Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – आरक्षण के भीतर आरक्षण, पार्टियों के भीतर गहन चिंतन

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने जो पूर्व में उसके ही फैसले के खिलाफ था, ने पूरे देश में सियासी भूचाल ला दिया है। आरक्षण के भीतर आरक्षण यानी अब एसटी और एससी वर्ग के लिए जो आरक्षण का प्रावधान है उसमें से अत्यन्त पिछड़े लोगों को चिन्हित करके आरक्षण के भीतर आरक्षण दिया जायेगा और क्रीमीलेयर का आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर भाजपा और कांग्रेस जैसे प्रमुख दल अभी तक चुप्पी साधे हुए हंै। आरक्षण हमारे देश में ऐसी दोधारी तलवार है जिस पर खुलकर बात करने से बहुत से लोग परहेज करते हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यह नरेटिव सेट करने की कोशिश की थी कि यदि भाजपा 400 पार चली जाती है तो वह संविधान के साथ-साथ आरक्षण की व्यवस्था भी समाप्त कर देगी। अभी बातों को पुख्ता करने के लिए उन्होंने आरएसएस और बीजेपी के कुछ प्रमुख लोगों के अलग-अलग मंचों से दिये बयानों को भी सोशल मीडिया के जरिए वायरल किया और बहुत सारे मंचों से इसे बोला भी। बीजेपी का चुनावी रथ चार सौ पार की जगह 240 पर जाकर रूक गया, उसे टीडीपी और नीतीश कुमार की बैसाखियों की ज़रूरत पड़ी।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के लागू होने के बाद से अनुसूचित जाति, जनजाति यानी एससी/एसटी वर्ग के एक नया नेतृत्व उभरेगा। एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण करने का अधिकार राज्य सरकारों को भी दे दिए जाने के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। यह सही है कि अन्य पिछड़ा वर्ग की तरह एससी-एसटी समुदाय में भी कई जातियों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति बेहद कमजोर है और उन्हें अपने ही वर्ग की अन्य जातियों से भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है। यह भी सच है कि एससी-एसटी समुदाय में कई जातियां ऐसी हैं, जिन्हें आरक्षण का न के बराबर लाभ मिला है। लेकिन जातियों का उपवर्गीकरण करने और क्रीमीलेयर व्यवस्था को लागू करने का मानदंड क्या होगा, यह स्पष्ट होना भी आवश्यक है।
कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि राज्यों को आरक्षित जातियों के भीतर उपवर्गीकरण करने का अधिकार मिलने से वे राजनीतिक सुविधा के लिए इसका मनमाना उपयोग कर सकते हैं। वोट बैंक बनाने के लालच में वे उन्हीं उपजातियों को लाभान्वित कर सकते हैं जो उन्हें वोट देते हों। ज़ाहिर है, आरक्षण सामाजिक न्याय का जरिया है न कि वोट बैंक की राजनीति का हथियार।
ऊपर से लगता है कि यह निर्णय आरक्षण की व्यवस्था को न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक ज़रूरी पहल जान पड़ता है। क्रीमीलेयर व्यवस्था लागू होने से आरक्षण से लाभान्वित कुछ जाति समूहों के उससे वंचित किये जाने पर अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ी उपजातियों को उन्नति के न्यायोचित अवसर मिलने की उम्मीद जागेगी, लेकिन इससे आरक्षण का मूल आधार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ेपन से खिसककर आर्थिक पिछड़ेपन की ओर चला जाएगा। सैद्धांतिक रूप से इससे सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की मांग को बल मिलेगा।
ज़ाहिर है, पिछड़ेपन का निर्णय किस आधार पर किया जाएगा, इसके तय होने के बाद ही इसके वास्तविक प्रभाव का परीक्षण किया जा सकता है। एससी/एसटी छोटी-छोटी जाति समूहों में बांटने और एससी/एसटी को क्रीमीलेयर की पहचान करने का फैसला। राज्यों में एससी/एसटी जातियों के उपसमूहों का वोट हासिल करने के लिए पार्टियों को उनके नेता खड़े करने होंगे। नए दलित नेता और उनकी पार्टियां उभरकर सामने आयेंगे। ओबीसी की राजनीति में नया टें्रड आयेगा।
इस फैसले पर जो प्रतिक्रिया आ रही है। उनमें सपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि दलितों और आदिवासियों की जीवन द्वेष और भेदभाव मुक्त हो गया है। बीजेडी/कांग्रेस ने इसे उदारवादी कहा है, सुधारवादी नहीं। केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा कि रिपब्लिक पार्टी एससी एसटी में आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर का कड़ा विरोध करती है। यदि हम आरक्षण का इतिहास देखें तो इसकी शुरुआत अंग्रेजो के समय से हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट में कोटा यानी आरक्षण के भीतर आरक्षण पर मुहर लगाते हुए एससी, एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर भी बल दिया है। सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से दिए फैसले में कहा कि एससी एसटी वर्ग के ही ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्य एससी, एसटी वर्ग उपवर्गीकरण कर सकते है। सर्वोच्च अदालत ने बीस साल पुराने पांच न्यायाधीशों के ईवी चिनैया (2004) मामले में दी गई व्यवस्था को गलत ठहरा दिया है।
2004 में ईवी चिनैया फैसले में पांच न्यायाधीशों ने कहा था कि एससी, एसटी एक समान समूह वर्ग है और इनका उपवर्गीकरण नहीं हो सकता। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ ने इस मुद्दे पर लंबित करीब दो दर्जन याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है। आरक्षण को लेकर मुख्य मामला पंजाब का था, जिसमें एससी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों में से पचास फीसदी सीटें वाल्मीकी और मजहबी सिखों के लिए आरक्षित कर दी गईं थी। पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले में जो प्रमुख बिन्दु उभरकर सामने आये हैं उसके अनुसार संविधान पीठ ने एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान के लिए नीति बनाने को कहा। उपवर्गीकरण वाली जातियों को सौ प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा सकता। वर्गीकरण तर्कसंगत सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। कम प्रतिनिधित्व और ज्यादा जरूरतमंद साबित करने वाले आंकड़ों को एकत्र करने की जरूरत। आरक्षण नीति के पुनर्वलोकन और उत्थान का कोई और तरीका खोजने पर भी कोर्ट का जोर है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा कि पूरा जोर एससी-एसटी आरक्षण में ज्यादा जरूरतमंदों को लाभ देने के लिए राज्यों को एससी-एसटी के उपवर्गीकरण के अधिकार पर दिया है। जबकि जस्टिस गवई ने उपवर्गीकरण की व्यवस्था से सहमति जताते हुए अपने अलग से दिये फैसले में ज्यादा जोर एससी, एसटी में क्रीमीलेयर की पहचान कर उन्हें बाहर करने की नीति बनाने की जरूरत पर दिया है। आजाद समाज पार्टी प्रमुख और सांसद चंद्रशेखर ने आजाद आरक्षण के अंदर कोटा देने के कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि यदि आप वर्गीकरण करना चाहते हैं तो सुप्रीम कोर्ट से इसकी शुरुआत होनी चाहिए।
जदयू नेता और नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि बिहार ने पहले ही महादलित और अति-पिछड़ा वर्ग जैसी उप-श्रेणियां बनाई है। भाजपा के राज्यसभा सांसद और दलित चेहरे बृजलाल का मानना है कि एससी-एसटी में भी क्रीमीलेयर होना चाहिए जो आरक्षण का लाभ लेने सरकारी नौकरी में आ चुके हैं उनको लाभ नहीं मिलता चाहिए। भाजपा सांसद डीके अरुण ने कहा कि हम सर्वोच्च अदालत द्वारा दिए गए इस फैसले का स्वागत करते हैं। अनुसूचित जातियों का 30 साल का सपना केंद्र की भाजपा सरकार की पहल से साकार हुआ है।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के मुखिया और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि जब तक छूआछूत जैसी प्रथा रहेगी तब तक सब कैटगरी में आरक्षण और क्रीमीलेयर जैसे प्रावधान नहीं होने चाहिए। इंडिया समूह में शामिल लालू यादव के राजद को भी समस्या हो रही है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कोर्ट में कोटा और इसमें क्रीमीलेयर लागू करने के फैसले का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि वंचितों-पिछड़ों का आज भी विरोध हो रहा है। ऐसे में एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर का मामला हो ही नहीं सकता। इंडिया समूह में शामिल डीएमके ने फैसले का स्वागत किया है।
कोर्ट ने जातियों के वर्गीकरण के लिए यह भी कहा कि पहली पीढ़ी को मिल गया तो दूसरी पीढ़ी को नहीं मिले। कोर्ट ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्य किया है। वर्गीकरण गलत नहीं है। एससी-एसटी की 90 फीसदी आबादी को अभी तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। आरक्षण का लाभ सबसे वंचित दलित व आदिवासियों के बीच वितरित करने में सरकार विफल रही है। सरकार को एससी-एसटी का उपश्रेणियों में वर्गीकृत करने का काम करना चाहिए। दलितों में जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं। वे केवल अपने समुदाय के हित को देख रहे हंै, समग्र दलितों के हित को नहीं।
छत्तीसगढ़ राज्य की 30 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासी है। 43 आदिवासी समुदायों में गोंड सबसे प्रभावशाली है। जनजातीय आबादी में इनकी 55 फीसदी हिस्सेदारी है। कांवड़ 11 फीसदी और ओरांव 10 फीसदी है। यहां 44 जातियां दलित हैं, जिनकी राज्य की आबादी में 13 फीसदी हिस्सेदारी है। बैरवा-रैदास जैसी जातियों का प्रभाव सबसे ज्यादा है।
मध्यप्रदेश राज्य की 16 फीसदी आबादी दलित है। दलितों में सबसे बड़ा समुदाय चमड़े का काम करने वाला समुदाय है। मालवा में रहने वाला बलाई दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है। एसटी की आबादी 21 फीसदी है। सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय भील है। दूसरे नंबर पर गोंड है। उत्तरप्रदेश राज्य में दलित जाटव और गैर-जाटव में बंटे हुए हैं। कुल आबादी में जाटव 12 फीसदी और गैर-जाटव 10 फीसदी हैं। दलितों की कुल आबादी में 56 फीसदी जाटव ही हैं। जाटवों के अलावा दलितों की बाकी उपजातियों में पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं। बिहार में पिछले साल हुई जातिगत जनगणना के मुताबिक बाग राज्य की 13 करोड़ से ज्यादा आबादी में 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 36 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी अनुसूचित जाति और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति है। बिहार की सियासत में घर पहले सवर्णों का प्रभाव था, लेकिन या फिर ओबीसी की सियासत शुरू हो ले गई। जातिगत जनगणना के बाद बनी नई ईबीसी कैटेगरी यानी अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति तेज हो गई थी। मगर अब जब कोटे के अंदर कोटा की बात होगी तो दलित और आदिवासियों की सियासत भी तेज हो सकती है।