-सुभाष मिश्र
पीरियड पर पेड लीव को लेकर बड़ी बहस छिड़ गई है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में वर्कप्लेस के लिए पेड मेंस्ट्रूअल लीव अनिवार्य बनाए जाने को लेकर राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा के सवालों को खारिज कर दिया, इससे नया विवाद पैदा हो गया है।
स्मृति ईरानी ने कामकाजी महिलाओं को पेड मेंस्ट्रूअल लीव यानी सवेतन मासिक धर्म अवकाश दिए जाने पर असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि मेंस्ट्रूएशन महिलाओं के जीवन का नेचुरल पार्ट है, इसे दिव्यांगता यानी किसी तरह की कमजोरी की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। पीरियड्स के दौरान ऑफिस से लीव मिलना महिलाओं से भेदभाव का कारण बन सकता है।
ईरानी ने कहा कि एक महिला के तौर पर मैं जानती हूं कि पीरियड्स और मेंस्ट्रुएशन साइकिल परेशानी की बात नहीं है। पीरियड्स के दौरान ऑफिस से लीव मिलना महिलाओं से भेदभाव का कारण बन सकता है। कई लोग जो खुद मेंस्ट्रुएट नहीं करते हैं, लेकिन इसे लेकर अलग सोच रखते हैं। हमें उनकी सोच को आधार बनाकर ऐसे मुद्दों को नहीं उठाना चाहिए जिससे महिलाओं को समान अवसर मिलने कम हो जाएं।
हमारे समाज में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंदिर जाने, अचार छूने, पूजा करने, खाना पकाने, पेड़-पौधों के छूने और बाल धोने आदि जैसे कई कार्य वर्जित होते हैं। शास्त्रों में भी पीरियड के दौरान पूरे तीन दिनों तक बाल न धोने की बात कही गई है।
वैज्ञानिक मत के अनुसार इस समय महिलाओं को संक्रमण का अधिक खतरा रहता है। यही कारण है कि अन्य लोगों को इसके बुरे प्रभाव एवं महिलाओं को संक्रमण से बचाने के लिए उन्हें घर के कामकाज से अलग रखकर आराम करने की बात कही गई होगी। इस बात की संभावना है कि यह धारण समय के साथ विकृत हुई होगी।
प्राचीन काल में डिस्पोजेबल सेनेट्री पैड की सुविधा नहीं थी। महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती थीं। जिससे संक्रमण की आशंका बहुत अधिक रहती थी लेकिन आज ऐसा नहीं है। इसलिए यह मान्यता धीरे-धीरे कमज़ोर होती जा रही है और अब तो इसे हैप्पी पीरियड्स भी कहा जाने लगा है।
उल्लेखनीय है कि मासिक समाप्त होने के बाद के कुछ दिन गर्भ धारण के लिए उत्तम होते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार 84.1 प्रतिशत महिलाओं ने मासिक धर्म में दर्द की सूचना दी, 43.1 प्रतिशत ने बताया कि दर्द हर अवधि के दौरान होता है, और 41 प्रतिशत ने बताया कि दर्द कुछ अवधि के दौरान होता है।
राष्ट्रीय शोधकर्ता और उनके सर्वेक्षण के अनुसार यह कहा गया है कि भारत में कई महिलाएं दर्द से गुजरती हैं जिससे उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। मासिक धर्म को लेकर हमारे देश में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग परंपरा देखी जाती है। जहां उत्तर भारत में इस पर खुलकर बातचीत नहीं होती, वहीं दक्षिण भारत में कुछ जगहों पर जब किसी किशोरी को पहली बार मासिक धर्म होता है तो उसे बकायदा एक खास आयोजन भी किया जाता है।
आमतौर पर हिंदू और मुस्लिम परिवारों में इसको लेकर कई तरह के नियम होते हैं। ज्यादातर घरों में इस पर खुलकर बात नहीं होती। हालांकि ईसाई धर्म में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान किसी भी तरह की पाबंदी नहीं है। यहां तक वो चर्च भी जा सकती है, लेकिन महिलाओं के इस प्राकृतिक चक्र या अवस्था पर वहां भी बहुत खुलकर बात नहीं होती। कुछ साल पहले अक्षय कुमार की एक फिल्म पेड मेन इस विषय पर आई थी। तब बहुत से लोगों ने इस पर खुलकर बातचीत करना शुरु किया था।
मनोज झा बहुत सुलझे हुए नेता हैं वो काफी पढ़ते लिखते हैं हो सकता है कि वो पेड लीव के बहाने इस समस्या पर खुलकर बहस छेडऩा चाह रहे हों। आज भी समाज में पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल होने वाले सेनेटरी पेड्स को दुकानदार काली पन्नी में छुपाकर देता हो, वहां इस बारे में बहुत बातचीत होने
की जरूरत है। इस दौरान महिलाओं के लिए जरूरी हाईजीन को बढ़ावा देने के लिए और प्रयास करना जरूरी है। पेड्स लीव के संबंध में स्मृति ईरानी के तर्क सही हो सकते हैं, लेकिन इस नेचुरल साइकल के बारे में समाज को और जागरूक करने की जरूरत है।
प्रसंगवश: अनामिका की ये कविता
ईसा मसीह
औरत नहीं थे
वरना मासिक धर्म
ग्यारह बरस की उमर से
उनको ठिठकाए ही रखता
देवालय के बाहर!
बेथलेहम और येरूज़लम के बीच
कठिन सफर में उनके
हो जाते कई तो बलात्कार
और उनके दुधमुँहे बच्चे
चालीस दिन और चालीस रातें
जब काटते सड़क पर,
भूख से बिलबिलाकर मरते
एक-एक कर
ईसा को फुर्सत नहीं मिलती
सूली पर चढ़ जाने की भी।
मरने की फुर्सत भी
कहां मिली सीता को
लव-कुश के
तीरों के
लक्ष्य भेद तक?