Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – भ्रामक विज्ञापन को जरूरी फटकार

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र 

एक मुहावरा है अपना पूत सबहिं को प्यारा, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि दूसरों के बच्चे के गुण-दोषों को अच्छे से जाने बगैर उसकी निंदा कर दी जाये। ऐसा ही एक मामला हुआ है पतंजलि आयुर्वेद के साथ। दरअसल, पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योग गुरु रामदेव और कंपनी के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि अदालत के आदेशों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। आपके खेद जताने के तरीके को हम मंजूर नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने मामले में सुनवाई की। पतंजलि की दवाओं के विज्ञापनों को लेकर सर्वोच्च अदालत के आदेश की अवमानना मामले में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण कोर्ट में पेश हुए। इस दौरान उनकी ओर से खेद जताया गया लेकिन कोर्ट ने उनकी माफी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि रामदेव ने योग के लिए काफी कुछ किया है, लेकिन इससे उन्हें चिकित्सा की अन्य विधाओं की आलोचना करने या उनका मजाक उड़ाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान को पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ निष्क्रियता पर केंद्र सरकार से भी सवाल किया। केंद्र के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को संबोधित करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके पास आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी के लिए सवाल हैं। कोर्ट ने कहा कि आयुष मंत्रालय को यह स्पष्ट करने में सक्रिय होना चाहिए था कि आयुर्वेदिक प्रोडक्ट अन्य दवाओं के सप्लीमेंट्री हैं और इस्तेमाल करने वालों को एलोपैथिक इलाज छोडऩे की आवश्यकता नहीं है। जस्टिस कोहली ने कहा कि हमारे पास आयुष के लिए सवाल हैं। आपने पतंजलि को नोटिस जारी किया और उन्होंने जवाब दाखिल किया और जवाब हमारे सामने नहीं है। हम सोच रहे कि ऐसा क्यों हुआ। यह 2022 में था। आपने खुद कहा था कि ये मुख्य दवा के लिए सबसे अच्छे सप्लिमेंट थे। इसका बिल्कुल भी प्रचार नहीं किया गया।

यह पहली बार नहीं है जब बाबा रामदेव, उनकी कंपनी पंतजलि विवादों में घिरी हो। इससे पहले भी वे, पंतजलि आयुर्वेद और उनके उत्पाद विवादों में घिरे रहे हैं। साल 2022 में पंतजलि के गाय के घी में मिलावट सामने आई थी। दिसंबर 2022 में बीजेपी नेता और सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने बाबा रामदेव को मिलावटखोरों का राजा कहा था।

बाबा का बड़बोलापन नए विवादों को जन्म देता है। दरअसल बाबा रामदेव ने साल 2021 में मई महीने में दावा किया था कि एलोपैथी एक बेवक़ूफ़ विज्ञान है। उन्होंने कहा था कि रेमडेसिविर, फेविफ्लू जैसी दवाएं और भारत के औषधि महानियंत्रक (ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) की तरफ से अनुमोदित अन्य दवाएं कोविड -19 रोगियों के इलाज में विफल रही हैं। रामदेव ने ट्विटर पर शेयर किए लेटर में लिखा था कि अगर एलोपैथी सभी शक्तिशाली और सर्वगुण संपन्न है, तो डॉक्टरों को बीमार नहीं पडऩा चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव के खिलाफ सख्त टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रामदेव को दूसरी आधुनिक दवाओं और इलाज प्रणालियों की आलोचना नहीं करनी चाहिए। इसके बाद साल 2022 में रामदेव ने एलोपैथी संबंधी अपनी टिप्पणी के लिए खेद व्यक्त किया था। उन्होंने फिर कहा था कि वो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और एलोपैथी के विरोधी नहीं हैं।

दरअसल, सोशल मीडिया के इस दौर में इलाज के नाम पर जिस तरह से भ्रम जाल बुना जा रहा है, वो बेहद खतरनाक है, सभी चिकित्सा पद्धति की अपनी खासियत है लेकिन कहीं भी एकदम से चमत्कार की बात करना यानि भ्रमित करने की कोशिश हो रही है। आज फेसबुक, यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म में कई गंभीर बीमारियों का इलाज का दावा किया जाता है, इनमें से कई में तो डॉक्टरों और एलोपैथिक पद्धति से दूर रहने की सलाह दी जाती है। ऐसे लोगों के चक्कर में पड़कर कई लोगों ने अपना स्वास्थ्य और खराब कर लिया है। ऐसे में आयुर्वेद या किसी भी चिकित्सा पद्धति के नाम पर किया डिलीवर किया जा रहा है उस पर नजर रखना होगा।

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