Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – प्रलोभन मुक्त चुनाव कराना चुनौती

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - प्रलोभन मुक्त चुनाव कराना चुनौती

 

–  सुभाष मिश्र

 

आज राजनीति खासतौर पर चुनाव में धन-बल का किस तरह इस्तेमाल होता है किसी से छुपी नहीं है। हालांकि इस पर लगाम लगाने के दावे होते रहे हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों की तरफ से चुनाव से पहले की जा रही घोषणाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्य सरकारों, केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। मुफ्त की घोषणाओं पर पहले से लंबित याचिका के साथ इस मामले को भी जोड़ा गया है। याचिकाकर्ता भट्टूलाल जैन का कहना था कि चुनावी लाभ के लिए बनाई जा रही योजनाओं से आखिरकार आम लोगों पर ही बोझ पड़ता है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले लोगों के लिए ऐसी योजनाओं का ऐलान किया जा रहा है, जिसमें उन्हें कैश दिया जाएगा। इसे फ्रीबीज भी कहा जा रहा है। राजनीति में रेवड़ी कल्चर के नाम से मशहूर इस चलन के खिलाफ लगातार राजनेता बोल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी कई बार इसके खिलाफ कह चुके हैं, लेकिन इसकी जड़ें हमारे लोकतांत्रिक सिस्टम में लगातार मजबूत हो रही हैं। हालांकि, मुख्य चुनाव आयुक्तने कहा कि चुनाव आयोग स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी और प्रलोभन मुक्त चुनाव कराने के लिए तैयार है। आने वाले विधानसभा चुनावों में मनी पावर हमारे रडार पर रहेगा। इसके लिए प्रवर्तन एजेंसियों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हंै। अगर वे कार्रवाई नहीं करेंगी तो हम उनसे चुनाव धन-बल का प्रयोग करने वालों पर कार्रवाई कराएंगे। कहीं न कहीं देखा जाए तो इस तरह की फ्रीबीज लोगों को पंगु बनाने और बैसाखियों पर चलना सिखाने वाली संस्कृति है। क्योंकि मुफ्त की रेवड़ी की घोषणा कहीं न कहीं राज्य और देश के बजट पर बुरा असर डालती है।
कुछ समय पहले संविधान पीठ ने चुनाव आयुक्तों की स्वतंत्रता, धन शक्ति के उदय और राजनीति में अपराधीकरण और बहुत कुछ पर टिप्पणी की। चुनाव में बढ़ते धन बल को लेकर चिंता जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था – धन बल की भूमिका और राजनीति के अपराधीकरण में भारी उछाल आया है। मीडिया का एक बड़ा वर्ग अपनी भूमिका से अलग हो गया है और पक्षपातपूर्ण हो गया है।
दरअसल, चुनाव के कुछ महीने पूर्व सत्ताधारी दल कई तरह के वादे करने लगते हैं। इसके अलावा घोषणा पत्र के जरिए कई तरह के प्रलोभन दिए जाते हैं। इस प्रलोभन में मुफ्त या सब्सिडी के बड़े वादे होते हैं। इन दिनों आम आदमी पार्टी मुफ्त और छूट के बड़े-बड़े वादे करने में काफी आगे है। भले ही पीएम मोदी इसके खिलाफ कई बार बोले हों, लेकिन भाजपा भी अपने घोषणा पत्र में इस तरह के वादे करती रही है। ऐसे में निर्वाचन आयोग को इस तरह के चलन पर रोक लगाने के संबंध में कदम उठाने होंगे। हो सकता है कि इसके लिए उसे कुछ और अधिकार की जरूरत पड़े। आज जिस तरह से राजनीति में रेवड़ी कल्चर के साथ ही धन-बल का प्रभाव बढ़ते जा रहा है, उससे बहुत से लोगों को लगने लगा है कि राजनीति सिर्फ मनी और मसल्स पॉवर का रास्ता है। इसमें साधारण आदमी अपनी बात को नहीं रख पाएगा या फिर सिर्फ संगठन में समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर ही रह जाएगा। चुनावी सिस्टम में उसे आगे नहीं लाया जाएगा।
लोकतंत्र तभी प्राप्त किया जा सकता है जब सत्ताधारी दल इसे अक्षरश: कायम रखने का प्रयास करें। हम पाते हैं कि ईसीआई को राज्यों और संसद के लिए चुनाव कराने के कत्र्तव्य और शक्तियों का प्रभार दिया गया है। स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से कार्य करना कत्र्तव्य है। एक पर्याप्त और उदार लोकतंत्र की पहचान को ध्यान में रखना चाहिए। लोकतंत्र जटिल रूप से लोगों की शक्ति से जुड़ा हुआ है। मतपत्र की शक्ति सर्वोच्च है जो सबसे शक्तिशाली दलों को अपदस्थ करने में सक्षम है।
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