प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से -धान से आगे सोचने का वक्त

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Time to think beyond paddy

– सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, यहां प्रचुर मात्रा में धान की पैदावार होती है। साथ ही यहां धान के अनेक किस्में भी पाई जाती है। छत्तीसगढ़ सरकार धान का सर्वाधिक समर्थन मूल्य भी दे रही है। इसके चलते यहां हर साल धान की पैदावार बढ़ती जा रही है। इस साल 110 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा गया है। धान की बढ़ती पैदावार के बीच सरकार अन्य फसलों को भी बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। इसी के मद्देनजर इस साल 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की प्रचलित किस्मों के स्थान पर धान की विशेष किस्मों जैसे सुगंधित धान, जिंक धान एवं जैविक धान तथा अन्य फसलों जैसे मक्का, कोदो-कुटकी, रागी, अरहर, उड़द, मूंग, तिल, रामतिल, सोयाबिन और गन्ना को बढ़ावा देने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके तहत इस साल राज्य के 3 लाख से ज्यादा किसानों ने सहमति दी है।
सरकार फसल चक्र के जरिए धान के स्थान पर दलहन और तिलहन फसलों को बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है। वक्त औऱ बाजार को देखते हुए यह सही भी है इससे पहले भी फसल चक्र परिवर्तन की बात सरकारों ने की लेकिन इसके लिए बुनियादी या कह लें ईमानदार प्रयास जमीन स्तर पर नहीं किया गया, क्योंकि धान यहां की परंपरागत खेती है यहां के किसान पीढ़ी दर पीढ़ी इसकी उपज ले रहे हैं। इन्हें इसे बदलने के लिए सरकार के द्वारा खास तैयारी और माहौल बनाना होगा।
इस पूरे मामले में दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धान की खेती इसमें लगने वाला पानी, खाद और मानव श्रम को गणना करने पर बहुत महंगा सौदा साबित होते जा रहा है। इसके बाद धान की खरीदी और उसे खपाना भी बहुत कठिन होते जा रहा है। ऐसे में यही हालात रहे तो धान की फसल धान के कटोरे पर ही भारी पडऩे लगेगा। इसके अलावा पिछले कुछ सालों में ये ट्रेंड दिख रहा है कि किसान प्रति रकबा ज्यादा उत्पादन लेने के लिए धान की गुणवत्ता से समझौता कर रहे हैं। सुगंधित और जैविक किस्मों के उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं हो रही है। ऐसे में प्रदेश में उपजा धान पड़े-पड़े सड़ रहा है। हालांकि, राज्य सरकार इससे एथेनॉल बनाने की मंजूरी के लिए कई बार केन्द्र सरकार से गुहार लगा चुकी है लेकिन अभी तक इस बारे में कोई सकारात्मक जवाब दिल्ली से नहीं आया है।
इन सबके बीच छत्तीसगढ़ सरकार आज राजीव गांधी किसान न्याय योजना की तीसरी किश्त का भुगतान करने जा रही है, इससे प्रदेश के लाखों किसानों के खाते में दीवाली के पहले रकम ट्रांसफर हो जाएगी। इसके बाद एक नवंबर से राज्य में धान खरीदी की भी शुरुआत हो जाएगी। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा समर्थन मूल्य योजना में उड़द, मूंग एवं अरहर का उपार्जन किया जाएगा। जिसके हेतु आज से यानि 17 अक्टूबर 2022 से 16 दिसम्बर 2022 तक उड़द एवं मूंग की खरीदी की जाएगी जिसका समर्थन मूल्य उड़द 6600.00 रूपए प्रति क्विंटल तथा मूंग का 7755.00 रू. प्रति क्विंटल निर्धारित है। इसी प्रकार 13 मार्च 2023 से 12 मई 2023 तक अरहर की खरीदी की जाएगी। जिसका समर्थन मूल्य 6600.00 रूपए प्रति क्विंटल निर्धारित है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रयासों के चलते छत्तीसगढ़ में खरीफ सीजन 2022-23 से मूंग, उड़द और अरहर की समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए केंद्र ने स्वीकृति दे दी है। उम्मीद है कि सराकर के इन प्रयासों से फसल चक्र परिवर्तन को नई दिशा मिलेगी क्योंकि अब वक्त आ चुका है कि हमारे किसान धान से आगे अन्य विकल्पों पर विचार करें।

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