श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया
भानुप्रतापपुर। बसन्त नगर में आयोजित तीन दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ कथा के दूसरे दिवस शनिवार को वृंदावन की 19 वर्षीय कथावाचक किशोरी संगीता अधिकारी ने पहली बार कथा भानुप्रतापपुर में की है। कथा के माध्यम से लोगो को यह संदेश दे रहे है जिस प्रकार राजा परीक्षित को मालूम हो गया कि अगले सात दिवस में मौत आनी है, पर मानव को नही मालूम कि उसके जिंदगी के लिए वो सात दिन कब आने वाला है, वो कौन सा महीना व साल होगा। इसलिए समय रहते भगवान की भक्ति भाव से कीर्तन पूजन कथा श्रवण कर अपने जीवन में उतारे तभी सार्थक होगा।
कथा के पहले दिवस भगवान सुखदेव जी की कथा बताई गई। भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। भक्तगण पंडाल में नाचते हुए भावविभोर हुए।
आप सभी श्रद्धालु भक्त जो श्रीमद्भागवत कथा श्रवण कर रहे है वास्तव मे राजा परीक्षित है,जिनके हृदय में मुक्ति की भावना है। जिसकी भावना कृष्ण के प्रति वे गोपियां है मुक्ति के प्रति राजा परीक्षित का प्रतीक बताया है। उन्होंने कहा कि वास्तव में श्रीमद्भागवत कथा में सात दिनों का रहता है जिसमे रामायण, महाभारत, शिवपुराण ग्रंथों का वर्णन होता है तीन दिनों में सिर्फ भगवान का कीर्तन भजन ही किया जा सकता है। राजा परीक्षित उतरा व अभिमन्यु का पुत्र था, जिन्हें गर्भ के समय से ही श्री कृष्ण का दर्शन हो गया था। जन्म के बाद हर वस्तुओं में भगवान का परीक्षण करता था इसलिए उनका नाम भी परीक्षित पड़ा।
जीवन को इतने सुंदर से जीये यदि भविष्य में कोई भूल हो जाये आपको नही बल्कि आपके समय को गलत ठहराएंगे। ऋषि सम्यक के पुत्र सृंगी ऋषि के श्राप से तकक्षत नाग के डसने से राजा परीक्षित को मालुम हुआ कि उसकी जिंदगी मात्र सात दिनों की रह गई है, इतने कम समय मे जीवन व मृत्यु को अच्छे बनाने के लिए भगवान की कथा लीला का श्रवण किये ही मात्र एक ही मार्ग है। सुखदेव जी श्रीमद्भागवत के आधा वक्ता बताया गया। नारद जी ने व्यास जी को मात्र 04 श्लोक में कथा बताई थी जिसे धरती पर आने के बाद एक एक शब्दो के विस्तार से वह 18000 श्लोक में परिवर्तित कर दिया। धर्म क्या है, इस पर उन्होंने कहा कि जहा पर अधर्म है वहा पराजय जहा धर्म है वहा जय ,विजय निश्चित होती है।
भीष्म प्रसंग के दौरान बताया कि भीष्म भगवान के परम भक्त थे,भगवान तीन बार रोये है, पहली बार उद्धव के द्वारा ब्रज की बखान, दूसरी बार मित्र सुदामा मिलन एवं तीसरी बार भीष्म के सामने बताया गया। राजा परीक्षित ने कहा कि मेरे राज्य में तुम्हारा कोई काम नही है,कलियुग के विनती पर चार स्थानों पर कलयुग को वास करने की अनुमति दी गई जिनमे जुआ जिसमे धन हो, पानम याने मंदिरापान करने बेचने वाले, अवैध स्त्रियों से संबंध एवं जहा पर जीव हिंसा होती है इस पर कहा कि ये चारों स्थान अपवित्र है एक पवित्र स्थान भी प्रदान कर दीजिए तो पांचवा स्थान सोना को दिया गया है। अधर्म सोना पर कलियुग के वास रहेगा। इसीलिए सोना को अहंकार का प्रतीक माना गया है जिसके पास ज्यादा सोना रहता है उसमें अहंकार आ ही जाता है। विश्व मे दो ही स्थानों पर सोने का महल बना था पहले लंका में जो जल गया दूसरा द्वारिका में जो जल में गया। हमारे भाव मे भक्ति होनी चाहिए भक्ति ही शक्ति का प्रतीक है। हमारे सनातन धर्म मे पत्थर के मूर्तियों पर प्राण प्रतिष्ठा के बाद भगवान का वास होता है।