रायपुर: सरकार की बहुत सारी योजनाएं, कार्यक्रम अच्छी नियत और लोक कल्याण
के उद्देश्य से बनाई जाती है. किंतु कुछ लोगों की लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते इन
योजनाओं और कार्यक्रमों पर कई तरह के सवाल खड़े होने लगते है. ऐसा ही कुछ
दिव्यांगजनों के कल्याण के लिए बनाए गए एनजीओ स्टेट रिसोर्स सेंटर (SCR) और
फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (PRC)के साथ हुआ.
इन पर भी कई तरह की अनियमितताओं का आरोप लगा.
छत्तीसगढ़ बनने के बाद वर्ष 2004 में बनी इस संस्था की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार को लेकर 2018 में जनहित याचिका दायर की गई. जिसके संबंध में हाल ही में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला सामने आया है. इस फैसले को जिस तरह से मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है वह उस तरह का नही है. हमने हाईकोर्ट के आदेश और दर्ज एफआईआर की पड़ताल की तो मालूम हुआ कि दिव्यांगजन एनजीओ घोटाले में अधिकारियों के नाम मीडिया के जरिए सीबीआई जांच से पहले ही आरोप तय कर दिए गए थे . जबकि अधिकारियों का न तो एफआईआर में नाम है और न ही हाईकोर्ट के आदेश में. जबकि मीडिया के जरिए 14 अधिकारी जिनमें 6 आईएएस और बाकी 9 अधिकारियों के नाम लेकर उन्हें आरोपी बताया जा रहा है.
जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लिया। 2020 में मुख्य सचिव को जांच के आदेश दिए गए थे, लेकिन कुछ तकनीकी रुकावटों के कारण CBI की जांच रुकी. हालांकि, कोर्ट ने CBI को पुरानी FIR के आधार पर दस्तावेज इकट्ठा करने और जांच तेज करने का निर्देश. कोर्ट ने साफ कहा: “यह सिर्फ त्रुटि नहीं, बल्कि सिस्टम में सुधार की जरूरत है.” यह फैसला इसलिए खास है, क्योंकि यह किसी को दोषी ठहराने की जल्दबाजी नहीं करता, बल्कि अधिकारियों को सिस्टम को मजबूत करने का मौका देता है. कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि जांच निष्पक्ष हो, ताकि सच्चाई सामने आए और भविष्य में ऐसी गलतियां न हों. यह मामला सिर्फ अनियमितताओं का नहीं, बल्कि एक बेहतर सिस्टम बनाने का अवसर है.

अधिकारियों, जिन्होंने इन संस्थाओं को शुरू करने में मेहनत की, अब उनके पास मौका है कि वे CBI जांच के सहयोग से सिस्टम को पारदर्शी बनाएं. कोर्ट का फैसला न तो किसी को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाता है, न ही सजा की जल्दबाजी करता है. बल्कि, यह एक रास्ता दिखाता है, जहां ऑडिट नियमित हों, फंड का सही उपयोग हो, और दिव्यांगों के लिए किए गए वादे पूरे हों.
मीडिया के जरिए इस मामले में सीबीआई जांच के पहले ही एक हजार करोड़ का भ्रष्टाचार बता कर पूर्व सीएस विवेक ढांड और 6 आईएएस समेत 15 अफसरों को दोषी करार दिया जा रहा है. राज्य स्त्रोत निःशक्तजन संस्थान अस्पताल के नाम पर छत्तीसगढ़ में हुए एक हजार करोड़ के घोटाले में हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं.
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि इस गंभीर मामले की स्थानीय एजेंसियों और पुलिस से जांच कराना सही नही होगा. हाईकोर्ट ने सीबीआई को 15 दिनों में दस्तावेज जब्त कर जांच शुरू करने को कहा. इस मामले में तत्कालीन चीफ सेकेट्ररी अजय सिंह की रिपोर्ट के बाद डिवीजन बेंच ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए पूर्व में घोटाले की सीबीआई जांच शिकायतकर्ता एवं याचिका के मुताबिक राज्य को संस्था के माध्यम से 1000 करोड़ का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा, जो कि 2004 से 2018 के बीच में 10 साल से ज्यादा समय तक किया गया.
छत्तीसगढ़ के कुछ वर्तमान और रिटायर्ड आईएएस अफसरों पर एनजीओं के नाम पर करोड़ों का घोटाला करने का आरोप लगाते हुए 2017 में वकील देवर्षि ठाकुर के माध्यम से याचिका दायर की थी. जिन अधिकारियों की इस दौरान पदस्थापना रही उनमें राज्य के 6 आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला, दिवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल तथा पीपी सौती समेत समाज कल्याण विभाग के सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा पर आरोप लगाये जा रहे है. सीबीआई जबलपुर ने इससे पहले मामले में अपराध दर्ज कर जांच शुरू कर दी थी।

इसी बीच घोटाले के आरोप फंसे आईएएस व राज्य सेवा संवर्ग में के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर सीबीआई जांच पर रोक की मांग की थी। प्रकरण की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाते हुए सुनवाई के लिए प्रकरण छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को वापस भेज दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इन अधिकारियों का पक्ष सुनने के निर्देश भी दिए थे. हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 25 जून 2025 को फैसला सुरक्षित कर बाद में कोर्ट ने प्रकरण को बहुत गंभीर मानते हुए सीबीआई का आदेश दिया.

याचिकाकर्ता ने खुद को एक शासकीय अस्पताल राज्य स्त्रोत निःशक्त जन सस्थान में कार्यरत बताते हुए वेतन देने की जानकारी पहले मिली. इसके बाद उन्होंने आरटीआई के वहत जानकारी ली तो पता चला कि नया रायपुर स्थित इस कथित अस्पताल को एक एनजीओ चला रहा है. जिसने करोड़ों की मशीने खरीदी गई हैं. इनके रखरखाव में भी करोड़ों का खर्च आना बताया गया. याचिका में कहा गया कि स्टेट रिसोर्स सेंटर का कार्यालय माना में बताया गया जो tor fest अंतर्गत है.