भारतीय रंगमंच के प्रख्यात हस्ताक्षर और ‘थिएटर ऑफ रूट्स’ आंदोलन के प्रणेता रतन थियम का इम्फाल में निधन हो गया। वह 77 वर्ष के थे। मणिपुरी कला के इस महान साधक ने अपने जीवनकाल में देश-विदेश में भारतीय नाट्य परंपराओं को नई पहचान दिलाई।

प्रमुख बिंदु
– ‘थिएटर ऑफ रूट्स’ के प्रणेता रतन थियम का 77 वर्ष की आयु में निधन
– 1989 में पद्मश्री से सम्मानित थे थियम
– नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व अध्यक्ष रहे
– ‘चक्रव्यूह’ और ‘ऋतुसंहारम’ जैसे नाटकों से मचाया था धूम
रतन थियम 1987 से 1989 तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) के निदेशक और बाद में 2013 से 2017 तक इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने संगीत नाटक अकादमी के उपाध्यक्ष पद पर भी कार्य किया।
कौन थे रतन थियम
20 जनवरी 1948 को जन्मे रतन थियम ने अपने करियर में मणिपुर की पारंपरिक कला को आधुनिक रंगमंच से जोड़कर एक अनूठी शैली विकसित की। उन्होंने चक्रव्यूह, ऋतुसंहारम, उरुभंगम जैसे नाटकों के माध्यम से भारतीय नाट्य परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। योगदान “थिएटर ऑफ रूट्स” आंदोलन का आधार बने, जहां प्राचीन भारतीय परंपराओं को समकालीन संदर्भों में पिरोया गया। एक चित्रकार, कवि, उपन्यासकार, संगीतकार और सामाजिक चिंतक के रूप में उन्होंने रंगमंच को एक बहुआयामी माध्यम बनाया, जो सामाजिक न्याय, आध्यात्मिक खोज और राजनीतिक अराजकता जैसे विषयों को छूता था।

रतन थियम का जन्म मणिपुर के एक ऐसे परिवार में हुआ, जहां कला घर की सांस थी। उनके माता-पिता मणिपुरी नृत्य कलाकार थे, जिसने उनकी रचनात्मकता की नींव रखी। बचपन से ही वे चित्रकला की ओर आकर्षित हुए और शुरुआती दिनों में पेंटिंग का अध्ययन किया। 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला उपन्यास प्रकाशित किया, जो उनकी साहित्यिक प्रतिभा का प्रारंभिक प्रमाण था। हालांकि, उनका असली रुझान रंगमंच की ओर था। 1974 में उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से स्नातक किया, जहां उन्होंने रंगमंच की बुनियादी तकनीकों के साथ-साथ प्राचीन भारतीय नाट्य शास्त्र की गहराई सीखी। एनएसडी ने उन्हें पश्चिमी थिएटर के प्रभाव से परिचित कराया, लेकिन थियम ने हमेशा अपनी जड़ों – मणिपुरी लोक परंपराओं – को प्राथमिकता दी। उन्होंने थांग-टा (मणिपुरी मार्शल आर्ट), नाटा संकीर्तन (धार्मिक नृत्य-संगीत) और लोक नाटकों को अपने काम का आधार बनाया। यह दौर उनके लिए संक्रमण का था, जहां वे प्राचीन ग्रीक ड्रामा, जापानी नो थिएटर और भारतीय नाट्य शास्त्र के मिश्रण से एक नई शैली विकसित कर रहे थे।
1976 में इम्फाल के बाहरी इलाके में थियम ने “कोरस रेपर्टरी थिएटर” की स्थापना की, जो उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव बना।  यह थिएटर समूह न केवल प्रयोगधर्मी था, बल्कि सामाजिक रूप से जागरूक भी। यहां उन्होंने मणिपुरी भाषा में नाटकों का मंचन शुरू किया, जो स्थानीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर ले गए। 1979 में उनका पहला प्रमुख नाटक “कर्णभारम” (भास के संस्कृत नाटक पर आधारित) आया, जो उनकी यात्रा का प्रारंभिक मील का पत्थर था।  थियम ने न केवल निर्देशन किया, बल्कि सेट डिजाइन, संगीत रचना, कोरियोग्राफी, प्रकाश व्यवस्था और वेशभूषा भी संभाली। उनका थिएटर एक सामूहिक प्रयास था, जहां कलाकारों को लोक परंपराओं में प्रशिक्षित किया जाता था।
1987 से 1989 तक वे एनएसडी के डायरेक्टर रहे, और बाद में 2013 से 2017 तक इसके चेयरपर्सन। संगीत नाटक अकादमी के वाइस-चेयरमैन के रूप में उन्होंने भारतीय रंगमंच की नीतियों को आकार दिया। थियम का मानना था कि रंगमंच केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है। मणिपुर की राजनीतिक अस्थिरता और सांस्कृतिक संघर्षों ने उनके काम को गहराई दी, जहां वे थिएटर को विरोध के रूप में इस्तेमाल करते थे।
रतन थियम को “थिएटर ऑफ रूट्स” आंदोलन का सह-संस्थापक माना जाता है, जो 1970 के दशक में शुरू हुआ।  इस आंदोलन का उद्देश्य था उपनिवेशवाद के बाद भारतीय रंगमंच को अपनी जड़ों से जोड़ना – प्राचीन परंपराओं को आधुनिक विषयों के साथ मिश्रित करना। थियम ने मणिपुरी लोक गायन, नृत्य और नाटक को एक कड़ी की तरह पिरोया, जो भारतीय आधुनिक रंगमंच को नई दिशा प्रदान करता था। उन्होंने थांग-टा को मंच पर लाकर इसे न केवल शारीरिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, बल्कि राजनीतिक प्रतीक भी। उनके नाटक सामाजिक कल्याण, आध्यात्मिक खोज और राजनीतिक अराजकता पर केंद्रित थे, जो सार्वभौमिक अपील रखते थे।
थियम का योगदान पश्चिमी देशों में भारतीय रंगमंच को स्थापित करने में अहम रहा। उनके नाटकों ने एडिनबर्ग इंटरनेशनल फेस्टिवल, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में प्रदर्शन किया, जहां मणिपुरी संस्कृति को वैश्विक पहचान मिली।  उन्होंने साबित किया कि लोक परंपराएं आधुनिकता से टकराती नहीं, बल्कि उसे समृद्ध करती हैं। उनके काम में नाट्य शास्त्र की रस सिद्धांत, ग्रीक ट्रेजडी और नो थिएटर का मिश्रण था, जो एक अनोखी शैली पैदा करता था। थियम ने रंगमंच को एक राजनीतिक विरोध का माध्यम बनाया, खासकर मणिपुर की सामाजिक समस्याओं पर।
Ratan Thiyam के नाटकों की सूची लंबी है, लेकिन कुछ ने इतिहास रचा
- उरुभंगम (ब्रोकन थाई): महाभारत की घटना पर आधारित, जो युद्ध की व्यर्थता दिखाता है। इसे उनके सर्वश्रेष्ठ कार्यों में गिना जाता है।
- चक्रव्यूह (आर्मी फॉर्मेशन): 1984 में लिखा, महाभारत से प्रेरित। 1987 में एडिनबर्ग फेस्टिवल में फ्रिंज फर्स्ट अवॉर्ड जीता।
- लेंगशोन्नेई: जीन एनुइल्ह की “एंटीगोन” का अनुकूलन (1986), जो राजनीतिक व्यवहार पर टिप्पणी करता है।
- उत्तर प्रियदर्शी (द फाइनल बीटिट्यूड): 1996 में अज्ञेय के हिंदी नाटक का अनुकूलन, राजा अशोक की शांति यात्रा पर। दक्षिण एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में प्रदर्शित।
- अंधा युग (द ब्लाइंड एज): 1994 में जापान में मंचित, हिरोशिमा बमबारी की वर्षगांठ से एक दिन पहले, जो युगांतकारी विषयों को छूता है।
- रितुसंहारम: अराजकता में शांति की खोज, 2002 में भारत रंग महोत्सव में प्रदर्शित।
- मैकबेथ का मणिपुरी अनुकूलन: 2014 में, ऐतिहासिक मणिपुरी संदर्भ में, बांग्लादेश इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल में ओपनिंग।
ये नाटक भारत रंग महोत्सव में नियमित रूप से प्रदर्शित हुए, जहां थियम ने एनएसडी के स्वर्ण जयंती समारोह में भी योगदान दिया।
पुरस्कार और सम्मान: वैश्विक मान्यता
थियम के योगदान को कई सम्मानों से नवाजा गया: - संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड फॉर डायरेक्शन (1987)।
- पद्म श्री (1989)।
- संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप (2012), प्रदर्शन कला का सर्वोच्च सम्मान।
- असम यूनिवर्सिटी से मानद डी.लिट. (2013)।
- लीजेंड्स ऑफ इंडिया लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड (2018)।
- अंतरराष्ट्रीय सम्मान जैसे ला ग्रैंड मेडाइल (फ्रांस, 1997) और जॉन डी. रॉकफेलर अवॉर्ड (2008)।
2003 में “सम रूट्स ग्रो अपवर्ड्स” नामक डॉक्यूमेंट्री उनके जीवन और काम पर बनी।
रतन थियम के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त किया है। कला जगत के लोग उनके निधन को भारतीय रंगमंच के लिए एक बड़ी क्षति मान रहे हैं। थियम ने अपने जीवन के आखिरी दिनों तक मणिपुरी कला को बढ़ावा देने का काम जारी रखा था।
संगीत नाटक अकादमी का मिला पुरस्कार
भारतीय नाटककार रतन थियम को साल 1987 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. साल 2013 से 2017 तक वो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) के अध्यक्ष रहे. इससे पहले संगीत नाटक अकादमी में उपाध्यक्ष की भूमिका निभाई थी.

प्रमुख नाटक
रतन थियम के नाटकों की बात करें तो उसमें करणभारम्, इम्फाल इम्फाल, उत्तर प्रियदर्शी,द किंग ऑफ़ डार्क चैंबर प्रमुख हैं, जो भारतीय थिएटर परंपराओं और रूपों को एक नई ऊंचाइयों पर ले गए.

रतन थियम के निधन पर देश के कला जगत में शोक की लहर है. कला जगत से जुड़े लोगों ने उनके निधन पर अपनी संवेदना जताते हुए उनकी यादों को साझा किया



रंगमंच का अपना नशा और असर है। रंगमंच ने मुझे एक बेहतर इंसान, बेहतर लेखक, बेहतर कलाकार के रूप में खुद को समझने की ताकत दी है।
बहुत दिन हो गए रंगमंच पर उतरे। 6 एकल नाटक हैं, जिन्हें करती हूं।
आप इनका रेट्रोस्पेक्टिव भी करवा सकते हैं और कोई एक या दो नाटक भी। प्रोसीनियम में भी और रूम थिएटर की अवधारणा में भी। उद्देश्य है तो मात्र यह कि घर घर पहुंचे थिएटर।
विभा रानी मुंबई

