Hundreds of obstacles in the way of Hindi हिंदी के मार्ग में सौ-सौ रोड़े

Hundreds of obstacles in the way of Hindi

Hindi  वेद प्रताप वैदिक

Hindi इधर भोपाल में गृहमंत्री अमित शाह ने मेडिकल की तीन हिंदी किताबों का विमोचन किया, जो कि मेरी राय में बहुत ही महत्वपूर्ण एतिहासिक शुभारंभ है लेकिन उसके साथ ही दो विपरीत प्रवृत्तियां भी सामने आई हैं। पहली तो यह कि कुछ लोगों ने हिदी में प्रकाशित उन पुस्तकों का मजाक उड़ाया है। उन्होंने एकाध पुस्तक के कुछ पृष्ठों को प्रसारित करके बताया कि अनुवादकों ने कैसे हिंदी पर अंग्रेजी शब्दों को थोप रखा है और जो नमूना वे फेसबुक और इंटरनेट पर प्रचारित कर रहे हैं, उसका मूल सार यह है कि वह हिंदी की किताब नहीं है बल्कि हिंदी लिपि में छपी अंग्रेजी की ही किताब है।

Hindi  वे जिस पृष्ठ को दिखा-दिखाकर यह बात कह रहे हैं, उसे देखकर उनकी बात ठीक भी लगती है। यह जो अनुवाद हुआ है, उसे मप्र के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य-शिक्षा मंत्री यदि हिंदी के कुछ विद्वानो को पहले दिखवा लेते तो ठीक रहता लेकिन यह भी सराहनीय है कि अंग्रेजी की पढ़ाई में डूबे हुए डाक्टरों ने कुछ न कुछ पहल इतने कम समय में कर ही डाली है।

Hindi  यदि मप्र सरकार के नेता और अफसर थोड़ी सावधानी बरतते तो उनसे यह चूक नहीं होती। यही हाल भोपाल के अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय का हुआ है। अब से लगभग एक दशक पहले मेरे और सुदर्शनजी के आग्रह पर भोपाल में यह विश्वविद्यालय खोला गया था। उसके प्रथम स्थापना दिवस भाषण में मैंने बताया था कि यह वि.वि. देश का सर्वश्रेष्ठ वि.वि. बनकर कैसे दिखा सकता है। यह आक्सफोर्ड, केम्ब्रिज, कोलंबिया और हार्वर्ड से भी आगे कैसे निकल सकता है। लेकिन इस दिशा में वह आज तक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका है। किसी को कोई अफसोस नहीं है।

Hindi जरुरी है कि हिंदी में हम जो भी काम करें, वह अंग्रेजी से बेहतर हो। यदि बेहतर न हो सके तो आप उसे करते ही क्यों हैं? मप्र सरकार ने मेडिकल किताबें हिंदी में बनाने की जो पहल की है, उस पर दूसरी आपत्तियां जोरदार शब्दों में बंगाल और दक्षिण भारत से उठ रही हैं। इन प्रांतों के कई डाक्टरी और शैक्षणिक संगठनों ने बयान जारी करके कहा है कि अंग्रेजी की किताबों के हिंदी अनुवाद में अर्थ का अनर्थ हो जाता है। डाक्टरी के धंधे में यह अनर्थ रोगी के लिए जानलेवा सिद्ध हो सकता है।

Hindi यह तर्क कुछ हद तक ठीक है। इसका हल यह है कि हिंदी के मूलपाठ में या तो अंग्रेजी नामों को ज्यों का त्यों इस्तेमाल कर लिया जाए या कोष्ठकों में रख दिया जाए। जहां तक हिंदी माध्यम से पढ़े डाक्टरों के विदेश जाने का सवाल हे, वे अंग्रेजी पर अपनी लार क्यों टपकाएँ? भारत में ही सेवा क्यों न करें?

Hindi अंग्रेजी माध्यम से पढ़े डाक्टरों पर सारा पैसा और परिश्रम भारत का खर्च होता है और विदेशों में जाकर वे पैसा कमाने में जुट जाते हैं। यदि हमारे डाक्टर भारतीय भाषाओं के माध्यम से तैयार होंगे तो उनकी मौलिक बुद्धि भी विकसित होगी और वे देश के लोगों की सेवा भी ठीक से करेंगे। भारत में डाक्टरों की जो भयंकर कमी है, वह भी पूरी हो जाएगी।

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