Editor-in-Chief Subhash Mishra : प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से सूचना बनाम अफवाह!

Editor-in-Chief Subhash Mishra :

Editor-in-Chief Subhash Mishra : प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से  सूचना बनाम अफवाह!

Editor-in-Chief Subhash Mishra : पिछले कुछ समय से हिंसा की अनेक घटनाएँ देश के विभिन्न भागों में निरंतर घटित हुई हैं। यह भीड़ की यह हिंसा है। मॉब लिंचिंग के रूप में घटित हो रही यह नई परिघटना है। थोड़े से लोगों को किन्हीं मिथ्या धारणाओं या अप्रमाणित  निष्कर्षों के आधार पर संदिग्ध मानकर पिटाई करने की ऐसी घटनाएँ एक नई सामाजिक प्रवृत्ति के उभार को सूचित करती हैं।

इन घटनाओं में एक बात समान रूप से देखने में आती है। वह है संदेह को सच की तरह प्रामाणिक मान लेने की उद्धत प्रवृत्ति। ये घटनाएँ हमारे सामाजिक मनोविज्ञान में हो रहे बदलाव की तरफ़ इशारा करती हैं। इसके शिकार हमेशा कमज़ोर व्यक्ति या हाशिये के समूह के लोग ही होते हैं, चाहे वह धार्मिक अल्पसंख्यक हो या सामाजिक रूप से कमज़ोर दलित या स्त्री। छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताडऩा या लइका पकड़ैया के संदेह में साधुओं की पिटाई ऐसा ही मामला है।

अभिव्यक्ति की मौलिक आज़ादी लोकतंत्र का एक अहम पहलू है। इस अधिकार के उपयोग के लिये सोशल मीडिया ने जो अवसर नागरिकों को दिये हैं, एक दशक पूर्व उसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी। दरअसल, इस मंच के ज़रिये समाज में बदलाव की बयार लाई जा सकती है। साल 2011 में इजिप्ट में तत्कालीन सत्ता के खिलाफ उभरे जनआक्रोश से लेकर अन्ना आंदोलन तक में इसकी बहुत अहम भूमिका रही है।

लेकिन पिछले कुछ समय से ये माध्यम फायदों के साथ ही अफवाह को बढ़ावा देने का मंच भी बनते गए हैं। दरअसल, पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाडऩे और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बाँटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है।

सोशल मीडिया के ज़रिये अफवाह फैलाकर लोगों को भीड़ द्वारा मार देने की घटनाएँ देश की कई हिस्सों में हो चुकी है। हालिया दिनों में देश भर में तीस से ज़्यादा हत्याएँ भीड़ द्वारा की गई हैं। इनमें अधिकतर हत्याएँ सोशल मीडिया पर बच्चा चोर की अफवाह फैलने की वज़ह से हुई हैं।
दरअसल असुरक्षा से भय और क्रूरता दोनों आते हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं भया से आदमी क्रूर और करुणाहीन हो जाते हैं। दूसरे धार्मिक सम्प्रदाय के डर से भी आदमी क्रूर होता है।

सोशल मीडिया ही नहीं भीड़ में अफवाह फैलाकर किसी वारदात को अंजाम दिलवा देना आम बात हो गई है। इसी तरह का बड़ा मामला भिलाई में देखने को मिला जहां साधु के वेश में घूम रहे युवकों को करीब चालीस लोगों ने घेरकर बेरहमी से पीट दिया। पुलिस की जांच में बात सामने आई की शराब पीने के लिए पैसे नहीं देने के कारण कुछ युवकों ने ये अफवाह फैलाई और इस वारदात को अंजाम दे दिया।

जशपुर के कदमटोली गांव में एक परिवार के खिलाफ टोनही होने का अफवाह फैलाया गया और इस अफवाह को सच मान कर कुछ लोगों ने इस परिवार के तीन सदस्यों की बेरहमी से हत्या कर दी। इसी तरह की कुछ घटनाएं देश में कुछ और जगहों पर हुई जैसे महराष्ट्र के पालघर में 16 अप्रैल 2020 को बच्चा चोरी के शक में भीड़ ने तीन साधुओं की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।

हाल ही में 14 सितंबर 2022 को महराष्ट्र के सांगली में बच्चा चोरी के शक में भीड़ ने चार साधुओं की पिटाई की है। राजस्थान के अलवर में बीफ की अफवाह की वजह से एक शख्स की हत्या कर दी गई। हरियाणा में महिलाओं की चोटी कटने की अफवाह ने दहश्त फैलाई थी इन घटनाओं से पता चलता है कि हमारे देश में अफवाह फैलाना और उससे लोगों को भड़काना कितना आसान है। दरअसल शिक्षा के अभाव में लोग बहुत जल्दी इसकी जद में आ जाते हैं।

दरअसल असुरक्षा से भय और क्रूरता इसी का लाभ कुछ शातिर लोग ले रहे हैं। ये आज समाज के सामने एक नई चुनौती बन गई है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU