Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – एक साथ चुनाव : वक्त की जरूरत या सियासी उपज

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

एक देश एक इलेक्शन को लेकर गठित कोविंद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। 18 हजार 626 पन्नों वाली ये रिपोर्ट 191 दिन की रिसर्च का नतीजा है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के दौरान 47 राजनीतिक दलों की राय ली गई है। इनमें से 32 ने एक देश एक चुनाव के पक्ष में और 15 ने विपक्ष में मत रखा है। एक देश एक चुनाव को लागु करने के लिए जो सुझाव भी दिए गए उनमें प्रमुख हैं-सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए। नो कॉन्फिडेंस मोशन या अल्पमत की स्थिति होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एकसाथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं। चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार करेगा।
कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है। कोविंद कमेटी के मुताबिक एक साथ चुनाव कराए जाने से विकास प्रक्रिया और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा, लोकतांत्रिक परंपरा की नींव गहरी होगी। इस तरह समिति देश में एक साथ चुनाव 2029 में कराने के पक्ष में है। अगर इतिहास पर नजर डाला जाए तो देश में आज़ादी के बाद पहले चुनाव एक साथ हुए थे। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए, लेकिन इसके बाद जब कुछ राज्य सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर गई थीं या उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था, उसके बाद राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
भाजपा बहुत पहले इस वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में वकालत करती रही है। सबसे पहले 1983 में वन नेशन वन इलेक्शन की बात पहली बार सामने आयी थी। अगर इस अवधारणा के अब तक के सफर पर नजर डालें तो 1983 में चुनाव आयोग की ओर से वन नेशन वन इलेक्शन का सुझाव दिया गया। इसके बाद 1999 में भारत के विधि आयोग ने चुनावी कानूनों में सुधार पर अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र किया था। फिर 2018 में भारत के विधि आयोग ने एक साथ चुनावों पर अपनी रिपोर्ट जारी की। इसके बाद 15 अगस्त 2019 को स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे भारत में एक साथ चुनाव कराने का अपना विचार दोहराया था। इस पर 1 सितंबर 2023 को केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन, वन इलेक्शन पर कमिटी बनाई। इस कमेटी ने आज अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
कोंविद पैनल एक देश-एक चुनाव पर रिपोर्ट तैयार करने से पहले 7 देशों की चुनाव प्रक्रिया पर स्टडी की। इनमें दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, स्वीडन, बेल्जियम, जापान, इंडोनेशिया, फिलीपींस शामिल हैं। कोविंद पैनल के मुताबिक एकसाथ चुनाव के लिए अन्य देशों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया। जिसका उद्देश्य चुनावों में निष्पक्षता और पारदर्शिता के लिए सबसे बेहतर अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं की स्टडी और उन्हें अपनाना था। इंडोनेशिया में 2019 से एकसाथ चुनाव करा जा रहा है। यहां राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति दोनों एक ही दिन चुने जाते हैं। हाल ही में 14 फरवरी 2024 को इंडोनेशिया ने एक साथ चुनाव कराए गए। इसे दुनिया का सबसे बड़ा एक दिवसीय चुनाव कहा जा रहा है क्योंकि लगभग 200 मिलियन लोगों ने सभी पांच स्तरों पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद सदस्य, क्षेत्रीय और नगर निगम के सदस्यों का चुनाव किया था।
इस रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने एकसाथ चुनाव के हक में राय जाहिर की है। वहीं, कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों- डीएमके, एनसीपी और टीएमसी ने इसका विरोध किया है। बीजेडी और एआईडीएमके इसके समर्थन में हैं।
हालांकि भाजपा न केवल एक साथ चुनाव के पक्ष में नजर आती है बल्कि वो कई दूसरे मामलों में भी एक सिस्टम को लागु करने के पक्षधर रही है। अक्सर भाजपा के बड़े नेता एक देश एक विधान की बात करते ही रहे हैं। जीएसटी लागू करने के पहले वन नेशन वन टैक्स की बात की जाती रही है, हालांकि जीएसटी के बाद भी समान टैक्स लागू नहीं है।
भारत की पहचान उसकी विविधता रही है। ऐसे में हम एक समान शर्तें या कानून से पूरे समाज को बांधेंगे तो चुनौतियां तो बहुत सामने आएंगी। वन नेशन वन इलेक्शन को कैसे लागू किया जाए इस पर विस्तृत रिपोर्ट आ गई है, पर इसे लागू करना आसान नहीं होगा। इसके लिए संविधान में कई संशोधन करने होंगे। राज्यों से सहमति लेनी होगी और राज्य विधानसभाओं को भंग करना होगा। कई जानकारों का मानना है कि महंगे होते चुनाव प्रक्रिया के बीच ये वित्तिय बोझ कम करने वाला रास्ता साबित हो सकता है। ऐसे में कह सकते है कि रास्ता कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं है।

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