Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – ‘संकटमोचक’ के बहाने शक्तिप्रदर्शन !

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र 

साल दर साल हनुमान जन्मोत्सव का आयोजन भव्य रूप लेते जा रहा है। वैसे इस साल छत्तीसगढ़ में रामनवमीं का त्यौहार भी डीजे पर नाचते और जगह-जगह जुलूस निकालते मनाया गया। इन जुलूसों में तपती गर्मी में नाचते गाते बहुत से लोग शालिनता और भक्ति का भाव छोड़कर एक तरह से शक्ति प्रदर्शन पर उतारू थे। गली-मोहल्ले के छुटभैय्या नेता जो खुद के पोस्टर बड़े नेताओं के साथ लगाकर भक्त बने नजर आ रहे थे। सही मायनों में ये अगर भक्ति है तो हमें और विचार करने की जरूरत है। हमारे ग्रंथों ने राम को शांत चित्त और मर्यादा पुरुषोत्तम बताया है। राजाओं में सर्वश्रेष्ठ बताया है। रमन्ते योगिन: अस्मिन सा रामं उच्यते अर्थात, योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं। लेकिन आज इसके उलट उनके नाम से तमाम शोर हो रहा है। जबकि आज के दौर में राम के जीवन मूल्य उनकी नीति को जीया जाए तो एक आदर्श समाज की स्थापना हो सकती है, लेकिन आजकल उनका इस्तेमाल आत्मशुद्धि के लिए कम राजनीति चमकाने के लिए ज्यादा हो रहा है।
पहले जहां हनुमान संत के तौर या फिर सीने में राम-सीता की छबि लिए रूप में ज्यादा लोकप्रिय थे, वहीं आज हनुमान का रौद्र रूप इन दिनों युवाओं को खूब भा रहा है। कुछ वर्षों पहले तक हनुमान मंदिरों में सीमित रहने वाले जन्मोत्सव के आयोजन सड़कों पर आ गए हैं। इस दौरान बेलागाम भीड़ सड़क पर जाम लगा देती है। इस तपती गर्मी में जहां घर से निकलना मुश्किल होता है वहां अगर धूप में खड़ा होना पड़े तो अच्छे भक्त भी कहने लग जाते हैं कि आस्था का ये दिखावा लोगों के लिए सरदर्द बन रहा है। हमारे यहां सड़क पर बारात से लेकर भक्ति जुलूस निकालने की परंपरा से होने वाली परेशानी को ही भांपते हुए वरिष्ठ लेखक खुशवंत सिंह ने 90 के दशक में ही इसका विरोध किया था। आज बहुत से लोग उस तरह मुखर नहीं हो पाते लेकिन खुशवंत सिंह के शब्द बहुत से लोगों के मन में है।
अगर हनुमान के चरित्र को ठीक से समझा जाए तो वे युवाओं के लिए मैनेजमेंट गुरु साबित हो सकते हैं। एक कुशल प्रबंधक व मानव संसाधन का बेहतर उपयोग करने वाले रामभक्त हनुमान जी में मैनेजमेंट की जबरदस्त क्षमता है। संपूर्ण रामचरित मानस में और हनुमानजी को समर्पित सुंदरकांड में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है जहां पर हनुमान जी ने बल और बुद्धि का बेहतरीन संतुलन पेश किया है। बल और बुद्धि का उपयोग करते हुए ही हनुमान जी ने माता सीता की खोज की थी। हनुमान जी ने हर समस्याओं को परिस्थितियों के हिसाब से सुलझाया है। जहां बल का प्रयोग करना था वहां बल का प्रयोग किया और जहां विन्रमता की आवश्यकता थी वहां बुद्धि का पूर्ण उपयोग कर परेशानी को दूर किया। इनमें से कुछ गुणों और घटनाओं का जिक्र अवश्य करना चाहेंगे। हनुमान जी माता सीता की खोज में जब लंका की तरफ बढ़ रहे थे, तभी समुंद्र ने हनुमान जी से विश्राम करने का आग्रह किया और अपने भीतर रह रहे मैनाक पर्वत से कहा की तुम हनुमान जी को विश्राम करने दो। हनुमान जी विश्राम करने से मना करते हुए निमंत्रण का मान रखते हुए मैनाक पर्वत को छू कर आगे की ओर निकल पड़े। हनुमान जी की इस बात से हमे यह सीखने को मिलता है कि हमें जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए हमें रुकना नहीं चाहिए। इसी तरह आगे मार्ग में सुरसा आती है और हनुमान को खाने की जिद करने लगती है। हनुमान बड़ी विनम्रता और बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं। जब सुरसा ने हनुमान जी को खाने के लिए जैसे ही अपना शरीर बड़ा किया हनुमान जी अपना शरीर दुगना बड़ा लिया। फिर सुरसा ने अपना शरीर बड़ा लिया, तब हनुमानजी समझ गए कि मामला मुझे खाने का नहीं है, सिर्फ अहम का है। उन्होंने तत्काल सुरसा के बड़े स्वरुप के आगे खुद को छोटा कर लिया ओर उसके मुंह में से घूम कर निकल आए। सुरसा हनुमान जी के इस बुद्धि पराकर्म से काफी खुश हो गई और लंका का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
इस प्रसंग से हमें सीख मिलती है कि जहां मामला अहम का हो, वहां बल नहीं, बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए। बड़े लक्ष्य को पाने के लिए अगर कहीं झुकना भी पड़े, झुक जाना चाहिए। ऐसे ढेरों उदाहरण हनुमान पेश करते हैं जो हमें जीवन दर्शन और आगे बढऩे में सहायक है, लेकिन इन्हें आज समझने के बजाए आज की पीढ़ी अलग लाइन पर जा रही है।
इसी तरह अमृत लाल नागर ने मानस का हंस में बालक तुलसीदास की जीवन-कथा का सुंदर चित्रण करते हुए हनुमान का जिक्र किया है। उसमें एक प्रसंग है गुरुकुल में बालकों में किसी ने कह दिया है कि रात्रि के पहर में श्मशान के पास वाले मंदिर में कोई शंख नहीं बजा सकता। अगर किसी ने हिम्मत की तो जीवित नहीं बचेगा। तुलसी ने इसे ललकार समझी। उन्होंने कहा कि वो जाएंगे भी और शंख भी बजाएंगे। उन्हें भरोसा था प्रभुराम के होते कोई उनका बाल न बाँका कर सकेगा। साथ के लोगों ने बहुत समझाया पर हठी बालमन माने कैसे! तिस पर तुलसी स्वयं जगतरक्षक के अनन्य भक्त। उन्होंने ठान लिया कि वे जाएंगे। पुस्तक में वर्णन है कि जाने की पूर्व संध्या पर तुलसी ने महाबली हुनमान का ध्यान किया और कुछ पंक्तियाँ लिख डाली जो बाद में हनुमान चालीसा कहलाई। बालक तुलसी का विश्वास ऐसा कि हनुमान चालीसा को गुनगुनाते हुए उन्होंने वह कर डाला जिसकी दूसरे बालकों को कल्पना भी नहीं थी।
भूत-पिशाच निकट नहीं आवें , महावीर जब नाम सुनावें
अगली रात तुलसी गए और शंक भी बजाय। इस घटना से बालक तुलसी की प्रभु में आस्था और दृढ़ हुई। इस तरह हनुमान का चरित्र बच्चों को निर्भिक बनाने में काफी सहायक साबित हुआ है, लेकिन आज उसे फिर से बच्चों से जोडऩे की जरूरत है। त्रेता युग में राम के सेवक के रूप में हनुमान ने एक आदर्श स्थापित किया। उन्हें बल और बुद्धि का प्रतिक माना जाता है, लेकिन आज कलयुग में उनका राजनीतिक इस्तेमाल भी हो रहा है। खास बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी से लेकर कई छोटे-बड़े नेता संकटमोचक को याद कर रहे हैं और उनके बहाने विपक्ष को घेर रहे हैं। राजस्थान कांग्रेस के शासन में हनुमान चालीसा सुनना भी अपराध हो गया। पीएम मोदी की टिप्पणी ऐसे दिन आई है जब देश हनुमान जयंती मना रहा है। इसी तरह स्मृति ईरानी ने भी अमेठी में कहा कि 20 मई को मोदी का हनुमान बनकर कांग्रेस की भ्रष्ट लंका में अपनी पूंछ से आग लगा देना है। हनुमान जैसा चरित्र जो सेवक के रूप में पूजे जाते रहे हैं लेकिन आज उनके गुणों को जाने बिना युवा वर्ग उन्हें शक्ति प्रदर्शन का और नेताओं ने सियासत का जरिया बना लिए हैं, जो हमारा दुर्भाग्य ही है।

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