता माने जाने वाले आनंद मोहन को 24 अप्रैल 2023 को जेल से रिहा करने का आदेश सहरसा जिला प्रशासन को दिया था। आदेश के बाद जेल प्रशासन ने 27 अप्रैल को उन्हें रिहा कर दिया था।

मृतक की विधवा उमादेवी ने पिछले साल मई में आनंद मोहन की रिहाई करने के फैसले और जेल नियमावली संशोधन के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाकर्ता ने आनंद मोहन के अलावा राज्य सरकार, केंद्र सरकार और अन्य को भी प्रतिवादी बनाया था।

तेलंगाना निवासी भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 1985 कैडर के 37 वर्षीय अधिकारी कृष्णैया की मुजफ्फरपुर जिले में स्थानीय गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम की अंतिम यात्रा में शामिल भीड़ में से कुछ लोगों को पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। जिला अधिकारी के वाहन को उस शव यात्रा से आगे ले जाने की कोशिश करने पर भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया था।

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krishnaiah murder case आनंद मोहन को पांच अक्टूबर 2007 को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ दायर आनंद मोहन की अपील पर 10 दिसंबर 2008 को पटना उच्च न्यायालय राहत देते उन्हें दी गई मौत की सजा को कठोर उम्र कैद बदल दिया था। उच्च न्यायालय के इस फैसले की 10 जुलाई 2012 को शीर्ष न्यायालय न्यायालय ने पुष्टि की थी।

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