सुभाष मिश्र
समय रैना का एक यूट्यूब पर शो आता है इंडियॉज गॉट लेटेंट ये शो अपने बोल्ड और अश्लील कंडेट की वजह से चर्चा में रहता है। इस तरह के और बहुत सारे शो स्टेंडअप कॉमेडी के नाम पर देखने मिलता है जिनमें भी गाली गलौज और अश्लीलता आम बात है। ऐसे शो को हमारे देश का युवा वर्ग कुछ ज्यादा ही पसंद करता है। चूंकि यूट्यूब पर किसी भी प्रकार की सेंसरशीप नहीं है। इस लिए अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बहुत सारे कॉमेडियन, इन्फ्लसर जिनमें लड़कियां भी शामिल है, ऐसी बोल्ड और अश्लील बातें करती है जो सुनने में बहुत भद्दी लगती है। बहुत बार दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों को भी जलील करते हुए बहुत सारी अश्लील बातें उनसे कही जाती है। समय रैना के शो इंडियॉज गॉट लेटेंट में भी रणवीर इलाहाबादिया और अपूर्वा माखीजा ने प्रतिभागी से ऐसे सवाल पूछे जिसने अश्लीलता की सारी हदे पार कर दी। माता-पिता के सेक्स संबंध, क्या तुम उन्हे सेक्स करते देखना चाहते हो और ज्वाइन करना चाहते हो। स्त्री के प्राइवेट पार्ट में सेंसेशन हो रहा है या नहीं और न जाने क्या-क्या। जब इस शो का वीडियो वायरल हुआ तो पूरे देश में बवाल मच गया। महाराष्ट्र और असम में इस शो में शामिल लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर कार्रवाई की जा रही है।
जैसे कुछ दिन पहले हमने कहा था कि सेक्स बिकता है लेकिन देखा जाए तो सेक्स के ही समानांतर एक और शब्द है जिसे इन दिनों बाजार लगातार बेच रहा है। व्यापार कर रहा है और उससे व्यापारिक हित बना रहा है। यह शब्द है – यौन कुंठा। भारतीय समाज के साथ एक दिक्कत यह है कि यह पूरी तरह आधुनिक नहीं हो पाया है जबकि वह दिखावा सिर्फ आधुनिक का नहीं बल्कि अत्याधुनिक होने का करता है। लेकिन उसका एक पैर पीछे वर्जनाओं में , संस्कारों में और रूढिय़ों में दबा हुआ है और एक पैर आगे आधुनिकता के सड़क पर रख दिया है। वह देश-दुनिया को खासकर स्त्रियों को बहुत खुलेपन के साथ देखना और सुनना चाहता है लेकिन दूसरे घर की, दूसरे परिवार की स्त्रियों को। भारतीय समाज को परायी अश्लीलता में आनंद आता है। इसी कारण समाज में ऐसी स्थिति बन गई है कि आधुनिकता और अश्लीलता की समझ का आपस में घालमेल हो गया है। लेकिन वह अपनी दमित इच्छाओं और दबी हुई कुंठाओं को लेकर मुक्त नहीं हो पाया है। ओटीटी पर अश्लील गालियों और दृश्यों से भरी सीरीज और फिल्में उसे आनंद देती हैं। अब बात इससे थोड़ी ज्यादा आगे आ गई है।
अब ओटीटी, यूट्यूब और अन्य दूसरे माध्यमों पर टॉक शो आ रहे हैं, उनका ध्यान अश्लीलता के इस व्यापार की ओर गया है। बाजार इन माध्यमों के जरिए भारतीय जनमानस की यौन कुंठाओं की मौद्रिक वसूली कर रहा है। यानी उसको बाजार का हिस्सा बनाकर बड़े व्यापार में जुट गया है। विदेश में भी ऐसे शो होते हैं। वहां तो अश्लीलता का आलम कुछ ज्यादा ही होता है। हमारे यहां भी ऐसे ही शो किये जा रहे हैं जिसकी बाजारू प्रेरणा वहीं से आ रही है। इन दिनों का सबसे विवादित शो इंडिया गॉट लेटेंट भी ऑस्ट्रेलिया के शो ट्रूथ ऑर ड्रिंक की हूबहू नकल है। आस्ट्रेलिया पश्चिम में यह सामान्य बात है। विदेशों में अश्लीलता आनंद का पर्याय है क्योंकि उसे लेकर टैबू नहीं है। कोई वर्जनाएं नहीं हैं। विदेशों में कोई कुंठा नहीं है। वहां सेक्स को लेकर खुलकर बात होती है। चर्चा होती है। हमारे यहां इस तरह की बातें भी दबी छुपी होती हैं। इसलिए यह दमित इच्छाएं, कुंठाएं एक समय बाद उत्सुकता, जिज्ञासा और आनंद से आगे बढ़कर अपराध की ओर चली जाती हैं। विदेशों में यह सिर्फ आनंद की बात है, सिर्फ मनोरंजन। वहां इस तरह के शो को लेकर कोई संस्कृति का हल्ला नहीं होता है क्योंकि वहां इस तरह की रूढिय़ां, धार्मिक दुराग्रह नहीं है। वहां की संस्कृति बिल्कुल भिन्न है। इस तरह की बातें आधुनिकता वहां की संस्कृति का हिस्सा है इसलिए उनके लिए यह सामान्य बात है। हमारे लिए इस तरह के शो विस्फोटक हो सकते हैं और आखिरकार विस्फोट में बदल गये।
भारत में एक दिलचस्प बात यह है कि अश्लीलता पहले सांस्कृतिक दुर्घटना होती है फिर धार्मिक विवाद और आखिरकार राजनीतिक मुद्दा बन जाती है। भारतीय समाज में अश्लीलता की कोई ठीक-ठाक सर्व स्वीकृत परिभाषा नहीं बन पाई है। जो है उसका कानूनी रूप बहुत आधा-अधूरा है। युवा वर्ग यौन जानकारियों और जिज्ञासाओं को मौज मस्ती की सनसनी में जीना चाहता है। यह सनसनी और उत्तेजना और वर्जनाओं से मुक्ति की दमित इच्छा से पैदा हुई है। अब ऐसा हो नहीं सकता है कि हम एक तरफ तो बाजार के लिए चारों तरफ से दरवाजे खोलें। निवेश के लिए उनको आमंत्रित करें और दूसरी तरफ संस्कृति को लेकर छाती कूट विलाप करें। इसके लिए कोई बीच का रास्ता निकालना होगा। हम गुड़ खाना चाहते हैं लेकिन गुलगुले से परहेज करते हैं। अब सबसे ज्यादा दिक्कत ऐसे राजनीतिक दलों को होगी जिन्होंने संस्कृति और धर्म को आम जनता के लिए जीवन और आस्था का सबसे बड़ा प्रश्न बना दिया है।
दरअसल हमारे समाज में हास्य-व्यंग्य सदियों से रहा है। अलग-अलग अवसरों पर बहुत सारे गीत, प्रहसन और नकटोरा जैसी प्रथाओं के जरिए इसकी अभिव्यक्ति भी होती रही है। कवि सम्मेलन के मंचो से भी हास्य कवि कविताएं भी सुनाते रहे हैं। काका हाथरसी, हुल्लड़ मुराबादी, जसपाल भट्टी, राजीव श्रीवस्तव, जानी लीवर, कपिल शर्मा, सुनील ग्रोवर जैसे बहुल सारे लोग है जो लोगों के बीच हास्य पैदा करके उन्हें हंसाते रहे हैं। अभी भी बिना अश्लीलता की सीमा पार करते हुये हंसाने के काम पर लगे हुए हैं। जहां तक व्यंग्य का सवाल है इसके बारे में कहा जाता है कि पहले वह जिया जाता है फिर लिखा जाता है। प्रताप नारायण मिश्र, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रविंद्र नाथ त्यागी, लतीफ घोघी, ज्ञान चतुर्वेदी सुरेंद्र दुबे और इस परंपरा में बहुत सारे लोग शामिल है जो अपने व्यंग्य लेखन के जरिए समाज में व्याप्त विसंगतियों को बारिकी से उजागर करते रहे हैं और इन्हें पढ़ और सुनकर आदमी खिसियानी हंसी-हंसकर रह जाता है।
सोशल मीडिया के विस्तार और यूट्यूब चैनल के चलते बहुत स्टेंडअप कामेडियन, वीडकास्टर, आ गए हैं और बहुत बार वे उलजलुल अश्लील बाते करके युवाओं पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। इन्हीं में से बहुत सारे लोग इनफ्लेंसर भी बन गए हैं जिन्हें समय-समय पर अलग-अलग मंचो से उनके फॉलोवर की बड़ी संख्या के कारण सम्मानित भी किया जाता है। बहुत सारे स्टेंडअप कामेडी के कार्यक्रमों में अश्लीलता रिश्तों का अपमान और हमारी संस्कृति और संस्कारों पर गहरी चोट की जाती है। इंडियॉज गॉट लेटेंट के जिस शो में यह प्रश्न पूछा गया था वह दरअसल वह अस्ट्रेलियन शो ओजी क्रू के ट्रूथ ऑफ ड्रिंक की नकल था। पाश्चात देशों जिस तरह का खुला पन और अश्लीलता स्वीकार्य है वह हमारे देश में नहीं है। आदिपुरुष फिल्म में अपने संवाद लेखन की वजह से ट्रोल हुए गीतकार मनोज मुंतशिर ने कहा है कि कॉमेडी का स्तर गिर गया है। यह पिशाच, ये परवर्ट लोग हैं जो आने वाली पीढ़ी को संस्कार विहीन बनाने पर तुले हुए हैं। आने वाली पीढ़ी के संस्कार विहिन बनाना चाहते हैं।
हमारे देश में स्टैंड-अप कॉमेडी पिछले एक दशक में तेजी से विकसित हुई है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, ओटीटी, और सोशल मीडिया पोड फास्ट के बढ़ते प्रभाव के कारण, स्टैंड-अप कॉमेडियंस को अब बड़ी ऑडियंस मिल रही है। जल्दी लोकप्रिय होने की होड में स्टैंड-अप कॉमेडी में गाली-गलौज, डबल मीनिंग जोक्स, सेक्सुअल कंटेंट और धार्मिक व सामाजिक विषयों पर कटाक्ष बढ़ गया है। दरअसल भारत में सेंसर बोर्ड का स्टैंड-अप कंटेंट पर सीधा नियंत्रण नहीं है, इसलिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अनसेंसर्ड कॉमेडी खूब देखी जाती है।
कई स्टैंड-अप कॉमेडियंस अपनी कॉमेडी को रॉ और अनफिल्टर्ड कहकर अश्लील भाषा और गालियों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ कॉमेडियन इसे रियलिस्टिक ह्यूमर कहते हैं, लेकिन कई लोग इसे अश्लीलता और फूहड़ता मानते हैं। मुनव्वर फारुकी, वीर दास, केनी सेबेस्टियन, जाकिर खान, अदिति मित्तल और अन्य स्टैंड-अप कॉमेडियन कई बार अपने कंटेंट को लेकर विवादों में आ चुके हैं। सोशल मीडिया पर इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स, और टिकटॉक (बैन होने से पहले) जैसी शॉर्ट-वीडियो प्लेटफॉर्म्स ने बोल्ड कंटेंट को बढ़ावा दिया है। 18-30 वर्ष की ऑडियंस स्टैंड-अप कॉमेडी की सबसे बड़ी दर्शक संख्या है। कई बार छोटे बच्चे और किशोर भी इस कंटेंट को देखते हैं, जिससे उनकी भाषा और सोच पर असर पड़ता है।
कभी-कभी कुछ लोगों पर कार्यवाही भी हुई है किन्तु वे उसके बाद ज्यादा लोकप्रिय हो गये। मुनव्वर फारूकी को धार्मिक भावनाएँ आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था बाद ये उन्हें बिगबास में जगह मिली वीर दास का टू इंडियाज स्पीच भी विवादों में रहा। अदिति मित्तल, कुणाल कामरा और अन्य कॉमेडियंस को भी कई बार सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणी के लिए आलोचना झेलनी पड़ी है। वरुण ग्रोवर, जाकिर हुसैन, बिस्वा कल्याण रथ केनी सेबेस्टियन कानन गिल अतुल खत्री अदिति मित्तल जैसे कामेडियन है जिन्हें लोग सुनना चाहते हैं। स्टैंड-अप कॉमेडी के नाम पर आईटी एक्ट 2000 की धारा 67 के अंतर्गत अश्लील सामग्री प्रसारित करने पर कार्रवाई की जा सकती है। आईपीसी की धारा 295ए-धार्मिक भावनाएँ आहत करने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। आईटी नियम 2021-ओटीटी और सोशल मीडिया पर मॉनिटरिंग के लिए नए नियम लागू किए गए हैं। किन्तु यह प्रभावी नहीं हो पा रहा है।
इस तरह के कंटेट का समर्थन करने वालों का लोग मानना हैं कि कॉमेडी का काम समाज की सच्चाई को दिखाना है, इसलिए बोल्ड कंटेंट ज़रूरी है।
दरअसल यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म पर कोई भी सामग्री अपलोड करने के लिए किसी संपादक की जरूरत नहीं है। मेकर, क्रियेटर के बीच किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं है। मेकर्स कुछ भी बना कर कुछ भी बेच सकता है। यूट्यूब मिड पार्टी है जिसे कंटेट के अवैध होने की सूचना होनी चाहिए जब आप शिकायत करें तब यूट्यूब उस कंटेट का रिव्यू करेगा। यहां भी तीन-चार दिन बाद यूट्यूब से ये वीडियो हटा तब तक इसे जितना वायरल होना था हो चुका।
भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडी तेजी से विकसित हो रही है, लेकिन बोल्ड कंटेंट और अश्लीलता को लेकर लगातार बहस जारी है। जहाँ स्वतंत्रता और रचनात्मकता का सम्मान जरूरी है, वहीं संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। कला और फूहड़ता के बीच संतुलन बनाना जरूरी है।