Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – एथिक्स की पॉलिटिक्स और पॉलिटिक्स में एथिक्स

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - एथिक्स की पॉलिटिक्स और पॉलिटिक्स में एथिक्स
-सुभाष मिश्र

कैश फॉर क्वेरी मामले में टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता चली गई है। महुआ मोइत्रा ने लोकसभा से निष्कासित होने पर कहा कि मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं थे, लेकिन फिर भी कंगारू कोर्ट ने ये फैसला लिया क्योंकि मोदी सरकार के लिए अडानी ग्रुप जरूरी है। तृणमूल कांग्रेस की चीफ और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि हम महुआ मोइत्रा के साथ हैं। ये गणतंत्र के अधिकारो का हनन है। मुझे लगा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस बात पर सही रवैया होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। ये पूरे संसद के लिए दुख भरा दिन है।  गौरतलब बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप लगाया था। बहस के दौरान बीजेपी सांसद हीना गावित ने कहा कि महुआ मोइत्रा ने अपने संसदीय इतिहास में कुल 61 सवाल किए, जिसमें से 50 बार दर्शन हीरानंदानी के सवाल पूछे हैं। महुआ ने खुद ही एथिक्स कमिटी के सामने माना कि उन्होंने हीरानंदानी को लॉग-इन, पासवर्ड दिए हैं। दर्शन हीरानंदानी देश के बड़े कारोबारी हैं। रियल एस्टेट सेक्टर में उनका बड़ा नाम है। हीरानंदानी ग्रुप रियल एस्टेट कंपनी के सीईओ दर्शन हीरानंदानी का नाम कैश फॉर क्वेरी में महुआ मोइत्रा के साथ जुड़ा। दर्शन पर आरोप लगे कि उन्होंने अपनी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए महुआ मोइत्रा को पैसे दिए ताकि वो संसद में अडानी को लेकर सवाल करें। इस मामले में खुलासा होने के बाद उनका नाम सामने आया। दर्शन की कंपनी का अधिकतर कारोबार मुंबई में है। दर्शन के पिता निरंजन हीरानंदानी इस कंपनी के फाउंडर हैं। हीरानंदानी ग्रुप रेसिडेंशियल टाउनशिप से लेकर आईटी पार्क, बिजनेस पार्क, मॉल से अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट से जुड़ी है। नैतिकता इंसान का एक ऐसा गुण है जो उसके विचार और व्यवहार से पता चलता है। इंसान नैतिकता के मार्ग पर चलकर स्वयं का और दूसरों का भी भला करता है। जब व्यक्तियों में नैतिकता बढ़ती है तो सामजिक ढांचा मजबूत होता है। लोग सुरक्षित और खुद को मजबूत महसूस करते है। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना नैतिकता है। तो ये मामला हुआ अभी का, लेकिन सवाल ये कि क्या वाकई एथिक्स की पॉलिटिक्स और पॉलिटिक्स में एथिक्स अब बचे भी है या नहीं। क्योंकि इससे पहले भी 12 दिसंबर 2005 को एक निजी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन में कुछ सांसद संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे लेते हुए कैद हुए थे। देश के संसदीय इतिहास में ये पहली घटना थी। हैरान करने वाली बात ये थी कि ये 11 सांसद किसी एक पार्टी के नहीं थे। इनमें से 6 भाजपा से, 3 बसपा से और एक-एक राजद और कांग्रेस से थे। इस पूरे कांड के सामने आने के 12 दिन बाद ही 24 दिसंबर 2005 को इन सांसदों की सदस्यता रद्द करने को लेकर संसद में वोटिंग कराई गई। बाकी सभी पार्टियां आरोपी सांसदों के खिलाफ कार्रवाई के पक्ष में थीं। लेकिन बीजेपी ने वॉक-आउट कर दिया था। तब विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि सांसदों ने जो जो किया, वो बेशक भ्रष्टाचार का मामला है, लेकिन निष्कासन की सजा ज्यादा है। तो ये था नेता की नैतिकता को लेकर करनी और कथनी की हकीकत अब बात करते हैं कि राजनीति में नैतिकता को लेकर हमारे महा पुरुषों ने क्या कहा है। संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर का कहना था कि तुम्हारे मुक्ति का मार्ग मंदिर और धर्मशास्त्र में नहीं हैं, बल्कि उच्च शिक्षा, व्यवसायी बनाने वाले रोजगार, उच्च आचरण और नैतिकता में है। देश और दुनिया के महान लोगों में प्रमुख राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे, चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता बिना राजनीति समाज के लिए घातक होते हैं उनका मानना था, नैतिकता चीजों का आधार है और सत्य सभी नैतिकता का सार है। हालांकि राजनीति में नैतिकता की दृष्टि से एक दोषयुक्त वातावरण में पूर्णता की आशा करना अवास्तविक और एकतरफा होगा। वहीं दूसरी ओर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राजनीति में जो मानदंड स्थापित किये गए हैं, वे शासन के अन्य पहलुओं पर महत्तवपूर्ण असर डालते हैं। नैतिकता की राजनीति को प्रभावित करने वाले बड़े कारणों में से एक चुनावों में बड़ी संख्या में गैर-कानूनी और अनुचित धन का व्यय भी है। गौरतलब है कि देश को झकझोर देने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड के करीब 25 साल बाद उच्चतम न्यायालय 20 सितंबर को सांसदों और विधायकों को संसद या राज्य विधानसभाओं में भाषण या वोट देने के बदले में रिश्वत लेने के मामलों में मुकदमा चलाने से छूट देने के अपने 1998 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सहमत हो गया था। न्यायालय ने कहा था कि यह ‘राजनीति में नैतिकता’ पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला एक अहम मुद्दा है। अब आखिर में ये सवाल है कि प्रौद्योगिकी से उत्पन्न नैतिकता कितनी प्रभावी होगी। हम अक्सर सोचते हैं कि अधिक ज्ञान प्राप्त करना हमेशा अच्छा होता है। यदि मैं कैलकुलस का ज्ञान प्राप्त कर लूं, तो अब मैं कुछ ऐसे काम कर सकता हूं जो मैं पहले नहीं कर पाता था। फिर भी, जिसे दार्शनिक परिणामवादी परिप्रेक्ष्य कहते हैं, वह इसके बजाय यह प्रस्तावित कर सकता है कि ज्ञान स्वयं तटस्थ है: हमें यह जानना चाहिए कि इसके अच्छे या बुरे परिणाम हैं या नहीं, इसका निर्णय करने से पहले मुझे यह जानना चाहिए कि मैं अपने ज्ञान का अभ्यास में कैसे उपयोग करूंगा। यदि ज्ञान मुझे वह काम करने में सक्षम बनाता है जो मैं पहले नहीं कर पाता था, तो इसका मतलब है कि यह मेरी शक्ति बढ़ाता है। इसलिए, यदि कुछ लोगों के पास नई तकनीक तक पहुंच है और अन्य के पास नहीं है, और यदि जो लोग पहले से ही शक्तिशाली पदों पर हैं, वे इसका उपयोग अपनी शक्ति को और बढ़ाने के लिए कर सकते हैं, तो इससे समाज में पहले से मौजूद शक्ति असंतुलन बढ़ सकता है। ये पूरा मामला नैतिकता के साथ ही तकनीकी से भी जुड़ा हुआ है। ऐसे में हमें और सतर्कता से काम लेना होगा।

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