जहाँ डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने देखा था जनजाति का संघर्ष…उसी सरगुजा में अब पहुँचेंगी महामहिम द्रौपदी मुर्मु


सरगुजा के लिए एक ऐतिहासिक पल


सरगुजा अंचल की जनजातीय धरती एक बार फिर इतिहास के स्वर्ण अध्याय को दोहराने जा रही है। वर्ष 1952 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पंडों जनजाति की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दशा का प्रत्यक्ष अवलोकन करने पंडों नगर पहुँचे थे। उनकी इस यात्रा की स्मृति में यहाँ आज भी भारत का इकलौता ग्रामीण राष्ट्रपति भवन स्मारक अस्तित्व में है, जो सरगुजा के जनजातीय गौरव का प्रतीक माना जाता है। 73 वर्ष बाद, इसी ऐतिहासिक सरगुजा अंचल में एक बार फिर राष्ट्रपति का आगमन होने जा रहा है। 20 नवंबर 2025 को भारत की प्रथम जनजातीय महिला राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मु जनजातीय गौरव वर्ष के अवसर पर सरगुजा के दौरे पर आ रही हैं। उनके आगमन को लेकर सरगुजा भर में उत्साह और गर्व का उत्सवमय वातावरण है।


राष्ट्रीय संगोष्ठीः 19 नवंबर को होगी “स्वतंत्रता संग्राम में जनजातियों की भूमिका” पर महत्त्वपूर्ण चर्चा


जनजातीय गौरव के अंतर्गत 19 नवंबर को राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है, जिसका विषय है “स्वतंत्रता संग्राम में जनजातियों की भूमिका”। यह संगोष्ठी स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय नायकों के योगदान पर केंद्रित होगी। इस राष्ट्रीय आयोजन में राज्यपाल पुरस्कृत एवं पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी स्मृति पुरस्कार से सम्मानित प्रतिष्ठित साहित्यकार अजय कुमार चतुर्वेदी विशेष प्रस्तुति देंगे। वे “सरगुजा अंचल के जनजातियों का स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान” विषय पर अपना शोध-आधारित व्याख्यान प्रस्तुत करेंगे।
साहित्यकार अजय कुमार चतुर्वेदी ने सरगुजा के 40 विस्मृत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की खोज कर उनके विस्तृत जीवन-वृत्त का संकलन करते हुए एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। यह पुस्तक सरगुजा के जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने वाली ऐतिहासिक दस्तावेज मानी जा रही है।


सरगुजा अंचल के जनजातीय गौरवः संघर्ष, संस्कृति और पहचान


सरगुजा अंचल ने जनजातीय समाज के कई प्रेरणादायी व्यक्तित्व देश को दिए हैं। इनमें पद्मश्री माता राजमोहनी देवी, गहिरा गुरु,जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी माझी राम गोंड, महली भगत और राजनाथ भगत जैसे उल्लेखनीय जनजातीय गौरव शामिल हैं। जिन्होंने अपने संघर्ष और नेतृत्व से सरगुजा की पहचान को राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित किया। इसी तरह सरगुजा का गौरव ग्राम पंडों नगर है, जहाँ राष्ट्रपति भवन स्मारक अवस्थित है, आज भी जनजातीय इतिहास, गौरव और सम्मान का जीवंत केंद्र माना जाता है।


स्थानीय समुदाय में उमंग और सम्मान का वा
तावरण


राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के आगमन एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन से सरगुजा का माहौल उल्लासपूर्ण हो उठा है। स्थानीय जनजातीय समाज इन आयोजनों को अपने इतिहास, सम्मान और पहचान से जुड़े नए अध्याय के रूप में देख रहा है। बुजुर्गों का मानना है कि जिस तरह 1952 ने सरगुजा को राष्ट्रीय मंच दिया था, उसी तरह 2025 का यह अवसर भी नई पहचान और नई ऊर्जा का प्रतीक बनेगा।

अजय चतुर्वेदी, जनजाति मामलों के जानकार

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