लखनऊ: हिंदी साहित्य जगत को एक सप्ताह के भीतर दो बड़े झटके लगे हैं। प्रख्यात व्यंग्यकार और साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी का शुक्रवार को निधन हो गया। उनकी पत्नी निशा चतुर्वेदी का भी इसी महीने की 19 जुलाई को देहांत हुआ था।

गोपाल चतुर्वेदी हिंदी व्यंग्य साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। उन्होंने अपने व्यंग्य लेखों के ज़रिए तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक आडंबरों व रूढ़ियों पर गहरा प्रहार किया। उनकी रचनाओं में सत्ता की विसंगतियों का सटीक विश्लेषण मिलता है। उनके व्यंग्यों में मध्यवर्गीय जीवन से जुड़े प्रसंगों, घटनाओं और व्यवहारों का खुलासा होता था। वे मानवीय दुर्बलताओं और मानसिकता का परिपक्वता से अंकन करते थे।
भारतीय रेल सेवा में उच्च पदों पर रहने के कारण उन्होंने सरकारी दफ्तरों, लालफीताशाही और अफसरशाही को बेहद करीब से देखा था। उनके व्यंग्यों में इसका बेबाक चित्रण मिलता है, जो पाठक को हंसाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करता है। वे लंबे समय तक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे ‘सारिका’, ‘इंडिया टुडे’ (हिंदी), ‘नवभारत टाइम्स’, ‘हिंदुस्तान’ और ‘दैनिक भास्कर’ में नियमित रूप से व्यंग्य कॉलम लिखते रहे।
‘साहित्य अमृत’ पत्रिका में तो पहले अंक से ही उनका ‘राम झरोखे बैठ के’ नामक व्यंग्य स्तंभ प्रकाशित होता रहा। उनके दस से अधिक व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके कुछ प्रमुख संग्रहों में ‘अफसर की मौत’, ‘दुम की वापसी’, ‘राम झरोखे बैठ के’, ‘खंभों के खेल’, ‘फाइल पढ़ि-पढ़ि’, ‘दाँत में फंसी कुरसी’, ‘गंगा से गटर तक’, ‘नैतिकता की लंगड़ी दौड़’, ‘भारत और भैंस’, ‘धांधलेश्वर’ और ‘पत्थर फेंको, सुखी रहो’ शामिल हैं। इनमें से ‘अफसर की मौत’, ‘दुम की वापसी’ और ‘राम झरोखे बैठ के’ को हिंदी अकादमी, दिल्ली का श्रेष्ठ ‘साहित्यिक कृति पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है।
उन्हें रेलवे बोर्ड द्वारा प्रेमचंद पुरस्कार (1986), हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा साहित्यकार सम्मान (1995-96), अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन पुरस्कार (1991-92), कुलदीप गोसाई स्मृति पुरस्कार (1998), सेठ गिरधारीलाल सराफ ठिठोली पुरस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, हिंदी गौरव सम्मान, यू.पी. रत्न सम्मान, के.पी. सक्सेना स्मृति सम्मान और यश भारती सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
1986 में उनकी कविता ‘जय देश भारत भारती’ भारत सरकार के राष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘अपना उत्सव’ में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा आशय गीत के रूप में चुनी गई थी। इस गीत का संगीत पंडित रवि शंकर ने तैयार किया था और आशा भोसले ने इसे स्वरबद्ध किया था। गोपाल चतुर्वेदी ने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में व्याप्त कुंठा, स्वार्थपरता, छल-छद्म और अमानवीयता पर खुलकर वार किया। उनका लेखन न केवल गुदगुदाता था, बल्कि हमें अपने परिवेश और अपनी सोच पर गंभीरता से विचार करने के लिए भी प्रेरित करता था।