राजकुमार मल
Bhatapara News Today संकट में हाथ ठेला , बाइक और ई- ठेले से मिल रही कड़ी चुनौती
Bhatapara News Today भाटापारा– बाइक ठेला और ई- ठेला। कड़े मुकाबले में लगभग हार मान चुके हाथ ठेला ने अब घर वापसी की राह पकड़ ली है। ऐसे में हाथ ठेला बनाने वाले कारीगरों ने इस काम से हाथ खींचना चालू कर दिया है, तो किराए पर देने वाले गैरेज भी तेजी से किनारा करने लगे हैं।
1980 के दशक में शुरू हुआ हाथ ठेले का काम संकट में आ चुका है। यह संकट तेजी से इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि बदलते कारोबारी दौर में अब बाइक ठेले और ई-ठेले को काम देने की प्रवृत्ति बढ़ती देखी जा रही है। यह इसलिए क्योंकि कम समय में ज्यादा सामान का परिवहन करते हैं यह साधन। लिहाजा हाथ ठेला की जगह बाइक ठेला और ई-ठेले ज्यादा लोकप्रिय होने लगे हैं।
संकट हाथ ठेला पर
1980 का दशक। खूब चलती थीं बैलगाड़ियां। शहर ही नहीं, गांव- देहातों तक परिवहन का आसान साधन थीं। लिहाजा विकल्प के तौर पर दोपहिया हाथ ठेले आए। इसी के साथ-साथ चार पहियों वाले ठेले भी आए। साथ में कारीगरों का भी प्रवेश हुआ । कारोबार को विस्तार लेता देख, किराए पर हाथ ठेला देने वाले गैरेज भी खुले। अब यह सभी संकट में हैं।
मुकाबला इनसे
बाइक ठेला और ई-ठेला। नया परिवर्तन है, हाथ ठेला कारोबारियों के लिए। कम किराया और कम समय में ज्यादा सामान के परिवहन जैसे महत्वपूर्ण कारक ने, हाथ ठेला के सामने ऐसा संकट पेश कर दिया है, जिससे फौरी राहत के उपाय नहीं सूझ रहे हैं। रही-सही कसर पुरानी बाइक एजेंसियां और फाइनेंस पर ई-ठेले बेचने वाली संस्थानें पूरा कर रहीं हैं।
खोज रहे दूसरा कारोबार
हुनर है कारीगरों के पास, इसलिए हाथ ठेला बनाने वाले कारीगरों ने दूसरे काम की संख्या बढ़ानी चालू कर दी है लेकिन सबसे ज्यादा संकट ठेला गैरेज संचालकों के सामने इसलिए ज्यादा है क्योंकि पुराने ठेलों के लिए ग्राहक नहीं हैं। इसलिए 15000 से 17000 रुपए में बनवाए गए ठेले, 6 से 7 हजार रुपए में बेचने की मजबूरी है तो ठेला श्रमिक भी काम की तलाश में हैं।