राजकुमार मल
Bhatapara Latest News अब सिर्फ पेंड्रा, मरवाही के जंगलों में, चिंता में वानिकी वैज्ञानिक
Bhatapara Latest News भाटापारा-अब शहतूत भी मांग रहा है संरक्षण और संवर्धन। पौधरोपण में घटती हिस्सेदारी के बाद केवल पेंड्रा और मरवाही के जंगलों तक ही सिमट गया है। शेष छत्तीसगढ़ में लगभग खात्मे की कगार पर पहुंचता नजर आ रहा है।
मुलायम बनावट और मीठा स्वाद जैसे गुण रखने वाले शहतूत को बेहद उम्मीद थी कि वनसंपदा की सूची में उसे भी जगह मिलेगी। नहीं पूरी हुई शहतूत की उम्मीद। अब निजी क्षेत्र ही अंतिम सहारा है लेकिन रुझान यहां भी कम ही दिखाई देता है। इसके बावजूद शहतूत ने भरोसा बनाए रखा है कि पौधरोपण के दिनों में उसकी याद जरूर की जाएगी क्योंकि उसके पास उच्च पोषण मूल्य वाले तत्व भरपूर मात्रा में है।
करता है वजन कम
Bhatapara Latest News उच्च मात्रा में फ्लेवोनॉयड और फाइबर की उपलब्धता से शहतूत का सेवन, उच्च रक्तचाप जैसी स्वास्थ्यगत समस्या से शरीर को दूर रखता है। आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम, विटामिन सी और विटामिन के , का होना वजन कम करने में सहायक माना गया है। उच्च और समग्र पोषण आहार से समृद्ध शहतूत, त्वचा की प्राकृतिक चमक और स्वस्थ बनाए रखने में सक्षम है। अहम यह कि शहतूत में संक्रमण रोकने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के गुण भी होते हैं।
बनती है मीठी रोटी
लाल, काला और सफेद रंग में मिलने वाले शहतूत से मीठी रोटी बनाई जाती है। महानगरों में पैक में मिलने वाले शहतूत से केक, कप केक, सलाद और जैम भी बनाए जाने लगे हैं। महत्वपूर्ण यह है कि शहतूत का वाणिज्यिक उपयोग जैम, जेली उत्पादन करने वाले उद्योग भी करने लगे हैं।
चाहिए संरक्षण और संवर्धन
घटती आबादी के बीच बढ़ते उपयोग क्षेत्र की मांग, शहतूत में लगभग पूरे साल बनने लगी है। लिहाजा संरक्षण और संवर्धन को आवश्यक माना जा रहा है। बताते चलें कि अपने छत्तीसगढ़ में इसके पेड़ बहुतायत में केवल गौरेला, पेंड्रा और मरवाही के जंगल में ही शेष रह गए हैं।
हमारे समग्र स्वास्थ्य के लिए एक सर्वोत्तम फल
शहतूत हमारे समग्र स्वास्थ्य के लिए एक सर्वोत्तम फल है। जो शरीर के लिए हर तरह से फायदेमंद है। आपके आस-पास इसके पेड़ है तो इस फल का आनंद लीजिए और सेहतमंद रहिए।
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अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर