Hindola Festival : एक इतिहास समेटे हुए है हिंडोला उत्सव में भक्ति करती है अनूठा नृत्य

Hindola Festival :

Hindola Festival :  हिंडोला उत्सव में भक्ति करती है अनूठा नृत्य

Hindola Festival :  मथुरा !  बांकेबिहारी मन्दिर एवं सप्त देवालयों समेत वृन्दावन के मन्दिरों में युगल सरकार का झूलनोत्सव सात अगस्त से शुरू हो रहा है। इसे हिंडोला उत्सव भी कहा जाता है।

बांकेबिहारी मन्दिर में यह झूलनोत्सव केवल एक दिन का होता है, वहीं अधिकांश मन्दिरों में यह उत्सव एक पखवारे तक चलेगा। वैसे द्वारकाधीश मन्दिर समेत ब्रज के कई मन्दिरों में झूलनोत्सव की शुरूवात श्रावण मास के प्रारंभ होते ही हो गई थी जो रक्षाबंधन तक चलेगा। हिंडोला एक प्रकार का झूला है जिसमें युगल सरकार झूलते हैं। झूला कहीं पर भी डाला जाता है लेकिन हिंडोला केवल मन्दिरों में ही डाला जाता है।

बांकेबिहारी मन्दिर का हिंडोला यद्यपि सात दशक से अधिक समय पहले बनाया गया था लेकिन सोने चांदी से निर्मित यह भव्य हिंडोला देखने से ऐसा लगता है जैसे इसे आज ही बनाया गया हो। यह हिंडोला अपने पीछे एक इतिहास समेटे हुए है।

बांकेबिहारी मन्दिर के सेवायत आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी ने बताया कि यह हिंडोला विशाल होने के कारण कई टुकड़ों में बनाया गया है तथा इन टुकड़ों को मिलाकर हिंडोला तैयार होता है।

उन्होंने बताया कि लगभग 125 किलो सोना और एक हजार किलो चांदी से बनाये गए इस हिंडोले में लगभग सवा सैा से अधिक टुकड़े हैं जिन्हे जोड़कर हिंडोला तैयार होता है। इसके लिए आवश्यक शीशम, सागौन की लकड़ी नेपाल के टनकपुर से आई थी। इस हिंडोले का निर्माण सन 1942 में शुरू हुआ था तथा 1947 में यह बनकर तैयार हुआ था।

Hindola Festival : सेवायत आचार्य ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को हरियाली अमावस्या के दिन पहली बार बिहारी जी महराज ने इस हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए थे। हिंडोले में चार सखियां ललिता, विशाखा, चित्रा एवं रंगदेवी भी बिहारी जी महराज की सेवा में रहती है।

1942 में महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बनारस ( वर्तमान में वाराणासी) के 20 कारीगरों ने इसको बनाने का काम शुरू किया था। इस हिंडोले को बनाने का निर्देशन कारीगर छोटेलाल एवं ललनभाई ने किया था तथा हिंडोला पांच साल में बनकर तैयार हुआ था। उस समय इसकी लागत करीब 25 लाख रूपए आई थी तथा इसमें प्रमुख योगदान हरगूलाल सेठ का था किंतु अन्य गोस्वामियों ने भी इसमें सहयोग किया था। पहले इस हिंडोले में बिहारी जी महराज के दर्शन केवल शाम को ही होते थें मगर 2015-16 के उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद अब हिंडोले में बिहारी जी महराज के दर्शन सुबह से शाम तक होते है।

हिंडोले के पीछे ठाकुर के लिए स्वर्णरजत निर्मित शयन शैया सजाकर रखी जाती है और पास में ही श्रंगार की सामग्री ( श्रंगार पिटारी में) रखी जाती है तथां रजत आइना रखा जाता है। बिहारी जी जब थक जाते हैं तो शैया में विश्राम करते हैं और जब फिर भक्तों को दर्शन देते हैं तो श्रंगार सामग्री का उपयोग करते हैं।इस दिन बिहारी जी महराज हरे रंग की बेशकीमती जड़ाऊ पोशाक तथा रत्न जड़ित आभूषण धारण करते हैं तथा घेवर फैनी का विशेष भोग लगता है।

इसी दिन से वृन्दावन के प्राचीन सप्त देवालयों समेत अन्य मन्दिरों में भी हिंडोला उत्सव शुरू होता है। राधारमण मन्दिर का हिंडोला उत्सव एक प्रकार से वृन्दावन की संास्कृतिक धरोहर हैं। मन्दिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि इस दिन न केवल ठाकुर को हरे रंग की पोशाक और आभूषण धारण कराए जाते हैं बल्कि मन्दिर का पूरा परिसर हरीतिमामय हो जाता है।उन्होंने बताया कि मन्दिर में होनेवाली सात आरतियों में उत्सव आरती दर्शनीय होती है।इस दिन सिंधाड़ा का भोग लगता है जिसमें घेवर, फैनी, पकवान आदि होते हैं।मन्दिर इस दिन शुचिता का नमूना बन जाता है।

मदनमोहन मन्दिर के सेवायत आचार्य विजय किशोर गोस्वामी ने बताया कि चांदी के हिंडोले में मदनमोहन जी हरियाली तीज से 15 दिन तक विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं।युगल सरकार के चरण दर्शन रक्षाबंधन के दिन होंगे।उन्होंने बताया कि हिंडोले में मदनमोहन जी, राधारानी, सखियां ललिता और बिशाखा साथ साथ विराजमान होकर झूलते हैं। रंग जी मन्दिर यद्यपि दक्षिण भारत शैली पर बना है तथा यहां के त्योहार ही दक्षिण में मनाए जानेवाले त्योहार की तरह होते हैं किंतु झूलनोंत्सव में इस मन्दिर में चांदी का हिंडोला डाला जाता है जो हरियाली तीज से 13 दिन तक पड़ता है।

 

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Hindola Festival : हरियाली तीज से ही हिंडोला उत्सव राधा दामोदर मन्दिर, राधा श्यामसुन्दर मन्दिर, गोपीनाथ मन्दिर, गोविन्ददेव मन्दिर तथा राधा बल्लभ मन्दिर में विशेष प्रकार से मनाया जाता है। हर मन्दिर की अपनी निराली परंपरा है। इसी दिन से व्रज के अन्य भागों कें अधिकांश मन्दिरों में हिंडोला उत्सव शुरू हो जाता है।कुल मिलाकर हरियाली तीज पर व्रज के मन्दिरों की सजावट व कार्यक्रम नई नवेली दुल्हन की तरह दर्शनीय होती हैं।