Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – नारी शक्ति का वंदन

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

देश में इन दिनों गारंटी का सियासी दौर चल रहा है। लोगों की जुबां पर जहां मोदी की गारंटी छाई हुई है, वहीं कांग्रेस भी गारंटी की बैतरणी में गंगा पार करने का मन बना चुकी है। दरअसल, देश में लोकसभा चुनाव करीब हैं और ऐसे में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी जनता को लुभाने के लिए कोई भी कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहती है। लुभावने वादों के इस दौर में कांग्रेस पार्टी ने नारी न्याय गारंटी का ऐलान किया है। कुल मिलाकर कांग्रेस महिलाओं के लिए पांच गारंटी के तहत एक नया एजेंडा तय करने जा रही है। कांग्रेस का वादा है कि अगर उनकी सरकार बनी तो महिलाओं के लिए जारी की गई गारंटी को वह अमल में लाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के मुताबिक पांच सूत्रीय इस गारंटी में गरीब परिवार में एक महिला को सालाना 1 लाख रुपया दिया जायेगा। महिलाओं के लिए कांग्रेस की दूसरी गारंटी सभी नई भर्तियों में आधा हिस्सा महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाना है। कांग्रेस के अनुसार आशा, आंगनवाड़ी और मिड-डे मील बनाने वाली महिलाओं के मासिक वेतन में केंद्र सरकार का योगदान दोगुना किया जाएगा। इसके अलावा सभी पंचायत में एक अधिकार मैत्री नियुक्त करेंगे जो महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी देंगे और इन अधिकारों को लागू करने में मदद करेंगे। साथ ही केंद्र सरकार देश में कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल की संख्या दोगुनी करेगी, प्रत्येक जिले में कम से कम एक हॉस्टल होगा।
मल्लिकार्जुन खरगे ने नारी न्याय गारंटी लॉन्च करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी इससे पहले सहभागी न्याय, किसान न्याय और युवा न्याय का भी ऐलान कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस जो कहती है उस पर कायम रहती है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि 1926 से लेकर अब तक कांग्रेस का रिकॉर्ड है कि वे जो घोषणापत्र बनाते रहे हैं तो उस पर अमल भी करते हैं। अपने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने ‘नारी न्यायÓ गारंटी के बारे में जानकारी देते हुए मोदी सरकार पर निशाना भी साधा है। उन्होंने कहा कि महिलाएं देश की आधी आबादी हैं लेकिन पिछले दस सालों में उन्हें कुछ नहीं मिला। मोदी सरकार ने सिर्फ और सिर्फ उनकी मुश्किलें बढ़ाई हैं। खरगे ने कहा कि महिलाओं के नाम पर सिर्फ राजनीति हुई है और उनका इस्तेमाल वोट के लिए किया गया है, फिर चाहे वो महिला आरक्षण का मुद्दा हो, महंगाई हो, अपराध या फिर बेरोजगारी हो। इस सभी चीजों का सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर होता है।
वहीं दूसरी ओर अगर भाजपा की बात करें तो वह लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि मोदी की गारंटी पर लोग निश्चिंत होकर विश्वास कर सकते हैं। अपनी इस बात को साबित करने के लिए वे जनता को एक के बाद एक कई सौगाते भी दे रहे हैं। वैसे भाजपा दूध की जली है। छत्तीसगढ़ में साल 2018 के विधानसभा चुनाव में धान के बोनस का वादा पूरा न कर पाने का खामियाजा बीजेपी भुगत चुकी है। यही वजह है कि इस बार छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने के बाद एक के बाद एक लगातार चुनावी वादे पूरे किये जा रहे हैं। चाहे किसानों को धान की बकाया राशि देने का मामला हो या फिर महिलाओं को एक हजार रूपये महीने देने का वादा। पार्टी ऐसा कोई भी पुराना वादा अधूरा नहीं छोडऩा चाहती जो इस बार के लोकसभा चुनाव में उसे मुश्किल में डालने वाला हो।
प्रधानमंत्री मोदी मोदी इस बात पर बार-बार जोर दे रहे हैं कि उनके लिए केवल चार जातियां ही हैं और ये जातियां हैं-महिला, युवा, गरीब और किसान। दरअसल हाल में हुए विधानसभा चुनावों के बाद से ही नारी शक्ति केंद्र में आ गई है। हाल के दिनों में यह देखा गया है कि महिलाओं पर लक्षित कल्याणकारी योजनाओं या मुफ्त सुविधाओं ने चुनाव परिणामों को कैसे प्रभावित किया है। भाजपा की लाडली बहना योजना को पिछले साल मध्य प्रदेश चुनावों में पार्टी की जीत के पीछे एक बड़ा कारक माना जाता है, जबकि परिवारों की महिला मुखियाओं को नकद राशि और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा ने कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस के पक्ष में बढ़त हासिल की थी। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने राजनीतिक अभियानों को महिलाओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित किया है। बीते कुछ वर्षों में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावों में महिला मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि देखी गई है, चाहे वह लोकसभा चुनाव हो या राज्य विधानसभा चुनाव। इसके अलावा मतदान को लेकर भी महिलाओं का रुझान पुरुषों की तुलना में बढ़ा है। कई जगहों पर महिलाओं ने पुरुष मतदाताओं को पछाड़ दिया है। आंकड़ों के मुताबिक जोड़े गए नए मतदाताओं में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं शामिल हैं। मतदाता सूची में लिंग अनुपात सकारात्मक रूप से बढ़ा है, जो राष्ट्र के लोकतांत्रिक ढांचे को आकार देने में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का संकेत देता है। कुल मिलाकर भले ही सियासी मजबूरी हो या राजनितिक इच्छा शक्ति, लेकिन यह तो तय है कि राजनीति में अब महिलाओं का सम्मान और स्थान बढ़ रहा है। यह किसी भी समाज में संतुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक है। साथ ही साथ यह आधी आबादी का हक भी है।

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