Editor-in-chief सुभाष मिश्र की कलम से- गैंगस्टर का इलाज एनकाउंटर ?

सुभाष मिश्र

अपराधियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह इधर के कई सालों में जेल हो गई है। सरकार की चाक-चौबंद व्यवस्था में रहते हुए जेल के भीतर से अपनी गैंग चलाने, अपराधों को अंजाम देने और अपने नेटवर्क के जरिए वसूली करना आम बात है। चाहे दिल्ली की तिहाड़ जेल हो या रायपुर की सेंट्रल जेल, अपराधी जानते हैं कि पेशी में लाते ले जाते, कोर्ट के भीतर आपसी रंजिश के चलते या खुले में घुमने से वे आपसी मुठभेड़ या एनकाउंटर में मारे जा सकते हंै। रसूखदार अपराधी जिनके पास अकूत संपत्ति, संसाधन और संपर्क हैं, वे देश छोड़कर किसी सुरक्षित देश में जाकर शरण ले लेते हैं या छिप जाते हैं। अपराधियों के एनकाउंटर पर आम जनता जो अपराधियों से खौफजदा रहती हैं, उन्हें सीना चौड़ा करके आजाद घूमते देखती है, उनके एनकाउंटर पर खुश होती है।

हमारे देश में अभी सजा के लिए न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। बहुत बार अपराधी बचके निकल जाते हैं किन्तु बहुत सारे इस्लामिक देशों में अपराधियों को तुरंत सजा दी जाती है। हमारे यहां जब राजा-रजवाड़े, सांमतवादी व्यवस्था थी तब तत्काल सजा का प्रावधान था। हमारे यहां भी कुछ लोग तत्काल न्याय की कोशिश में लगे हुए हैं। कभी बुलडोजर, कभी अकारण जेल तो कभी एनकाउंटर के जरिए वे सजा देना चाहते हैं। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो महाराष्ट्र के समाजवादी विधायक अबू आजमी को औरंगजेब की तारीफ करने पर कहते हैं अबू आजमी को यूपी भेज दो, इलाज कर देंगे। हरिशंकर परसाई अपनी कालजयी रचना ‘इंस्पेक्टर मातादीन चांद परÓ मातादीन के मुंह से चांद की पुलिस को कहलवाते भी हंै कि -हनुमानजी की मूर्तियां बनवाइए और हर पुलिस लाइन में स्थापित करवाइए। थोड़े ही दिनों में चांद की हर पुलिस लाइन में हनुमानजी स्थापित हो गए। एक दिन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शुरू कर दिया। पहले उन्होंने पुलिस लाइन का मुलाहज़ा किया। शाम को उन्होंने आई.जी. से कहा—आपके यहां पुलिस लाइन में हनुमानजी का मंदिर नहीं है। हमारे रामराज में पुलिस लाइन में हनुमानजी हैं।

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आई.जी. ने कहा—हनुमान कौन थे—हम नहीं जानते। मातादीन ने कहा—हनुमान का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसवाले के लिए ज़रूरी है। हनुमान सुग्रीव के यहाँ स्पेशल ब्रांच में थे। उन्होंने सीता माता का पता लगाया था। Óएबडक्शनÓ का मामला था—दफ़ा 362। हनुमानजी ने रावण को सज़ा वहीं दे दी। उसकी प्रॉपर्टी में आग लगा दी। पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि अपराधी को पकड़ा और वहीं सज़ा दे दी। अदालत में जाने का झंझट नहीं। मगर यह सिस्टम अभी हमारे रामराज में भी चालू नहीं हुआ है। हनुमानजी के काम से भगवान राम बहुत ख़ुश हुए। वे उन्हें अयोध्या ले आए और ‘टोन ड्यूटीÓ में तैनात कर दिया। वहीं ंहनुमान हमारे आराध्य देव हैं। मैं उनकी फ़ोटो लेता आया हूँ।

एनकाउंटर में मारा गया गैंगस्टर अमन साहू चर्चित गैंगस्टर लारेंस विश्नोई से जुड़ा हुआ था। 148 दिन तक रायपुर की सेंट्रल जेल में बंद अमन साहू पर 125 केस रजिस्टर्ड थे। वह 2019 में गिरफ्तार हुआ था किन्तु बाद में 29 सितंबर 2019 से फरार हो गया था जिसके तीन साल बाद जुलाई 2022 में दोबारा गिरफ्तार किया गया। अमन साहू को चाईबासा जेल से रायपुर शिफ्ट किया गया था। उसके गुर्गे ने रायपुर के तेलीबांधा क्षेत्र में एक व्यापारी की गाड़ी पर गोलीबारी की थी।
भारत में पुलिस एनकाउंटर (मुठभेड़) का इतिहास लंबा और विवादित रहा है। यह तत्काल न्याय दिलाने का एक तरीका माना जाता है, लेकिन इसकी वैधता और निष्पक्षता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ के रायपुर स्थित सेंट्रल जेल में बंद झारखंड के गैंगस्टर अमन साहू को पूछताछ के लिए झारखंड ले जाते समय पुलिस ने अमन साहू का सलामू क्षेत्र में एनकाउंटर कर दिया। रांची के छोटे से गांव मतबे का रहने वाला था। उस पर झारखंड में रंगदारी, हत्या, एक्सटॉर्शन सहित 100 से ज्यादा मामले दर्ज थे, वह एक समय में हार्डकोर नक्सली भी रह चुका था और करीब 2013 में उसने अपना गैंग बनाया था। कोरबा में हुए गोलीकांड के बाद रायपुर पुलिस ने उसके 4 गैंग सदस्यों को गिरफ्तार किया था।

अमन साहू की मुठभेड़ पर उसके पिता तथा पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा विधायक चंपाई सोरेन ने सीबीआई जांच की मांग की है। वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने पुलिस द्वारा आत्मरक्षा में की गई कार्यवाही की प्रशंसा की है।

अब हमें यह समझना होगा कि पुलिस एनकाउंटर क्या है? दरअसल, जब पुलिस किसी अपराधी या संदिग्ध को गिरफ्तार करने जाती है और मुठभेड़ (एनकाउंटर) के दौरान उसकी मौत हो जाती है तो इसे पुलिस एनकाउंटर कहा जाता है। एनकाउंटर की मुख्य वजह अपराधियों से आत्मरक्षा, कानून-व्यवस्था बनाए रखना, खतरनाक अपराधियों को रोकना, राजनीतिक दबाव और जनभावनाओं को शांत करना है।

भारतीय संविधान और कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार प्राप्त है लेकिन क्रिमिनल प्रोसिजर कोड और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश पुलिस को आत्मरक्षा में बल प्रयोग करने की अनुमति देते हैं। सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश 2014, पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट ने 16 गाइडलाइंस दी थीं, जिनमें शामिल हैं- मुठभेड़ की स्वतंत्र जांच जरूरी। एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। मजिस्ट्रेट द्वारा जांच होनी चाहिए। मुठभेड़ में शामिल पुलिसकर्मियों के हथियारों की फॉरेंसिक जांच होनी चाहिए। मानवाधिकार आयोग को सूचना दी जानी चाहिए।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी पुलिस एनकाउंटर की जांच करने की सिफारिश करता है। यदि हम भारत में एनकाउंटर का इतिहास और प्रमुख मामले को देखें तो सबसे पहले 1980-90 के दशक में पंजाब में उग्रवाद और मुंबई में अंडरवल्र्ड को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर पुलिस एनकाउंटर किए गए। मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट जैसे प्रदीप शर्मा, दया नायक और विजय सालस्कर चर्चा में रहे। 2000 के बाद (हैदराबाद, यूपी, एमपी, महाराष्ट्र, दिल्ली), 2008, बाटला हाउस एनकाउंटर (दिल्ली) इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों पर कार्रवाई। 2019 में हैदराबाद गैंगरेप केस के चार आरोपियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया। 2020 में विकास दुबे एनकाउंटर (उत्तर प्रदेश)-कानपुर का कुख्यात अपराधी पुलिस कस्टडी से भागने की कोशिश में मारा गया।
कई बार पुलिस पर फेक एनकाउंटर करने का आरोप भी लगा है। छत्तीसगढ़ के नक्सली मुठभेड़ के नाम पर निर्दोष ग्रामीणों की हत्या के मामले में जांच आयोग ने पुलिस को दोषी भी ठहराया है। सोहराबुद्दीन शेख केस (2005, गुजरात) को सुप्रीम कोर्ट ने इसे फर्जी मुठभेड़ माना था।

यदि हम देखें तो पुलिस एनकाउंटर का वृहतर समाज पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। हमारी बहुत सारी फिल्म ‘अब तक- 56Ó से लेकर ‘सिंघमÓ तक पुलिस को माचो मेन तथा तत्काल सजा देने वाले के रूप में पसंद करती है। फिल्मों में जहां पुलिस की छवि को चमकाया है तो उसे बहुत बार दागदार भी दिखाया है जो नेताओं, पैसे वालों और माफियाओं के इशारे पर काम करती है। वैसे इस तरह के एनकाउंटर से अपराधियों में डर पैदा होता है। जनता को तुरंत न्याय मिलने की भावना होती है। कानून-व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिलती है। यही इसका एक दूसरा कानूनी और संवैधानिक पक्ष यह भी है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया जाता है। कई मामलों में निर्दोष लोग मारे जाते हैं।
यदि हम चाहते हैं कि अपराधियों को जल्द से जल्द सजा मिले और फेक एनकाउंटर न हो तो हमें ज्यादा से ज्यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने होंगे ताकि गंभीर मामलों में जल्द न्याय दिलाने का सिस्टम मजबूत किया जाए ताकि जनता को फेक एनकाउंटर की जरूरत महसूस न हो। यदि हम एनकाउंटर के आंकड़ों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में मार्च 2017 से दिसंबर 2024 तक पुलिस और अपराधियों के बीच 12,000 से अधिक मुठभेड़ हुई हैं, जिनमें 217 अपराधी मारे गए हैं। मार्च 2025 में उत्तर प्रदेश के मथुरा में पुलिस मुठभेड़ में एक लाख रुपये के इनामी अपराधी असद को मार गिराया गया। असद पर लूट, डकैती और हत्या के कई मामले दर्ज थे, और वह कई राज्यों में आतंक का पर्याय बना हुआ था। इन अभियानों के दौरान 17 पुलिसकर्मी शहीद हुए और 1,644 घायल हुए हैं। महाराष्ट्र में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 26 अपराधी पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए हैं।
भारत में पुलिस एनकाउंटर एक दोधारी तलवार के समान है। यह अपराध नियंत्रण का प्रभावी तरीका हो सकता है, लेकिन अगर इसे बिना जवाबदेही के किया जाए, तो यह न्याय प्रणाली को कमजोर कर सकता है। इसलिए, पुलिस को कानूनी और नैतिक दोनों ही आधारों पर संतुलन बनाकर काम करने की जरूरत है। बहरहाल अभी तो अमन साहू के एनकाउंटर से सभी खुश हैं और उनके दो साथियों का भी खात्मा चाहते हैं। लोगों को लगता है कि गुंडे बदमाश गैंगस्टर जो जबरिया रंगदारी करके, गुंडागर्दी कर लोगों को डराते धमकाते हैं उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले।

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