Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – वरिष्ठ को किनारा करने से क्या सियासत का भला होगा?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

हाल ही में भाजपा ने तीन राज्यों में मुख्यमंत्री और मंत्री बनाने के लिए नए चेहरों को वरिष्ठता पर तरजीह दी। कह सकते हैं कि इस विधानसभा चुनाव के बाद वरिष्ठता को किनारे करने की कोशिश की गई। मध्यप्रदेश की सत्ता पर लगभग 20 साल से काबिज शिवराज सिंह को किनारे किया गया, वहीं छत्तीसगढ़ में तीन बार के मुख्यमंत्री रमन सिंह को पार्टी ने सीएम बनने का मौका नहीं दिया। राजस्थान में तो वसुंधरा की नाराजगी की परवाह किए बिना पहली बार विधायक बने एकदम नए चेहरे भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री का ताज दे दिया गया। मंत्रियों के चुनाव में भी कई दिग्गजों को रेस से बाहर कर दिया गया। छत्तीसगढ़ में इस रणनीति के बाद सरकार के काम-काज में बेहद दिल्चस्प नजारे देखने को मिल रहे हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ विधानसभा में कई ऐसे मौके आ रहे हैं जब सत्ता पक्ष के विधायक अपनी ही सरकार को घेरते नजऱ आ रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि सदन में अपनी सरकार को घेरने में भाजपा के कुछ ऐसे वरिष्ठ विधायक हैं जो पहले भी मंत्री रह चुके हैं और इस बार वे अब तक कोई बड़ी कुर्सी पाने में पीछे रह गए हैं। वैसे रमन सरकार में तात्कालिक विधायक देवजीभाई पटेल ऐसे विधायक थे जो सदन में अपनी सरकार को घेरते अक्सर देखे जाते थे, लेकिन इस बार ऐसे विधायकों की संख्या ज्यादा है। इनमें प्रमुख रूप से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, पूर्व मंत्री राजेश मूणत और अजय चंद्राकर सवाल पूछने में विपक्ष को भी मात दे रहे हैं। नई सरकार के मंत्री अपनी ही पार्टी के सदस्यों से घिरते नजर आ रहे हैं। प्रश्नकाल से लेकर ध्यानाकर्षण तक एक के बाद एक कई वरिष्ठ विधायक सरकार से तीखे सवाल करते और अपनी ही सरकार को घेरते नजर आ रहे हैं। इससे मंत्रीगण असहज तो हो ही रहे हैं, कई मामलों में सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों पर सवालिया निशान भी लग रहा है। आखिर अपनी ही सरकार पर क्यों फूट रहा है गुस्सा? अब यह सवाल भी उठने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र के दौरान कई वरिष्ठ भाजपा नेता हैं जो अपनी बात मनवाने के लिए विपक्ष जैसा रवैया अख्तियार करते नजर आ रहे हैं। हाल ही में भाजपा विधायक धर्मजीत सिंह ने भी सदन में कुछ ऐसी धमकी दे डाली कि मंत्री को उनकी बात मानने के लिए विवश होना पड़ा। आपको बता दें, धर्मजीत सिंह पूर्व में कांग्रेस और उसके बाद जोगी कांग्रेस से विधायक रहे हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव के पहले ही उन्होंने भाजपा का दामन थामा था। दरअसल, बजट सत्र के 11वें दिन रेत के अवैध उत्खनन पर चर्चा चल रही थी। चर्चा के दौरान मंत्री द्वारा इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई का आश्वासन नहीं दिए जाने से नाराज धर्मजीत सिंह ने कहा कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई और रेत माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो वे इस्तीफा दे देंगे। धर्मजीत सिंह ने कहा कि मंत्री जी अभी हेलीकॉप्टर मंगवा लें और उनके साथ चलें। अगर 200 पोकलेन घाट में नहीं मिले तो वे विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वरिष्ठता को किनारे करने से ही सियासत में ताजगी आ सकती है, या फिर इनके सामने काम-काज करने से नए विधायक और मंत्रियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जिन नेताओं को किनारा किया गया उनकी लंबी लिस्ट है, इनमें आडवाणी, मुरली मनोहरर जोशी जैसे तमाम नाम शामिल है। इसके उलट कांग्रेस में ऐसे नेता किनारे किए गए जो उम्र के उस पड़ाव में नहीं थे जिस पर आडवाणी और अन्य नेता थे। ऐसे कांग्रेसियों ने बाद में भाजपा का दामन थामने का फैसला किया। मुलायम सिंह आखिरी वक्त में सपा में ही हाशिए पर आ गए थे, इसी तरह काशी राम की स्थिति थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने छत्तीसगढ़ में अपने सभी सांसदों को बदल दिया था। एक बार फिर लोकसभा चुनाव होने जा रहा है, ऐसे में देखना होगा कि क्या इस बार भी जीत के फॉर्मूले पर वरिष्ठता हार जाएगी।

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