Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – नाकामियों से टूटे नहीं, सीखें

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आज छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने दसवीं और बारहवीं के नतीजे जारी कर दिए। इस बार भी छात्राओं ने बाजी मारी, बारहवीं में करीब 80 फीसदी से ज्यादा और दसवीं में 75 फीसदी से ज्यादा बच्चे सफल रहे। जिन छात्रों ने इन परीक्षाओं में सफलता हासिल की है उन्हें हर तरफ से बधाई और शुभकामनाओं का दौर चल पड़ा है। वे इसके हकदार भी हैं लेकिन जिन छात्रों को इस बार सफलता नहीं मिल पाई है। उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है। ये परीक्षा पूरी जिंदगी के सफलता और असफलता का पर्याय नहीं है। ये सिर्फ एक पड़ाव है। इस परीक्षा में जिन छात्रों को किसी भी कारण से सफलता नहीं मिल पाई वो किसी भी तरह हताश न हों। छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा जारी नतीजे में बड़े शहरों के बजाय ग्रामीण और कस्बाई इलाके के बच्चों ने बाजी मारी है, इससे ये साफ होता है कि राजधानी रायपुर समेत दूसरे बड़े शहरों में सीजी बोर्ड से ज्यादा केन्द्रीय बोर्ड से पढ़ाई करने में ज्यादा भरोसा जताया जा रहा है। लगभग सभी बड़े प्राइवेट स्कूल सीबीएससी से संबंद्ध है।
वहीं ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में राज्य के बोर्ड से पढ़ाई ज्यादा हो रही है, शहरों में महंगे स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे भी ट्यूशन और कोचिंग के भरोसे पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी भी सरकारी स्कूलों या सरस्वती शिशु मंदिरों के जरिए ही पढ़ाई करते हैं, कम संसाधनों के बाद भी इन बच्चों ने जिस तरह सफलता हासिल की है उसकी हौसला अफजाई सभी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने आज जारी हुए दसवीं और बारहवीं बोर्ड के परीक्षा परिणाम पर सभी उत्तीर्ण विद्यार्थियों को अपनी बधाई एवं शुभकामनाएं दी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि जिन बच्चों के परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं आए उनको निराश नहीं होना है। निरंतर मेहनत करते रहें, भविष्य में और बेहतर करने के कई मौके मिलेंगे। एक दिन सफलता जरूर आपके कदम चूमेगी।
आज सफलता पाने तक को पर्याप्त नहीं माना जा रहा है। आज टॉप करने को ही सर्वमान्य मान लिया गया है। जैसे बोर्ड के एक्जाम हो या फिर कोई दूसरी प्रतियोगी परीक्षाएं बच्चों के साथ ही अभिभावक भी जनम-मरण का विषय बना लेते हैं। इसमें सबसे खतरनाक रोल प्ले कर रहा है बाजारवाद। दरअसल कोचिंग संस्थान और महंगे प्राइवेट स्कूल इसी का लालच और भ्रमजाल का पैदा कर अपनी रोटी सेंक रहे हैं।
बोर्ड परीक्षाओं का दबाव कई बार बच्चों के लिए नुकसानदेय साबित हो जाता है। दरअसल, परीक्षा का बोझ और अच्छे नंबरों से पास होने का दबाव कई बार बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इस वर्ष यूपी बोर्ड की परीक्षा का रिजल्ट आने के पहले ही प्रयागराज के एक हाईस्कूल के छात्र ने केवल इसलिए खुदकशी कर ली क्योंकि उसे डर था कि वह परीक्षा में फेल हो जायेगा। इस बच्चे ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि उसे फेल होने का डर है। इस वजह से वह आत्महत्या कर रहा है। बात करें छत्तीसगढ़ की तो यहां एक हफ्ते के भीतर ही कोरबा जिले के एक छात्र ने बारहवीं की परीक्षा में असफल होने के डर से मौत को गले लगा लिया। कोरबा जिले के फतेगंज में रहने वाला यह छात्र बायो विषय लेकर पढ़ाई कर रहा था। बोर्ड परीक्षा के बाद से ही वह काफी परेशान था। इस बीच रिजल्ट आने से पहले उसने यह कदम उठा लिया ।
नीट और जेईई की परीक्षा की कोचिंग के लिए बड़े हब के तौर पर चर्चित राजस्थान के कोटा से जिस तरह की खबरें पिछले कुछ सालों में आई हैं, वो झकझोरने वाले हैं और सफलता के लिए समाज में तैयार हो रही सनक पर फिर से विचार करने पर मजबूर करते हैं। यहां हर साल डॉक्टर और इंजीनियर बनने के ख्वाब लिए हजारों छात्र आते हैं और उनमें से कई दबाव को झेल नहीं पाते और मौत को गले लगा लेते हैं। छात्र किन वजहों से दबाव में है और इस तरह के आत्मघाती कदम उठा रहे हैं उनमें प्रमुख है एकेडमिक दबाव, अकेलापन, असफल होने के डर से मानसिक दबाव, सोशल इकोनॉमिक प्रमुख है।
ऐसा देखा जाता है कि परीक्षा शुरू होने से पहले ही कई छात्र भयभीत हो जाते हैं, ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाने वाले छात्र-छात्राओं के मन में फेल होने का डर बैठ जाता है, जबकि शिक्षकों का कहना है कि डरने की जरूरत नहीं है, आराम से खुले मन से परीक्षा दीजिए। कोई पेपर खराब भी हो गया तो क्या हुआ, फेल हो जाएंगे इसके डर से परीक्षा से पहले ही खुद को तनाव में न डालिए, लेकिन दुख की बात यह कि सभी छात्र ये बात नहीं समझ पाते। ऐसे में छात्रों के साथ ही अभिभावकों को समझना होगा। बच्चों पर अपनी उम्मीदों का सपना जरूर पलवाएं लेकिन इसका बोझ उनके नाजुक कांधों पर नहीं डाला जाना चाहिए। आज हम को बहुत सफल आने वाले कई ऐसे लोग हैं जिन्हें अपने जीवन में नाकामी रिजेक्शन झेलना पड़ा है। दुनिया के सबसे अमीर इंसान बनने से पहले बिल गेट्स ने हावर्ड कॉलेज में बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी थी, दुनिया में जीनियस के तौर पर पहचाने जाने वाले वैज्ञानिक आइंस्टीन चार साल तक बोल और सात साल की उम्र तक पढ़ नहीं पाते थे। इस कारण उनके मां-बाप और शिक्षक ने एक सुस्त और गैर-सामाजिक छात्र के तौर पर देखते थे। इसके बाद उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया और ज़्यूरिच पॉलिटेक्निक में दाखिला देने से इंकार कर दिया इन सबके बावजूद वे भौतिक विज्ञान की दुनिया में सबसे बड़ा नाम साबित हुए। सदी के महान नायक, अमिताभ बच्चन जिन दिनों मुंबई की फि़ल्मी दुनिया में काम ढूंढ रहे थे, उनकी आवाज रेडियो के लिए उपयुक्त नहीं पाई गई थी। अब्राहम लिंकन से लेकर डॉ. अम्बेडकर, लोहिया जी तक ने रिजेक्शन का सामना किया है और संघर्ष जारी रखा। इतिहास में आज उन लोगों की विशेष जगह है। सफलता और असफलता जीवन के पहलू हैं इससे अनुभव लेकर आगे बढऩे का नाम ही जिंदगी है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU