राजकुमार मल
Commercial Farming : व्यावसायिक खेती की राह हुई आसान
Commercial Farming : भाटापारा- एक बार लगाइए और अगले 5 साल तक लेते रहिए फसल। नाम है ककोड़ा। पहचाना जाता है खेखसी के रूप में। असंभव थी सरगुजा के वनांचलों में मिलने वाली प्रजाति की खेती लेकिन अनुसंधान के बाद तैयार कंद, अब संपूर्ण प्रदेश के खेतों में पहुंचने के लिए तैयार है, जिनका रोपण सब्जी किसानों को बेहतर अवसर प्रदान करेगा।
बेहद सीमित रकबे में होती है खेखसी की खेती जबकि तैयार फसल को शुरुआत से लेकर अंतिम दौर तक उच्चतम कीमत मिलती है। ऐसा इसलिए क्योंकि मांग के अनुरूप उत्पादन बेहद सीमित है। ध्यान में थी यह स्थिति। लिहाजा ऐसी प्रजाति की खोज की गई जो न केवल उच्चतम कीमत दे सके बल्कि हर जिले में व्यावसायिक खेती संभव हो सके। अनुसंधान के कई दौर के बाद अब इसके कंद पौधों के रूप में मिलने लगे हैं।
यहां मिला, यहां विकसित
बस्तर और सरगुजा। जंगलों में नैसर्गिक रूप से पाए जाते हैं। आसान नहीं था मैदानी इलाकों के लिए तैयार करना लेकिन इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के निदेशक अनुसंधान डॉ विवेक त्रिपाठी ने चुनौती स्वीकार की। मार्गदर्शन के लिए डी के एस कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन भाटापारा के डीन डॉ.एच एल सोनबोईर को जिम्मेदारी दी। यहां की हाईटेक नर्सरी में अनुसंधान किया गया। कंद ही वैकल्पिक व्यवस्था थी। मुश्किल था नर और मादा कंद की पहचान। अनुसंधान के कई दौर के बाद आखिरकार कंद से रोपण के लिए पौध सामग्री तैयार कर ली गई।
एक बार रोपण, पांच बार फसल
जून से लेकर अगस्त माह तक की अवधि ककोड़ा के कंद रोपण के लिए सही मानी गई है। रोपण के 35 दिन बाद इसमें फूल लगते हैं और पुष्पन के 15 दिवस के बाद फलों का लगना चालू होता है। सबसे अहम बात यह है कि पहले रोपण के बाद 5 साल तक फसल मिलती रहती है। यानी हर बरस बीज या कंद की खरीदी जैसी परेशानी 5 साल तक नहीं उठानी होती सब्जी किसानों को। व्यावसायिक खेती के लिए पौधों से पौधों की दूरी 2 मीटर और कतार से कतार की दूरी 2 मीटर होनी चाहिए। मादा एवं नर पौधों का अनुपात आठ अनुपात एक होता है।
जानिए ककोड़ा को
ककोड़ा एक द्विलिंगीय पौधा है। बारहमासी ककड़ी वर्गीय लता वाले पौधों में लगने वाले फल को करसौली, ककोड़ा और भट करेला जैसे नाम से जाना जाता है। इसकी उत्पत्ति एशिया क्षेत्र से हुई है। बांग्लादेश, चीन, मलेशिया और अपने देश में फलों का सब्जी के रूप में सेवन किया जाता है। उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में यह बेहतर परिणाम देते हैं। अपने छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्र में बहुतायत में मिलती है।
पौध सामग्रियां तैयार
करेले की तरह अब ककोड़ा की खेती व्यावसायिक रूप में की जा सकती है। महाविद्यालय की हाईटेक नर्सरी में हमने पौध सामग्रियां तैयार की हैं। गत वर्ष लगभग 16000 पौध सामग्री का वितरण किया है। आने वाले साल के लिए इंदिरा ककोड़ा-2 के 10 लाख पौध सामग्री तैयार करने का लक्ष्य रखा है।
– डॉ देवेंद्र उपाध्याय, वैज्ञानिक (सब्जी विज्ञान), डी के एस कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, भाटापारा
उपयुक्त है जलवायु
Commercial Farming : परंपरागत रूप से छत्तीसगढ़ की जलवायु ककोड़ा की खेती के लिए उपयुक्त है। किसानों द्वारा व्यावसायिक खेती के लिए महाविद्यालय की नर्सरी में उन्नत किस्म के पौधे तैयार किया जा रहे हैं।
– डॉ एच एल सोनबोईर, डीन, कृषि महाविद्यालय, भाटापारा