Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – चुनाव से पहले दावे और हकीकत !

Editor-in-Chief

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Claims and reality before elections!

– सुभाष मिश्र

अगले 12 महीने प्रदेश और देश का माहौल चुनावमय रहेगा। इसके मद्देनजर छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का आना-जाना शुरू हो गया है। खासतौर पर केन्द्रीय मंत्री लगातार प्रदेश के दौरे पर आ रहे हैं। हाल ही में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दुर्ग में एक आम सभा को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निशाना साधते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ शासन की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री की भी उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इस दौरान उन्होंने प्रदेश सरकार पर वादाखिलाफी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। इस दौरान उन्होंने 2024 में होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह की सरकार पर निशाना साधा। शाह ने कहा कि कांग्रेस के शासन में वामपंथी उग्रवाद था। अब पीएम मोदी की सरकार ने एक बस्तर के थोड़े क्षेत्र को छोड़ दे तो खत्म करने का काम किया है।
छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार घोटाला और वादाखिलाफी करने वाली सरकार है, शराबबंदी की बात कहने वाली सरकार अब शराब की होम डिलीवरी कर रही है। डेढ़ लाख करोड़ का कर्जा भूपेश सरकार ने चढ़ा लिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में 13 हजार से ज्यादा शिशु मारे गए हैं, एक हजार किसानों ने आत्महत्या की है।
पीएम मोदी की सरकार ने 61 लाख मीट्रिक टन चावल खरीदने का काम किया है। मतलब 92 लाख मीट्रिक टन धान और 74 हजार करोड़ रुपये राज्य सरकार को दिया है। जबकि राज्य सरकार ने सिर्फ 12 हजार करोड़ दिया है। अमित शाह ने कहा 10 साल तक सोनिया-मनमोहन की सरकार केंद्र में थी। सिर्फ 74 हजार करोड़ रुपये छत्तीसगढ़ में भेजा जबकि मोदी सरकार ने 9 साल में 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा छत्तीसगढ़ को दिया है। इस तरह गृहमंत्री अमित शाह ने एक सभा से 2023 और 24 में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के पक्ष में बात रखी।
गौरतलब है कि दुर्ग लोकसभा सीट भले ही भाजपा के पास हो लेकिन विधानसभा के नजरिए से देखा जाए तो ये कांग्रेस का दुर्ग है। इस संभाग में आने वाली 20 सीटों में से 18 पर कांग्रेस का ही कब्जा है। इस क्षेत्र से पार्टी के दिग्गज नेताओं की पूरी फौज आती है इनमें खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, रविन्द्र चौबे, मो. अकबर जैसे नाम शामिल हैं। शायद इस क्षेत्र की अहमियत को समझते हुए ही भाजपा ने अमित शाह जैसे बड़े नेता की यहां सभा आयोजित की गई। अमित शाह के भाषण से एक बात और साफ होती नजर आई कि भाजपा इस बार भी राम मंदिर को प्रमुख मुद्दा बनाएगी। इस बार वो राम मंदिर निर्माण का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को देते हुए मैदान में उतर सकती है। जिस तरह सूचना मिल रही है कि मंदिर को आम लोगों के लिए जनवरी 2024 में खोला जा सकता है इससे भी एक बार देशभर में राम मंदिर का कार्ड भाजपा खेल सकती है। हालांकि, छत्तीसगढ़ के संबंध में शाह की तैयारी उस तरह नजर नहीं आई। भूपेश बघेल की सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान छत्तीसगढ़ की अस्मिता को जगाया है। प्रदेश के ठेठ ग्रामीण अंचलों के तीज त्यौहार, परंपराओं को महत्व दिया उसका कोई जवाब शाह के पास नहीं था। दरअसल छत्तीसगढ़ देश में कांग्रेस का एक मजबूत गढ़ के तौर पर उभरा है, इसे भेदने के लिए किस चेहरे पर दांव लगाया जाए इस पर ही पशोपेश में है। भाजपा जैसे राष्ट्रीय स्तर पर कहती है कि मोदी के सामने विपक्ष का कौन सा चेहरा है। अगर यही सवाल राज्य में दोहरा दिया जाए कि भूपेश बघेल के सामने भाजपा का कौन सा नेता है जिसके नाम चुनावी समर में पार्टी उतरेगी तो जवाब ढूंढना मुश्किल हो जाएगा।
भाजपा यहां तीन बार के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पर भरोसा नहीं जता पा रही है। इसकी कई वजह हो सकती है। मसलन पिछले चुनाव में जितनी बुरी तरह से प्रदेश की जनता ने रमन सिंह की सरकार को नकारा था उसका डर अभी

भी सता रहा हो। फिर पार्टी के सत्ता से उतरने औऱ कमजोर पडऩे से कई तरह की खेमेबाजी भी हुई है। उसको कहीं बल न मिल जाए इसका डर। पुराने चेहरों के बीच युवा नेतृत्व को कैसे बैलेंस किया जाए इसकी चुनौती जैसे कई सवाल हैं जिसको लेकर भाजपा फिलहाल आश्वस्त नहीं है। ऐसे में चुनावी रणनीतिकार माने जाने वाले अमित शाह किस आधार पर छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार की उल्टी गिनती गिन रहे हैं, ये बात वो यहां की जनता को कितना समझा पाए कहना मुश्किल है। सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप के दम पर चुनाव जीतने का सपना पालना इस दौर में एक कुशल रणनीतिकार की निशानी नहीं हो सकती। आप यूपीए सरकार की खामी बताकर छत्तीसगढ़ में मैदान नहीं मार सकते, अब तो 2024 में भी शायद ही मतदाता 10 साल पुरानी सरकार के प्रदर्शन के आधार पर आपको वोट दें, उसे आपने क्या किया इससे मतलब है। ऐसे में मंदिर, धर्म, जाति के आधार पर भावनाओं को भड़काकर अगर हम चुनाव मैदान में जीत के बारे में सोच रहे हैं तो छत्तीसगढ़ को समझने में फिर चूक कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ की जनता इस तरह प्रोपेगंडा से हमेशा दूरी बनाकर रखती है। यहां की बड़ी आबादी को खेती किसानी से मतलब है, वहां किसने क्या किया ये काफी मायने रखता है। चार माह बाद यहां मतदान होना है ऐसे में सियासी सितारों को जमीन पर उतरकर रणनीति बनानी होगी नहीं तो छत्तीसगढ़ को समझने में चूक हो सकती है। बहुत जल्द प्रधानमंत्री मोदी बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करने जा रहे हैं ऐसे में कर्नाटक चुनाव के बाद एक बात और साफ हो गई है कि जरूरत से ज्यादा केन्द्र सरकार के कामकाज का विवरण और पीएम मोदी के चेहरे पर निर्भरता भाजपा के लिए कई मायनों में उलट परिणाम देने वाला हो सकता है।

 

 

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