Editor-in-chief सुभाष मिश्र की कलम से-ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म सामाजिक बदलाव की धार

ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म सामाजिक बदलाव की धार

सुभाष मिश्र 
ओटीटी जिस तरह से सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया को धार दे रहा है, उसकी तरफ अभी कम लोगों का ध्यान जा रहा है। याद किया जाए कि जब शुरुआत में टेलीविजन आया था और वह रंगीन हुआ तो उसकी रंगीनियत ने समाज में काफी बदलाव किया और यह बदलाव बहुत अप्रत्याशित था और बड़ी तेजी से हुआ था। लोगों ने इस बदलाव को महसूस भी किया था और बहुत हल्ला मचा था कि टेलीविजन अश्लीलता फैला रहा है। टेलीविजन लोगों को एकाकी बना रहा है। टेलीविजन लोगों की सामाजिकता खत्म कर रहा है। मेल जोल खत्म कर रहा है। टेलीविजन अपराध को बढ़ावा दे रहा है लेकिन इस हल्ले का कोई असर नहीं हुआ। टेलीविजन सूचना और संचार का एक बड़ा माध्यम था और वह पूरी तैयारी और बड़ी पूंजी के साथ आया था। वह विश्व पूंजी का एक बड़ा हिस्सा था। और उसके आगमन की तैयारी में इस तरह के विरोध की आशंका की अनसुनी की जाने की तैयारी शामिल की गई थी। दरअसल शुरुआत में लोग एकाएक इस बात को समझ नहीं पाए थे और टेलीविजन की खिलाफत करने लगे थे जबकि मामला टेलीविजन का नहीं बाजार का था। पूंजी का था। भूमंडलीकरण के दौर की दस्तक हुई थी। टेलीविजन महज एक माध्यम था और है।

ओटीटी इससे आगे की कड़ी है। फिल्म बनाना एक बड़े बजट का या बड़े खर्च का माध्यम है। एक फिल्म के बनाने में बजट इसलिए बढ़ जाता है कि कलाकारों की फीस, स्टूडियो का किराया, टेक्नीशियन का वेतन, मजदूरों की मजदूरी यानी एक काफी बड़ा कुनबा और बड़े खर्च के साथ फिल्म बनती है जिसकी सफलता की कोई गारंटी नहीं रहती है। ओटीटी ने बड़ी कंपनियों को पूंजी निवेश के लिए उकसाया है। नेटफ्लिक्स से लेकर हॉटस्टार तक बड़ी कंपनियां इस रेस में शामिल हो गई हैं। टेलीविजन के चैनलों को परास्त करने के लिए ओटीटी की कंपनियों को कुछ नया सोचना था। टेलीविजन पर सास-बहू के सीरियलों की सफलता का उदाहरण है। इस तरह के सीरियलों के अपने तय दर्शक हैं। सीरियल अपने तय समय में आते हैं और उन्हें इस तय सीमा में देखने की विवशता होती थी। यानी कंटेंट और समय। विषय और तय समय की सीमा बाधा को ओटीटी ने तोड़ा। दूसरा काम ओटीटी ने कंटेंट के माध्यम से किया। ओटीटी ने बहुत जल्दी इस बात को समझ लिया कि भारत में सेक्स बिकता है। कोई कितना भी विरोध कर ले लेकिन अश्लीलता देखना ही पसंद करता है। ओटीटी पर किसी तरह की सेंसरशिप नहीं है। इसी बात का सबसे ज्यादा फायदा ओटीटी ने उठाया और न्यूडिटी यानी नंगेपन और स्त्री-पुरुषों के दैहिक संबंधों की अश्लीलता की लगभग ब्लू फिल्म-से सीरियल बनने लगे। रियलिटी दिखाने के नाम पर गालियों और अश्लीलता से भरी फिल्में भी आने लगीं। यह बहुत बड़ा और डरावना बदलाव था। लेकिन इसकी प्रतिक्रियाएं वैसी नहीं आईं जैसे की अपेक्षित थीं। मामूली से विरोध के बाद समाज और राजनीति के जिम्मेदार लोगों ने इस ओर से नजऱें फेर लीं। जो अश्लीलता, अभद्रता और फुहड़ता पहले ढंकी-छुपी थी। वह घरों में बेडरूम से लेकर ड्राईंगरूम में दाखिल हो गई। अब धीरे-धीरे उसे सार्वजनिक स्वीकृति से मिलने लगी है।

हालांकि हर माध्यम के दो पहलू होते हैं। ओटीटी का एक सकारात्मक पहलू भी है कि इसने आर्थिक अभाव के चलते प्रतिभाशाली प्रोड्यूसर-डायरेक्टर्स को अवसर दिए। इसी ओटीटी पर प्रतिभाशाली निर्माता-निर्देशकों ने असरदार फि़ल्में और सीरियल बनाए हैं। देश दुनिया के साहित्य पर प्रभावशाली फिल्में सामने आई हैं। बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार के अवसर मिले। जिन कलाकारों, टेक्निशियन, लेखक, निर्माता, निर्देशकों को फिल्मों में अवसर नहीं मिल रहे थे, उन लोगों को ओटीटी पर अवसर मिले हैं और उन्होंने इस अवसर को भुनाया और बहुत अच्छे रिजल्ट दिए हैं। फिल्मों में बजट बढऩे के कारण, ज्यादा पूंजी लगने के कारण लोग अच्छे विषयों पर फिल्म बनाने का जोखिम नहीं लेते थे। यह जोखिम कम बजट में ओटीटी पर लिया जाने लगा है। दरअसल इस तरह के माध्यम पूंजी की देन होते हैं। अब इसमें काम करने वाले लोगों पर निर्भर होता है कि इस माध्यम का वह कितना अच्छा या कितना बड़ा लाभ उठा सकते हैं। बुराई तो हर माध्यम में अवसर की तलाश में रहती है।
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हाल के सालों में देखें तो हमें ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए से मसान, गुलमोहर, 12वीं फेल, लापता लेडी, डिस्पैच, ग़ुल्लक, बैंडिट बंदिश, ताली, दया, कालकूट, बवाल, असुर, द नाइट मैनेजर, द हंट फॉर वीरप्पन, हाफ सीए, दया, फज़ऱ्ी, सरदार उधम, जय भीम, मीनाक्षी सुंदरेश्व, हम दो और हमारे दो जैसी फि़ल्म, वेबसीरिज देखने को मिली।
ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स ने फिल्म और टीवी उद्योग में एक नया युग प्रारंभ किया है। इन प्लेटफ़ॉर्म्स ने रचनात्मकता को एक नई दिशा दी है और पारंपरिक टेलीविजन और सिनेमा के मुकाबले कंटेंट के वितरण में अधिक लचीलापन और स्वतंत्रता प्रदान की है। इस बदलाव के कारण, फिल्म और टीवी इंडस्ट्री में बड़े बदलाव आए हैं, जो आज के समय में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स पर कंटेंट बनाने की स्वतंत्रता, विविधता और नवाचार ने फिल्म और टीवी उद्योग के स्वरूप को बदल दिया है।

पारंपरिक टेलीविजन और सिनेमा की तुलना में, ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स ने फिल्म निर्माताओं और रचनाकारों को बड़ी रचनात्मक स्वतंत्रता दी है। पारंपरिक मीडिया में चैनल्स और प्रोडक्शन हाउसेस द्वारा तय किए गए दिशा-निर्देशों और विज्ञापन रेटिंग्स के दबाव के कारण कई विषयों को नजर अंदाज किया जाता था। लेकिन ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स ने इन सीमाओं को तोड़ते हुए रचनाकारों को अपनी इच्छानुसार कंटेंट बनाने की स्वतंत्रता दी है। इनमें कोई तय शॉर्ट टाइम स्लॉट या विज्ञापनों के दौरान कंटेंट को रोकने का दबाव नहीं होता। इससे रचनाकार अपनी कहानी को बिना किसी सेंसरशिप या निरंतर समय सीमा के दबाव के पूरी तरह से पेश कर सकते हैं।

पारंपरिक मीडिया में कंटेंट को निश्चित समय और शैली में बांधने का दबाव था, लेकिन ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स ने रचनाकारों को स्वतंत्रता दी है कि वे किसी भी शैली में कंटेंट बना सकते हैं। इस कारण से, अब दर्शकों को हर प्रकार के कंटेंट का अनुभव हो रहा है, जैसे कि रोमांस, थ्रिलर, ड्रामा, साइंस फिक्शन, ऐतिहासिक ड्रामा, और अन्य अनूठे प्रकार के कंटेंट। ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स पर सीन और एपिसोड की लंबाई, कहानी के ढांचे, या गालियों और अश्लीलता जैसी सीमाओं पर ज्यादा लचीलापन होता है, जिससे फिल्मकार अपनी पूरी रचनात्मकता का उपयोग कर सकते हैं। कंटेंट पर कोई बड़ा बंधन नहीं होता, जिससे रचनाकार अपने विचारों को बिना किसी डर के दर्शकों तक पहुंचा सकते हैं। इसी कारण ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स पर कुछ बेहद अलग और साहसी कंटेंट देखने को मिलता है, जो कभी पारंपरिक सिनेमा या टीवी चैनलों पर संभव नहीं होता।

ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स ने नए टैलेंट को एक मंच दिया है, जिससे वे अपनी रचनात्मकता को दुनिया तक पहुंचा सकते हैं। फिल्म इंडस्ट्री में परंपरागत रूप से जगह बनाना कठिन होता है, लेकिन अब छोटे-छोटे निर्माता और लेखक भी ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स का सहारा लेकर अपना काम दर्शकों तक पहुँचाने में सक्षम हैं।
ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स ने न केवल टीवी उद्योग को बदल दिया है, बल्कि सिनेमा के अनुभव को भी नया रूप दिया है। अब लोग सिनेमाघरों में फिल्में देखने के बजाय अपने घरों में आराम से ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स का उपयोग करके फिल्मों और वेब सीरीज़ का आनंद लेते हैं। इससे सिनेमाघरों में भी कमी आई है। लोग अब अपनी पसंदीदा फिल्में किसी भी समय और किसी भी स्थान पर देख सकते हैं, चाहे वे स्मार्टफोन, लैपटॉप या स्मार्ट टीवी पर हों। इससे सिनेमाघरों पर निर्भरता कम हुई है, और फिल्म देखने का तरीका पूरी तरह से बदल गया है।
भारत में ओटीटी सेवाओं का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। ‘इंटरनेट इन इंडिया रिपोर्ट 2023’ के अनुसार, भारत में लगभग 70.7 करोड़ लोग ओटीटी सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं। इसके पीछे स्मार्ट टीवी, स्मार्ट स्पीकर, और अन्य उपकरणों का बढ़ता उपयोग है। इस वृद्धि के कारण ओटीटी सेवाओं के उपयोग में 58प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारतीय ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म जैसे डिज्नी प्लस हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स, और अमेजऩ प्राइम वीडियो अब भारत में प्रमुख स्थानों पर मौजूद हैं।

सरकार, समाज ओटीटी प्लेटफार्म पर परोसी जा रही अश्लीलता से चिंतित है किन्तु वैसा कुछ नही कर पा रही है जैसा फिल्मों के साथ करती है। 2021 के आईटी नियमों के तहत ओटीटी कंटेंट के लिए तीन-स्तरीय स्व-नियमन प्रणाली लागू की गई है। इस प्रणाली के माध्यम से शिकायतों को त्वरित रूप से हल करने का प्रयास किया जाता है, जिससे कंटेंट की गुणवत्ता और सामाजिक जिम्मेदारी सुनिश्चित की जा सके। किन्तु अभी यह प्रभावी ढंग से लागू नही हो पाया है।

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