सुशासन तिहार‘कुकुर भगाओ तिहार’ में बदला- तेता


सरकार शिक्षकों को “बहुउद्देश्यीय कर्मचारी” मान चुकी है। कभी सर्वे, कभी चुनावी काम, कभी रैली, और अब कुत्ता भगाने का अभियान—इन सबके बीच शिक्षण कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

“सुशासन के नाम पर सरकार अब ‘कुकुर भगाओ तिहार’ मना रही है। क्या यही शिक्षा सुधार है?
उन्होंने ने आरोप लगाया कि ऐसे आदेशों के कारण बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ रहा है। जब शिक्षक कक्षाओं से बाहर रहेंगे और जानवरों की गिनती या निगरानी में लगेंगे, तो पढ़ाई कैसे सुधरेगी? उन्होंने कहा कि यह नीति दर्शाती है कि सरकार नहीं चाहती कि बच्चे मजबूत शिक्षा प्राप्त करें, क्योंकि जागरूक युवा ही सरकार से सवाल पूछते हैं।


“शिक्षा विभाग का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सरकार चाहती है कि बच्चे पढ़ाई से दूर रहें और युवाओं में बेरोजगारी कायम रहे। यह शिक्षा को कमजोर करने की नीति है।”
मांग की कि शिक्षकों को केवल शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाए। यदि आवारा कुत्तों से संबंधित कोई विशेष अभियान चलाना है तो इसके लिए नगर निगम, पंचायत, पशु विभाग या सुरक्षा कर्मियों की अलग व्यवस्था की जाए। “शिक्षक बच्चों का भविष्य गढ़ने के लिए होते हैं, ना कि आवारा कुत्तों का पीछा करने के लिए। सरकारी स्कूल पहले ही संसाधनों और स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं, ऐसे आदेश स्थिति को बदतर कर देंगे।”

तेता ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि ऐसे अव्यवहारिक आदेश वापस नहीं लिए गए तो शिक्षक, अभिभावक और जनप्रतिनिधि मिलकर आंदोलन का विकल्प चुनेंगे। उन्होंने राज्य सरकार से आग्रह किया कि शिक्षा को मज़बूत करने पर ध्यान दें, न कि शिक्षकों को असंबंधित कार्यों में न उलझाए बच्चों का भविष्य दांव पर है और सरकार प्रशासन की प्राथमिकताएं ही गलत दिशा में है।

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