Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – एकै साधे सब सधै

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ में चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदला है। मोहन मरकाम की जगह दीपक बैज को जिम्मेदारी सौंपी गई है। बस्तर सांसद दीपक बैज सौम्य और ईमानदार छबि वाले नेता हैं। कहा जाता है कि वो राहुल गांधी के भी गुडबुक में शामिल हैं। ऐन चुनाव के पहले हुए इस बदलाव के कई मायने निकाले जा रहे हैं। जहां पार्टी सत्ता में हो वहां संगठन के लिए काम करने के लिए अतिर्कित समन्वय की आवश्यकता होती है, खासतौर पर चुनाव के वक्त सत्ता की पसंद को ध्यान में रखते हुए संगठन को रणनीति बनानी होती है, साथ ही चुनाव के वक्त कई नेताओं की नाराजगी सामने आती है उससे निपटना किसी नेता के बगावत से होने वाले नुकसान की सही ढंग से समीक्षा करना एक तरह से बड़ी चुनौती है। ऐसे में दीपक बैज जो की बस्तर में जमीन स्तर पर सक्रिय रहते हैं लेकिन राजधानी में उनकी सक्रियता उतनी नहीं रही है। ऐसे में राजधानी की सियासत के साथ एक तरह से तालमेल बैठाना होगा। फिर संगठन में अपने हिसाब से बदलाव करना भी होगा। ताकि अपने नियंत्रण में वो कामकाज करा सकें।
दीपक बैज अभी महज 42 साल के हैं इस कम उम्र में वो विधानसभा औऱ लोकसभा दोनों चुनाव में अपना लोहा मनवा चुके हैं। उनके पास अभी एक लंबा सियासी सफर बाकी है। ऐसे में भविष्य में कांग्रेस की उम्मीदें भी उनसे जुड़ी हुई है। चुनाव से पहले संगठन में अपने हिसाब से जिम्मेदारियों में बदलाव फिर चुनाव संचालन के दौरान कई वरिष्ठ नेताओं से उनका सामना होगा उन्हें संतुष्ट करना उनकी ताक़त को पार्टी हित में इस्तेमाल करने का कौशल दीपक बैज को दिखाना होगा। इसके अलावा सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बैठाते हुए टिकट वितरण भी एक बड़ी चुनौती होगी हालांकि इसके स्क्रिनिंग कमेटी होगी लेकिन पीसीसी अध्यक्ष की भूमिका और सलाह इस मामले में अहम होगा।
हालांकि मीडिया से बातचीत में उन्होंने पार्टी में किसी भी तरह की गुटबाजी से इनकार किया है। उनका दावा है कि प्रदेश के तमाम वरिष्ठ नेताओं की सहमति से ही वे पीसीसी अध्यक्ष बने हैं। दीपक बैज ने पदभारग्रहण करते ही कहा भूपेश है तो भरोसा है, उन्होंने कहा कि पार्टी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी। भूपेश सरकार के कामकाज को आधार बनाकर जनता के बीच जाने की बात उन्होंने कही है। इस दौरान उन्होंने केन्द्र सरकार पर भी कड़ा हमला बोला। उन्होंने एक और अहम बात कही कि गाड़ी के दो चक्के हैं सत्ता और संगठन। इन दोनों में सामंजस्य बनाना पड़ेगा। हमारा लक्ष्य 2023 है। झूठ के खिलाफ खड़ा होना है। दीपक बैज ने इस दौरान कहा कि केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ का पैसा और उसका हक रोका है। पिंजरे के तोते को भेजकर डराने की कोशिश की गई लेकिन भूपेश बघेल डरने वाले नहीं है। कका अभी जिंदा हैं। इसके अलावा उन्होंने आर-पार का बयान देते हुए भाजपा को चुनौती दी कि अगर हिम्मत है तो पीएम मोदी के चेहरे पर छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़कर दिखाएं।
बहरहाल 2018 में चुनाव के वक्त भूपेश बघेल पीसीसी अध्यक्ष थे उनके साथ तब नेता प्रतिपक्ष रहे टीएस सिंहदेव ने कदम ताल मिलाते हुए जबर्दस्त रणनीति पूरे प्रदेश के लिए बनाई और उसका नतीजा भी बेहतर देखने में आया था। बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद मोहन मरकाम को पीसीसी अध्यक्ष बनाया गया उन्होंने भी चार साल से ज्यादा वक्त तक पार्टी का संचालन किया। जानकारों का मानना है कि इस दौरान कुछ मामलों में सत्ता और संगठन के बीच मतभेद भी उभरे लेकिन इसे स्वाभाविक घटनाक्रम मानते हुए ज्यादा तवज्जो नहीं दिया गया। 2023 में हालांकि कांग्रेस की स्थिति मजबूत है लेकिन भाजपा जिस आक्रमकता के साथ चुनावी मैदान में उतरती रही है उसके मद्देनजर भाजपा को एकदम से कमजोर मानकर चलना सियासी नादानी होगी। ऐसे आक्रमक पार्टी के मुकाबले के लिए भूपेश और सिंहदेव जैसी जोड़ी चाहिए। क्या दीपक बैज उस तरह का सामंजस्य और नेतृत्व दिखा पाएंगे, इस प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती उनके सामने होगी।
चुनाव के समय कार्यकर्ताओं को साधना एक कला है, जब बूथ स्तर पर फोकस किया जा रहा हो तो उन्हें पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं से और जमीनी स्तर के संगठनों पर कमांड बनाने के लिए मेहनत करनी होगी।
भले सत्ता सरकार के सामने कई नेता अपने अरमानों को जगने नहीं देते लेकिन चुनाव के वक्त ऐसे बहुत से नेता और कार्यकर्ता हैं जो खुद के लिए संगठन से मांग करते हैं ऐसे सभी नेताओं की उम्मीदों को पूरा करना आसान नहीं होता. इस हालात में कई बार असंतोष के सुर उभरते हैं। इस हालात से निपटना भी उनके लिए एक तरह चुनौती होगी। कुछ राज्यों में इससे पहले सीनियर नेताओं के टकराव की कीमत संगठन को चुकानी पड़ी है। फिलहाल जिस तरह के बदलाव सत्ता और संगठन में हुए हैं उसके बाद एक दम नए व्यक्ति को जिम्मेदारी देकर एक तरह से आलाकमान ने एक को साधकर सब को साधने की कोशिश की है जिससे चुनाव के दौरान किसी तरह का नुकसान न झेलना पड़े।

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