मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की जीवनी के बारे में भारत के लोगों को बतानी चाहिए ऐसी कोई बात नही. क्योंकि हम सभी के घरों में रामचरित मानस का अनवरत पाठ होता लेकिन अपने मन को अयोध्या की तरह सजाना यह बहुत चुनौती का काम है कांची पीठ के जगदगुरू चंद्रशेखर सरस्वती जी ने कहा था कि लोग भले मीलों पैदल चल लें लेकिन मन के भीतर 1 मिलीमीटर भी नही चल सकते ऐसे में अपने मन को अयोध्या की तरह सजाना और भी चुनौतीपूण हो जाता है यह कहना आरएसएस के सह सरकार्यवाहक रामदत्त चक्रधर का है. स्वदेश समाचार पत्र के व्याख्यान के दौरान उन्होने यह बात कही.
‘समय है मन की अयोध्या को सजाने का’ विषय में आयोजित इस व्याखान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाहक रामदत्त चक्रधर ने बड़े ही सहज तरिके से अपनी बात रखी. उन्होने कहा कि कहना सरल है बताना सरल है लेकिन राममंदिर संघर्ष का 500 साल का आंदोलन था और मंदिर आंदोलन के उस कालखंड में मुझे रायपुर में रहने का अवसर मिला था. कार सेवक आते थे उनके संस्मरणों को भी सुनने का अवसर मिला दक्षिण भारत से कारसेवकों के समुह से भी भेंट हुई सभी के लबों पर एक ही नाम था ‘जय श्री राम.’
संस्मरण सुनाते हुए श्री चक्रधर ने बताया कि दक्षिण भारत के कारसेवक पैदल ही निकले थे उनके पैरों में छाले पड़ गए थे उन्हें जब लगा कि वे आगे नही बढ़ पाएंगे तो एक घर का दरवाजा खटखटाया तो एक बूढ़ी अम्मा ने दरवाजा खोला तो वे एक दूसरे की भाषा नही समझते थे कारसेवकों ने कहा जय श्री राम तो बूढ़ी अम्मा समझ गई वे कारसेवक है वे बड़े ही प्रेम से उनको अंदर ले गई फिर कारसेवकों ने पेट की ओर इशारा कर कहा अम्मा जय श्री राम तो माता जी ने उन्हे भोजन कराया भोजन के बाद जब वे कुछ देर विश्राम करना चाहते थे तो माता जी की ओर देख सोने का इशारा कर कहा माता जी जय श्री राम बूढ़ी माता ने उनके लिए विश्राम का प्रबंध किया जब वे सो रहे थे तो वह माता जी उनके पैरों के घाव को गर्म पानी से साफ कर रही है. कार सेवकों ने मुझे अपना अनुभव सुनाते हुए कहा बूढ़ी अम्मा के प्रेम से उनका हृदय भर आया था उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं कि उत्तर का हिस्सा आर्यों का है और दक्षिण द्रविड़ों का है लेकिन हमने अनुभव किया कि प्रभु श्री राम तो संपूर्ण भारत के हैं.
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व्याख्यान को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि स्वदेश आज नए कलेवर में आ रहा है. स्वदेश समाचार पत्र समुह का इतिहास समृद्ध है. आजादी के बाद 1948 में एकात्म वाद और मानवाद की परिकल्पना लेकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की परिकल्पना से यह प्रारंभ हुआ. छत्तीसगढ़ के निर्माता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी इसके संपादक थे. यह केवल समाचार जनता तक पहुंचाने का माध्यम नही बल्कि भारतीयता की भावना को देशवासियों तक पहुंचाता आया है आपातकाल के दौरान जब सारे समाचार पत्रों पर लगाम लगाने का प्रयास किया गया तब भी स्वदेश समाचार पत्र अडिग था और भारतीयता के भाव को जगाये रखा.
विधानसभा अध्यक्ष रमन सिंह ने इस आयोजन के अवसर पर प्रसन्नता जाहिर की उन्होने कहा कि उन्हे खुशी है कि राष्ट्रीय विचार धारा के लोग एक मंच में एकत्रित हुए है. स्वदेश समाचार पत्र ने सदैव ही राष्ट्रीय मूल्यों और भारतीय पत्रकारिता को सशक्त बनाने का काम किया है स्वदेश ने अपने सात दशक की यात्रा में कई संघश देखे हैं हमस ब इसके गवाह है 1948 में लखनउ में पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने इस समाचार पत्र की नींव रखी. राष्ट्रीयता के इस विचार को भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने आगे बढ़ाया.
कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री द्वय अरूण साव, विजय शर्मा , वित्त मंत्री ओपी चौधरी वन मंत्री केदार कश्यप समेत बीजेपी और संघ से जुड़े लोग मौजूद थे.
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