: दिलीप गुप्ता:
सरायपाली :- नगर में जो भी निर्माण व विकास के कार्य स्वीकृत होते हैं तो बगैर विवाद के कोई भी कार्य प्रारंभ नही होता । नगरपालिका द्वारा जनहित में जब भी कोई विकास व निर्माण कार्य संबंधित योजनाएं बनती हैं तो कभी भी नगरवासियो को न जानकारी दी जाती है न ही कोई सलाह ली जाती है ।
इसके पीछे सिर्फ कमीशनखोरी व अपने चहेते ठेकेदारो व सप्लायरो को लाभ पहुंचाना ही प्रमुख उद्देश्य होता है । इसलिए योजनाएं गुप् चुप तरीके से बना ली जाती है ताकि कोई बाद में विरोध करते हुए अड़ंगा न लगा दे । नगरपालिका की कई योजनाएं तो प्रयोगशाला की तरह हैं जहां कमीशन खोरी व भ्रष्टाचार कैसे किया जाना है पर बाकायदा टेस्ट होता है ।

ऐसा ही बड़ा तालाब नगरपालिका के लिए एक प्रयोगशाला बन गया है । तालाब सैन्दर्यीकरण के नाम से अभी चौथी बार कार्य प्रारंभ किया गया है । सबसे पहले 2004 में श्रीमती शानी अमर बग्गा द्वारा इस तालाब के गहरीकरण व मेड में पत्थर से पिंचिंग का कार्य प्रारम्भ कराया गया । उसके बाद चंद्रकुमार पटेल के कार्यकाल में लाखों रुपये खर्च कर पेड़ , झूले , जिम व कुर्सियां लगाई गई जो बाद में पूरी तरह बर्बाद हो गया ।
पश्चात कांग्रेस के अमृत पटेल के अध्यक्ष कार्यकाल में इस तालाब में फिर सैन्दर्यीकरण के नाम से पूर्व में लगे सभी को उखाड़ दिया गया । जो सरकार चले जाने के बाद नही बन सका । पुनः भाजपा की सरकार बनने पर फिर सैन्दर्यीकरण के नाम से लाखों रुपयों की स्वीकृति प्रदान कर पुनः कार्य प्रारंभ किया गया है ।
तालाब के पास से अभी तक पम्पवेल के थोड़ा आगे तक दीवाल खड़ी की गई है जो अभी अधूरी है । तटीय क्षेत्र व पानी सीपेज को रोकने तालाब के किनारे सीमेंट की दीवार उठाई जा रही है । यह दीवाल कहीं भी एक सीध में नही है । तालाब किनारे बना दिये गए सार्वजनिक प्रसाधन के पीछे इस दीवाल को काफी तालाब के अंदर तक दबा दिया गया है ।

वहीं दीवाल व फुटपाथ के बीच लगभग 10 से 12 फिट की जगह को अनावश्यक रूप से छोड़ दिया गया है । जिससे तालाब की जल ग्रहण क्षमता बुरी तरह प्रभावित ह्यो रही है । बताया जा रहा है कि उस 10 -12 फिट की जगह मेंवतलाब की सुंदरता के लिए तालाब के किनारे किनारे पाभ वृक्ष लगाया जायेगा । यदि पाभ वृक्ष लगाने ही था तो 2 से 3 फिट जगह छोड़ी जा सकती थी ।
उतनी चौड़ी जगह छोड़ना उचित नही है । इससे तालाब का घनत्व भी कम ह्योग जिससे पानी का स्टोरेज भी कम होगा । तालाब में दीवाल निर्माण को आखिर सीधा क्यों नही बनाया गया । एक तो वैसे ही 10 से 12 फिट की दूरी को कम कर दिया गया उसके बाद फिर मंदिर से पहले आडी तिरछी दीवाल व तालाब के अंदर से दीवाल को ले जाने सवार जगह कम पड़ गई ।

इस तालाब में वार्ड क्रमांक 10 ,11 ,12 व 13 के वॉर्डवासियो द्वारा निस्तारी किया जाता है । मंदिर के बाजू में पूर्व में बनाये गये घाट को बन्द कर दिया गया है व एक नए घाट का निर्माण किया गया है । इस घाट में महिलाएं स्नान करती हैं किंतु घाट की ऊंचाई काफी कम होने की वजह से महिलाओं को नहाने में दिक्कत हो रही है । इस घाट की ऊंचाई व घेराव आवश्यक है ।
इसी तरह आमनागरिको द्वारा इस तालाब में पूजा सामग्रियों व अनावश्यक रूप से कचरा डाल दिये जाने की वजह से पानी भी प्रदूषित व गंदा हो रहा है । इस पर रोक लगाई जानी चाहिए । नगरवासियो का कहना है कि तालाब व मंदिर के पास ही सार्वजनिक प्रसाधन गृह का निर्माण भी धार्मिक भावनाओं के विपरीत है ।
समीप ही महादेव जी का मंदिर है और इसी तालाब से पानी लेकर जलाभिषेक व अन्य कार्य किया जाता है । जो कि भावनाओ के खिलाफ है । इस प्रसाधन गृह को यहां से हटाने की भी मांग की गई है । वैसे जब इसका निर्माण किया जा रहा था उसी समय इसका विरोध किया गया था किंतु हिटलरशाही रवैया के कारण इसे नही रोका गया ।

अनावश्यक व जबरदस्ती बनाये गये यह प्रसाधन आज नगरपालिका के पास इसे संचालित किए जाने के लिए नियुक्त कर्मचारियों को वेतन देने के लिए फंड नही होने के कारण आज यह स्वतः ही बन्द हो गया है ।
सबसे दुखद यह है कि नगरपालिका के पास अनावश्यक रूप से निजी जमीनों व कालोनियों में सीसी रोड , नालियां , लाइट , खम्बे , सफाई आदि के लिए बजट है पर लाखों रुपये खर्च कर बनाये गए सार्वजनिक प्रसाधन केंद्रों में कर्मचारी रख कर इसे जनहित में प्रारम्भ कराये जाने के लिए फंड नही होने का रोना रोना कहाँ तक सही है । सार्वजनिक प्रसाधन केंद्र आम नागरिको का प्रथम बुनियादी आवश्यकता है इसे ही पूरा करने में नगरपालिका असफल सिद्ध हो रही है ।