Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – स्त्री के पक्ष में न्यायालय-समाज का नजरिया क्या है ?

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra

-सुभाष मिश्र

हाउसवाइफ के काम को नौकरी करने वालों के बराबर नहीं माना जाता है। आज के खर्चीले दौर में यह धारणा बढ़ रही है कि पत्नी कमाने वाली हो तो ज्यादा ठीक है। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए एक बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा की हाउसवाइफ का काम नौकरी या सैलरी लाने वाले साथी से कम नहीं होता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, परिवार की देखभाल करने वाली महिला का विशेष महत्व है। परिवार में उसके योगदान का आंकलन मौद्रिक सन्दर्भ या रुपए-पैसे में नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने यह टिप्पणी मोटर दुर्घटना मामले में क्लेम को लेकर सुनवाई करते हुए की। दरअसल, 2006 में एक सड़क हादसे में उत्तराखंड की एक महिला की मौत हो गई थी। वह महिला जिस गाड़ी में यात्रा कर रही थी, उसका बीमा नहीं था। परिजनों ने बीमा का दावा किया तो ट्रिब्यूनल ने महिला के परिवार यानी उसके पति और नाबालिग बेटे को 2.5 लाख रुपए क्षतिपूर्ति देने का फैसला दिया। महिला को मिलने वाली बीमा राशि को ट्रिब्यूनल ने कम आंका था। परिवार ने अधिक मुआवजे के लिए ट्रिब्यूनल के इस फैसले को उत्तराखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि हाई कोर्ट ने इस याचिका खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने ट्रिब्युनल के फैसले को सही ठहराते हुए कहा था, महिला गृहिणी थी, इसलिए मुआवजा जीवन प्रत्याशा और न्यूनतम अनुमानित आय पर तय किया गया था।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नारजगी जताते हुए कहा की एक गृहिणी की आय को किसी कामकाजी से कम कैसे माना जा सकता है? हम इस अप्रोच को सही नहीं मानते हैं। कोर्ट ने इस मामले में 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 6 लाख रु. का मुआवजा देने का आदेश दिया है।
अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो भारतीय स्टेट बैंक की शोध टीम के अनुसार महिलाओं का बिना वेतन किया जाने वाला घरेलू काम सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 7.5 प्रतिशत है। महिलाओं के घरेलू कामकाज को पारंपरिक आर्थिक गतिविधियों से बाहर रखा जाता है। उनका योगदान भी आर्थिक उत्पादन के दायरे से बाहर रहता है। आइआइएम अहमदाबाद ने अपने शोध में भी कहा था कि अवैतनिक घरेलू काम पर पुरुषों के मुकाबले महिलाएं रोज ढाई गुना ज्यादा समय देती हैं। शोध के मुताबिक 15 से 60 साल की महिलाएं रोज 7.15 घंटे अवैतनिक घरेलू कार्य करती हैं, वहीं पुरुष सिर्फ पौने तीन घंटे समय देते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में 5 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 30 फीसदी महिलाएं घरेलू काम के अलावा मजदूरी भी करती हैं। अर्थव्यवस्था में अवैतनिक महिलाओं का कुल योगदान लगभग 22.7 लाख करोड़ रुपए है जो भारत की जीडीपी का लगभग 7.5 प्रतिशत है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास आराम एवं आनंद की गतिविधियों के लिए कम समय होता है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि कमाने वाली महिलाओं की तुलना में कमाने वाले पुरुषों पर काम का ज्यादा दबाव होने की

संभावना 72 प्रतिशत तक ज्यादा रहती है। 52 प्रतिशत से अधिक महिला उत्तरदाताओं ने घरेलू कामकाज में 5 घंटे से अधिक समय बिताया। इन कामों में खाना बनाना, साफ-सफाई, घर की साज-सज्जा आदि खुद करना शामिल है। अवैतनिक श्रम पर इतना बड़ा समय खर्च करने वाले पुरुषों का हिस्सा सिर्फ 1.5 प्रतिशत था। जैसे-जैसे घर के काम करने में लगने वाला समय बढ़ता है, वैसे-वैसे महिलाओं के बाहर निकलने का प्रतिशत भी कम होता जाता है। लगभग 76 प्रतिशत महिलाएं एक दिन घर से बाहर यात्रा की।
लैंगिक समानता के मामले में दुनिया के सभी देशों को पछाडऩे वाले आइसलैंड की महिलाएं एक दिन की हड़ताल पर चली गईं। एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, धरने पर गईं महिलाओं ने कहा कि वो घर या बाहर का कोई काम नहीं करेंगी. 24 अक्टूबर 2023 को इस हड़ताल में हिस्सा लेते हुए आइसलैंड की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकब्सडॉटिर ने भी कहा है कि वो इस दिन काम नहीं करेंगी। आइसलैंड की महिलाओं की ये हड़ताल पुरुषों के बराबर सैलरी नहीं मिलने यानी वेतन में असमानता और लैंगिक हिंसा के विरोध में है। इस हड़ताल से आइसलैंड में एक तरह से बंदी के हालात हो गए। स्कूल बंद, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में देरी, अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी, होटलों में स्टाफ की कमी, यहां तक कि न्यूज़ चैनलों पर पुरुष न्यूज प्रेजेंटर इसकी घोषणा करते दिख। जिन क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है, जैसे हेल्थकेयर और शिक्षा, वो क्षेत्र इस हड़ताल से खासकर प्रभावित हुए हैं।
हमारे देश में औरत यदि पढ़ी-लिखी है और काम करती है तो उससे समाज और परिवार की उम्मीदें अधिक होती हैं। लोग चाहते हैं कि वह सारी भूमिकाओं को बिना किसी शिकायत के निभाएं, वह कमा कर भी लाए और घर में अकेले खाना भी बनाए, बूढ़े सास-ससुर की सेवा भी करें और अपने बच्चों का भरण-पोषण भी।
अनामिका लिखती हैं कि स्त्री पहले भी तन मन से घर-परिवार की सेवा करती थी। नयी स्त्री अब तन मन के साथ कमाया हुआ धन भी लगा रही है। इतना ही नहीं पहले वह घर वालों की सेवा करती थीं अब वे घर से बाहर भी सेवा करती हैं. कहना न होगा नयी स्त्री बिना दीवारों के एक ऐसे घर की कल्पना करती है जिसके आश्रय हर परेशान-दुखी आ जाएं।
”हे माधव, देखो न-
कितने तो काम धरे हैं सर पर,
इतना आटा गूंधना है अभी
इतने कपड़े कूटने हैं,
कम्प्यूटर हैंग कर गया है,
पूरी करनी है असाइनमेंट,
हाथ बंटा दो जरा-सा
या फिर तुम हेर दो जुएं ही जरा,
कुछ तो करो, कुछ करो!

अनामिका

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