मिट्टी के गुड्डा-गुड़िया बनाने वाले कुम्हार हो रहे बेकार
राजकुमार मल
भाटापारा- चिंता में हैं मिट्टी के गुड्डा-गुड़िया बनाने वाले कुम्हार। संशय में हैं बेचने वाले क्योंकि पखवाड़े और सप्ताह के बाद महज 2 दिन का रह गया है यह बाजार।
बड़ों की मनाही लेकिन बच्चों की जिद ने बचा कर रखा हुआ है मिट्टी के गुड्डा-गुड़ियों को। घटते बाजार को देखकर अब कारीगरों ने मात्रा घटानी चालू कर दी है तो विक्रेताओं ने भी खरीदी कम करना चालू कर दिया है। रही-सही कसर महंगाई ने पूरी की हुई है।
दो या तीन दिन
पखवाड़े भर बाद आ रहे अक्षय तृतीया को लेकर गुड्डे-गुड़िया बनाने व बेचने वालों ने तैयारी चालू कर दी है लेकिन इस बार मांग और खरीदी के दिन कम होने के प्रबल आसार हैं क्योंकि रुझान जरा भी नहीं है। ऐसे में सप्ताह भर चलने वाला यह क्षेत्र महज दो या तीन दिवस का ही माना जा रहा है। इसलिए निर्माण और विक्रय की संख्या कम करने की कोशिशें हैं।
बच्चों की जिद ने बचाया
तरेंगा, रतनपुर और बिलासपुर में मिट्टी के गुड्डे- गुड़िया बनाए जाते हैं। मिट्टी शिल्प में नए प्रयोग के बाद आकर्षण तो बढ़ा है लेकिन घटती मांग ने बाजार को ऊहा-पोह में डाला हुआ है क्योंकि बड़ों की इच्छा तेजी से कम हो रही है लेकिन बच्चों की जिद के आगे खामोशी से खरीदी की संभावना बनती नजर आ रही है। फिर भी अपेक्षित मांग की धारणा से इनकार किया जा रहा है।
असर डाल रही महंगाई
मिट्टी और मेहनत दोनों की दरें बढ़ चुकी हैं। इसके अलावा रंग के दाम भी बढ़े हुए हैं। इसलिए बीते बरस 70 से 75 रुपए में विक्रय किए गए प्रति जोड़े गुड्डा-गुड़िया इस बरस 100 रुपए पर मिलेंगे। इस कीमत को संस्थानें भी ज्यादा मान रहीं हैं लेकिन पर्व को देखते हुए विवशता में यह कीमत उपभोक्ताओं को बताई जा रही है।