Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सोशल पुलिसिंग : युवा जाए तो जाए कहां

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आज समाज से लेकर राजनीति तक युवाओं की बात होती है। कहा जाता है कि दुनिया की तमाम बड़े देशों की तुलना में भारत की स्थिति इसलिए थोड़ी अच्छी है, क्योंकि हमारे यहां सबसे ज्यादा युवा आबादी है। लेकिन हम युवाओं पर ही बंधन लगाने लग जाएं तो। खुली हवा में सांस लेने से रोक-टोक होने लगे तो हम किस तरह के समाज की रचना करने जा रहे हैं। आज सोशल मीडिया के जमाने में जहां तमाम विषयों पर खुलकर बात हो रही है उस दौर में अगर गार्डन में बैठे युवा जोड़े को खदेडऩे के काम में कोई चुना हुआ जनप्रतिनिधि जुट जाए तो से क्या कहिएगा। छत्तीसगढ़ में भिलाई को उदार और समृद्ध, संस्कृति वाला शहर माना जाता है। पूरे देश को लोग यहां निवास करते हैं जिनका देश के कई बड़े शहरों से लगातार संपर्क रहता है इसलिए भी भिलाई प्रदेश के दूसरे शहरों और कस्बों से थोड़ा ज्यादा आधुनिक जान पड़ता है।
अब इस शहर को खासकर युवाओं को नैतिकता का पाठ पढ़ाया जा रहा है, और इस पाठशाला के हेड मास्टर हैं नवनिर्वाचित विधायक भाजपा रिकेश सेन। जो चुनाव जीतने के बाद बेहद सक्रिय नजर आते हैं। फोन पर ही अफसरों को निर्देश देकर काम कराने और उसका वीडियो सोशल मीडिया में वायरल कराने में काफी बढ़त उन्होंने बना रखी है। हाल ही में उन्होंने शहर के नेहरू नगर स्थित गार्डन में दबिश दी और युवा जोड़ों को वहां खुलेआम बैठने से मना किया। इस दौरान प्रेमी जोड़ों से विधायक रिकेश की बहस भी हुई। इसका विडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।
विधायक के इस तरह अचानक गार्डन में धमकने से एक युवक का दर्द छलका। उसने यहां तक कह दिया कि हम आखिर जाएं कहां? विधायकजी आपने ओयो बंद करवा दिया, हर मेल-मुलाकात की जगह आपको लेकर दहशत है। एक कपल ने कहा कि ओयो तो हर जगह आप बंद करवा दिए हैं तो हम कहां जाएं। फिर युवक ने कहा कि हम जाएं तो कहां जाएं। इसके बाद बहस होती रही फिर विधायक सेन ने युवाओं को किसी तरह समझाकर वहां से रवाना कर दिया, लेकिन जिस तरह युवाओं ने विधायक के सामने अपना विरोध जताया उससे साफ है कि वो अपने जीवन में बहुत ज्यादा रोक-टोक बर्दाश्त नहीं है।
क्या किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि का काम इस तरह मॉरल पुलिसिंग करना है। पुलिस चाहे तो संदिग्ध गतिविधि नजर आने पर किसी से पूछताछ कर सकती है, लेकिन आपस में बातचीत करते युवा जोड़े को इस तरह पुलिस भी नहीं रोक सकती। भाजपा और उसके अनुशांगिक संगठनों ने मोरल पुलिसिंग के नाम पर कई मौकों पर युवाओं को रोका टोका है। वैलेनटाइन डे को मातृ-पितृ दिवस को तौर पर मनाने की जिद भी इस प्रदेश ने देखा है। जिस तरह फासिस्ट ताकतें हिटलर को खुश करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थीं, कुछ उसी तरह का आचरण आजकल कुछ लोग कर रहे हैं।
आज हर विषय पर बात हो रही है, युवाओं की इस समस्या पर भी चर्चा जरूरी है। आजकल युवक-युवती क साथ पढ़ाई के अलावा कम भी कर रहे हैं। इनके बीच दोस्ती होना स्वाभाविक है। अगर इसे भी संदिग्ध नजरों से देखा जाता है तो हम 21वीं सदी में जी रहे हैं इस पर सवाल उठता है। बड़े शहरों में अब इसे ज्यादा तरजीह नहीं दी जाती। समय की रफ्तार ही इतनी तेज है कि लोगों के पास किसी के लिए वक्त नहीं होता। लेकिन छोटे और मझौले शहरों में अभी भी समाज की ठेकेदारी करने का पूरा वक्त मिलता है। एक तरफ हम युवाओं को देश का भविष्य बताते हैं। राजनीति में युवा भागीदारी की बात होती है, दूसरी तरफ हम युवा मन को पढऩे में बिलकुल नाकाम होते हैं। इसी के चलते युवा का भरोसा टूटता है और वो सोचने लगता है कि उसे समझने में कैसे चूक हो रही है। इसके चलते कई बार उसका आत्मविश्वास भी डगमगा जाता है। हालांकि भिलाई के युवाओं ने विधायक महोदय के सामने बेबाकी से अपनी बात रखी और पूछा कि हम कहां जाएं। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की 58.3 प्रतिशत से अधिक आबादी 29 वर्ष या उससे कम थी, लेकिन एमओएसपीआई रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 2021-2030 का दशक देश की जनसंख्या के लिए संभावित रूप से एक नया मोड़ लेकर आ सकता है। अगले 15 वर्षों में भारत की युवा आबादी में 10 प्रतिशत अंकों की कमी आ सकती है। ऐसे में दुनिया में हमारा युवा आबादी वाला स्टेटस अगले कुछ वर्षों में कम होने लगेगा। ऐसे में जनप्रतिनिधियों के साथ ही समाज के तमाम प्रबुद्ध वर्ग को युवा मन को समझना होगा। हम अपने देश, अपनी संस्कृति व संस्कारों का न सिर्फ सम्मान करते हैं, बल्कि हमें उस पर गर्व है। हम ही क्यों, सभी देशवासी अपने देश से प्यार करते हैं, लेकिन जब उनकी देशभक्ति को परखने के अजीबोगऱीब पैमाने कुछ अंजान लोग तय करते हैं, तब कोफ़्त होती है। जब ये पैमाने किसी की निजी जि़ंदगी में हस्तक्षेप करने लगे।
मॉरल पुलिसिंग आज भी सवालों के घेरे में है और भारत में इसकी आड़ में ख़ूब गुंडागर्दी भी होती रही है और राजनीति भी। 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर में एक ग्रुप था, जो महिलाओं को जबरन चेहरा ढंकने का आदेश देता था, साथ यह धमकी भी कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो उन पर एसिड अटैक किया जाएगा। अपनी सक्रियता के इस दौर में इस ग्रुप ने कई सिनेमाघरों, होटल्स, बार, ब्यूटीपार्लर्स आदि पर अटैक किया था। वर्ष 2005 में साउथ की एक बड़ी एक्ट्रेस ने प्री मैरिटल सेक्स को लेकर बयान दिया था, जिसमें सेफ सेक्स पर ज़ोर दिया गया था। उसके बाद इस बयान को देश की संस्कृति पर आघात बताते हुए एक्ट्रेस के खि़लाफ़ कई केस दर्ज कर दिए गए। वर्ष 2012 में मैंगलोर के घर में चल रही पार्टी की घटना भी सबके ज़ेहन में आज भी ताज़ा है, जहां शांति से घर पर पार्टी कर रहे युवाओं पर अटैक किया गया था। इसमें 5 लड़कियां भी थीं, जिनके चेहरे पर कालिख पोत दी गई थी। इसी तरह से अक्सर आज भी कहीं किसी पब पर, तो कहीं किसी गार्डन में समय बिताने आए कपल्स या युवाओं पर मॉरल पुलिसिंग के नाम पर हमले होते रहते हैं।
मोरल पुलिसिंग करने के मामले में आजकल मीडिया की भूमिका भी बहुत सराहनीय नहीं है। एक रिजनल चैनल ने कुछ साल पहले गार्डन और सार्वजनिक जगहों पर लड़कियों के शॉट कपड़े को नैतिक पतन का संकेत बताया था।
दरअसल, हमारा समाज बहुत जल्दी बदलावों को स्वीकार नहीं कर पाता। इसके अलावा हमारी धारणा यही है कि हमारी परंपराओं से हटकर अन्य परंपराएं संस्कारों के विरुद्ध हैं। पश्चिमी संस्कृति से जुड़ी हर चीज़, हर बात ग़लत ही है। इससे हमारे समाज व संस्कृति को नुक़सान पहुंच सकता है आदि इस तरह की सोच कुछ लोगों को इतना अधिक उकसाती है कि वे बिना सोचे-समझे गुंडागर्दी पर उतारू हो जाते हैं। हम किसी भी तरह की आजादी के दुरुपयोग के खिलाफ हैं। बेहतर होगा कि हर जनरेशन को समझकर हमें व्यवहार करना होगा, ना कि अपनी सोच किसी पर लादकर।

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