Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – एक उम्मीद जो खूनी मोड़ पर जाकर टूट गई

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

रायपुर में एक युवक ने अपने छोटे भाई की गोली मारकर हत्या कर दीं। आजकल जिस तरह से अपराध पांव पसार रहा है, उस संदर्भ में देखा जाए तो इस तरह की वारदात नई नहीं है। आए दिन करीबी संबंधियों के बीच खूनी वारदात आम होने लगी है, लेकिन जिस युवक ने इस वारदात को अंजाम दिया है वो कुछ समय पहले तक स्टार्टअप के जरिए सफल होने वाले युवा के रूप में पहचाना जा रहा था। प्रदेशभर के मीडिया ने उसकी सफलता की कहानी छापी है। इससे कई युवाओं के लिए वो रोल मॉडल की तरह था। सरगुजा के रहने वाले पियुष ने रायपुर आकर एरोनॉटिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। फिर बंगलुरु में इससे संबंधित कंपनी से जुड़कर व्यव्हारिक ज्ञान को बढ़ाया। वहां से लौटने के बाद पियुष को सरकारी नौकरी भी मिल गई, लेकिन आसमान में उड़ रहे उसके इरादे सरकारी नौकरी में उसे बंधने नहीं दिया।
पियुष ने काफी संघर्ष के बाद मुद्रा लोन लेकर ड्रोन बनाने की खुद की कंपनी शुरू की। महज 45 हजार रुपए से अपना सफर शुरू कर उसने जल्द ही उसने करोड़ों की टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी कर डाली। पुलिस सीआरपीएफ, रेलवे जैसे बड़े संस्थानों को उसने अपना क्लाइंट बना लिया। ड्रोन के क्षेत्र में भी लगातार वो नए-नए प्रयोग करने लगा। यहां तक नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों को भी ड्रोन की ट्रेनिंग देने के लिए उसे आमंत्रित किया जाने लगा। पियुष अपने इस कारोबार में अपने छोटे भाई को भी शामिल कर लिया। कोविड के दौरान पियुष को व्यापारिक रूप से चुनैतियों का सामना करना पड़ा, उसे कुछ नुकसान भी झेलना पड़ा। इसके खीज में वो नशे की लत में जाने लगा, इस बीच उसकी शादी भी टूट गई। इस घटना से पियुष में काफी आक्रमकता आ गई, वो अक्सर तनाव में रहने लगा, आए दिन उसका छोटे भाई से विवाद होता था।

पियुष की काबिलियत को जानने वालों के लिए ये बेहद चौंकने वाली बात थी कि जो युवा इतने कम समय में इतना कुछ कर सकता है वो एका-एक कैसे रास्ते से बहकते जा रहा है। इस बहकाव ने रविवार रात को खूनी मोड़ ले लिया। युवा रोल मॉडल पियुष अपने ही भाई के कत्ल के आरोप में सलाखों के पीछे पहुंच चुका है। ये केवल पियुष का ही मामला नहीं है। दरअसल, आज हम युवाओं में अजीब सी सनक, जल्द आपा खो देना, नशे को फैशन बना लेना आम होते देख रहे हैं। आज के समय में हमारा समाज युवा नशे की लत के ज्यादा शिकार है। इसके चलते युवाओं में सहनशक्ति की कमी देखी जा रही। युवा बहुत जल्दी अपना हौसला खो देते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि वे डिप्रेशन में चले जाते और फिर वे नशे की गिरफ्त में फंस जाते हैं। अपने जीवन में कई बार लोग लगातार मिल रही असफलताओं से घबरा जाते हैं और इस कारण वे भविष्य में मिलने वाली सफलताओं की संभावना को खो देते हैं। नशे की शुरुआत पहले मज़े और मित्रों के साथ जश्न से होती है। धीरे-धीरे इंसान नशे के अंधकार में फंसता चला जाता है।

जवान हो रही पीढ़ी में नशे की लत तेजी से फैल रही है। यह नशा शराब या सिगरेट तक सिमित नहीं है, बल्कि गांजा, कोकीन, अफीम, डेंडराइट, स्मैक और न जाने कई तरह के ड्रग्स का सेवन आज का युवा कर रहा है। इस तरह का नशा करने की वजह से युवाओं की मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। कई का तो मनो चिकित्सालयों में इलाज भी चल रहा है, वहीं इस नशे के आदि होने के बाद से अपराध का ग्राफ भी बढ़ा है।

आप अक्सर ही ऐसी खबरें पढ़ते या सुनते होंगे कि फला आदमी के नशे की लत ने उसके पूरे परिवार को तहस-नहस कर दिया। आपने वो विज्ञापन भी जरूर देखा होगा जिसमें तंबाकू सेवन के खतरनाक परिणामों के बारे में बताया गया है। इसके साथ ही आप अक्सर ऐसी खबरें पढ़ते होंगे जिसका मजमून ये रहता है कि कच्ची शराब ने ली लोगों की जान। नशे की ये लत कितनी खतरनाक है, इसका अंदाजा आप इस आंकड़े से लगा सकते हैं। देश में प्रत्येक 1000 में से 15 व्यक्ति नशीली दवाओं का सेवन करते हैं और प्रत्येक 1000 में से 25 लोग क्रोनिक अर्थात स्थायी शराब सेवन के शिकार हैं। यह तथ्य भी बेहद चौंकाने वाला है कि नशे के गिरफ्त में आए 10 फीसदी से अधिक आबादी अवसाद, न्यूरोसिस और मनोविकृति सहित मानसिक विकारों से पीडि़त है। जबकि भारत में मनोरोग और नशामुक्ति बिस्तर की उपलब्धता आवश्यक संख्या का केवल 20 फीसदी है। इस प्रकार, देश भर में 80 फीसदी मनोरोगी और नशा की समस्या से पीडि़त रोगियों को अस्पताल की सुविधा भी मयस्सर नहीं है। साथ ही इस संबंध में जागरुकता का अभाव है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि जब नशीली दवाओं का दुरूपयोग किसी व्यक्ति के सामान्य और पेशेवर जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करता है तो उसे नशे का लती कहा जाता है। यह न सिर्फ नशेड़ी व्यक्ति के व्यक्तित्व में परिवर्तन लाता है बल्कि उसके आसपास रहने वाले व्यक्तियों के व्यवहार में भी चिड़चिड़ापन ला देता है। इसके अलावा व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के चलते भी नए कारोबारियों को दबाव में ला रहा है। इसके चलते वे अपना आपा खो रहे हैं। अभिभावक और बच्चों के बीच पर्याप्त संवाद नहीं होने के कारण भी युवा गलत रास्ते में बहक रहे हैं। पियुष ने अपने स्टार्टअप के जरिए बड़ी उम्मीद बांधी थी लेकिन नशे और दूसरे तरह के तनाव के चलते उसने न केवल अपने भाई को मौत के घाट उतार दिया, बल्कि अपने करियर और समाज की उम्मीदों का भी गला घोंट दिया है।

देश की युवा पीढ़ी यदि गलत रास्ते पर चले तो इसमें नुकसान केवल उन युवा पीढ़ी का ही नहीं होता बल्कि इसमें देश का भी नुकसान होता है। युवा पीढ़ी के गलत राह पर चले जाने से देश की तरक्की रुक जाती है। क्योंकि इन्हीं से तो देश की तरक्की है, लेकिन आज की युवा पीढ़ी नशे की राह पर जा रही है। अगर एक व्यक्ति जब नशा करना शुरू कर देता है तो उसका घर, परिवार सबके जीवन में अंधेरा छा जाता है। दुख तो इस बात का है कि यह सब जानने के बावजूद युवा पीढ़ी नशे का सेवन करना नहीं छोड़ रही है।

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